Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

वसंत पंचमी पर कविता : मन-मनोहारी हुई वसुंधरा

हमें फॉलो करें वसंत पंचमी पर कविता : मन-मनोहारी हुई वसुंधरा
webdunia

प्रीति दुबे

नीलाभ व्योम,पुलकित है रोम ,
धरिणी लावण्य हुई सुंदरा।
 स्वर्णिमपर्णा, प्रकृति है मोद ,
मन-मनोहारी हुई वसुंधरा।
 
फूटा विहान दृग खोल वृंद,
आलोकित पीली हुई धरा।
खिला अंग-अंग ,आया बसंत 
उषा की ‘प्रीत’हुई मुखरा।
 
रक्तिम सरसिज ,विहसित मुखरित,
सुकुमार कली हुई स्वर्णलता।
अरुणाभ क्षितिज,द्रष्टा विस्मित,
अलि गूँज हुई मधुरा-मधुरा।
 
मंजरी व्याप्त,वल्लरी संग 
सुरभित समीर हुई चंचला।
प्रस्फुटित कुसुम, वसुधा संभ्रांत,
नूतन ऋतु नव हुई कोंपला।
 
पल्लवित शाख़ तरु का संगम,
पादप तरुण ज्यों होने चला।
उल्लसित विहग मन में अनुराग ,
कूँजत  कानन में कोकिला।
 
है साथ कंत ,संग श्रांत वन ,
जैसे रहस्य कोई उज्जवला 
रंगी प्रेम रंग मन में उमंग,
मनवा की “प्रीत” हुई चंचला।
webdunia
 
प्रीति दुबे 'कृष्णाराध्या'  

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

बसंत पंचमी: बलिदान, भक्ति, शक्ति का स्मरण दिवस