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हिन्दी कविता : बड़े खुश हैं हम...

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सुशील कुमार शर्मा

जीने के ढंग में
राग और रंग में
प्रेम की उमंग में
बड़े खुश हैं हम।


 
 
खिजाओं में बहारों में
गोरी के साथ रारों में
प्यार के इशारों में
बड़े खुश हैं हम।
 
निगाहों की निगहबानी में
राहों की बियाबानी में
सहानुभूति की स्याहदानी में
बड़े खुश हैं हम।
 
शब्दों के सरोकारों में
स्नेह के व्यापारों में
चीखते समाचारों में
बड़े खुश हैं हम।
 
प्रेम के प्रतिघातों में
दर्द के आघातों में
हृदय चुभी बातों में
बड़े खुश हैं हम।
 
जीवन के झंझावातों में
अंधेरी सर्द रातों में
झूझते जज्बातों में
बड़े खुश हैं हम।
 
फगुनियां सतरंगों में
अभिसार की तरंगों में
आशाओं और उमंगों में
बड़े खुश हैं हम।
 
सूखे से रिश्तों में
शैतानी फरिश्तों में
जीवन की किस्तों में
बड़े खुश हैं हम।
 
आजादी के अर्थों में
राजनीति के अनर्थों में
सत्ता के समर्थों में
बड़े खुश हैं हम।
 
विषधरों के शहर में
आतंकों के कहर में
अपनों के मीठे जहर में
बड़े खुश हैं हम।
 
ममता के ममत्व में
गरीबी के अपनत्व में
प्रेम के घनत्व में
बड़े खुश हैं हम।
 
प्रभु की उपासना में
संकल्प की साधना में
राधे की आराधना में।
बड़े खुश हैं हम।
 
धुंधलाते चित्रों में
बिखरते चरित्रों में
दुश्मन से मित्रों में
बड़े खुश हैं हम।

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