- पुरुषोत्तम व्यास
चलो-चलो कवि
लिखों मेघों पर कविता
बरसेंगे आंगन-आंगन
हरा-भरा ह्दय होगा
हरा-भरा धरा का पटल होगा..
झूमेगा-झरना
पर्वत-मालाओं से
सरिता संग इतराएगा...
समीर बहेगी मनभावन
नौका भी डगमग डोलेगी
पखों की फड़-फड़ाहट
उपवन-उपवन बूदें-गूंजेंगी..
चलो-चलो कवि
लिखों मेघों पर कविता।