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हिन्दी कविता : हर घर पहुंचानी है जल-गंगा

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डॉ. रामकृष्ण सिंगी

वर्षा ने भर दिये ताल सब,
नदियां हुईं लबालब।
खेत हुए सरसब्ज सभी,
उगेंगी सब फसलें अब || 1 || 
 
बांध भरे आकंठ,
खुलें गेटों से बही जलधारें। 
विद्युत पूर्ति हुई मनमानी,
पूरे सब अरमान हमारे || 2 || 
 
जहां हुई अतिवृष्टि, बाढ़,
उन क्षेत्रों की चिंता हैं।
उन नुकसानों की भरपाई भरसक,
शासन को करना है || 3 ||
 
अब जल-संरक्षण, जल प्रदाय पर
योजनाबद्ध मुहीम चलानी।
अब तक वंचित हर घर तक
पहुंचाना है नल से पानी || 4 ||

 
प्रकृति के जल-वरदान को,
सजग होकर सहेजना है अब।
हर घर तक जल गंगा की
निर्मल धार भेजना है अब || 5 ||

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