हमेशा मानव सभ्यताओं का विकास
नदियों के तट पर हुआ
शायद नदी यह समझती थी
कि उसके बलिदान के द्वारा
असभ्य मानव सभ्य हो सकता है
धीरे- धीरे असभ्य मानव
अविकसित से अर्द्धविकसित व
पुनः विकसित होता चला गया
विकास के इस क्रम में नदी
ने समर्पित कर दिया अपना
यौवन, अपना सर्वस्व
कभी बिजली उत्पादन के वास्ते
कभी सिंचाई के वास्ते
आज जब विकसित मानव
मंगल पर जीवन की तलाश में है
और नदी हाशिए पर आ गई है
तब उसके तमाम विकसित पुत्र
लिख रहे हैं उसके
देवत्व की गाथाएं
अनेक काव्य ग्रंथों में,
शोध प्रबन्धों में चलचित्रों में
और हाथ जोड़कर
जीर्ण-शीर्ण हो चुकी नदी को समझा रहे हैं
मां आप तो भागीरथी हो
पतित पावनी हो विकास का हलाहल तो
आपको ही पीना पड़ेगा।