हे मातृभूमि तेरे चरणों में अंतिम वंदन करता हूं,
पुष्प नहीं पर पुष्प तुल्य ये शीश समर्पित करता हूं।
मां तेरी विरहा ने मुझको बहुत रुलाया
धन्यभागी हूं मैं जो तूने पास बुलाया
जिन रक्तकणों में प्यार तेरा है
वो हर कण समर्पित करता हूं।
पुष्प नहीं पर पुष्प तुल्य ये.....
तेरा ऋणी रहा जननी मैं तो सदा जीवन में
ऋण चुकाने आऊंगा फ़िर से मानव तन में
तुझको मैं अपना हर जन्म समर्पित करता हूं।
पुष्प नहीं पर पुष्प तुल्य ये ....
धन्य वो मां जो भेजे रण में प्राणों से भी प्यारा लाल
उसकी करे जहां प्रतीक्षा कदम-कदम पर कलिकाल
काल भी मैं मर्दन करके खलभाल समर्पित करता हूं।
पुष्प नहीं पर पुष्प तुल्य ये.....।
कवि-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया