Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

राष्ट्रीय बेरोजगारी दिवस पर कविता : मैं बेरोजगार हूं

हमें फॉलो करें राष्ट्रीय बेरोजगारी दिवस पर कविता : मैं बेरोजगार हूं
webdunia

राकेशधर द्विवेदी

Unemployment Poem
 
एक बेरोजगार की व्यथा
 
मैं एक बेरोजगार हूं
कर रहा बेगार हूं,
 
बड़े-बुजुर्गों की आंख से
मैं आज बेकार हूं।
 
इम्प्लॉयमेंट एक्सचेंज मेरा
आज शिवाला है,
फॉर्म भरते-भरते मेरा
निकल गया दिवाला है।
 
अब अंतिम आसरा
केवल बेरोजगारी भत्ता है,
जिसकी कि निर्णयकर्ता
आने वाली सत्ता है।
 
गहन धूप हो या बरसात
मैं करता हूं एक ही बात,
हे ईश्वर! कहीं से कर दो
एक अदद नौकरी की बरसात।
 
नौकरी बन गई है
सामाजिक हैसियत का पैमाना,
उसने आज तोड़ दिया
सामाजिक समरसता का ताना-बाना।
 
नौकरी पर्याय है नौकरशाही की
नौकरी पर्याय है लालफीताशाही की,
तमाम डिग्रियां और उपलब्धियां नौकरी की मुहताज हैं
रोजगार पाने वाला हर व्यक्ति सरताज है।
 
ऐसे में है प्रभु! एक बेरोजगार क्या करे?
क्या नौकरी खोजने का रोजगार करे?

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Homemade Makeup Primer : इन आसान टिप्स को अपनाकर घर में ही बनाएं face primer