Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

वसंत पंचमी पर कविता : वीणावादिनी शारदे

Advertiesment
हमें फॉलो करें Poem on Vasant Panchami Poem
Vasant Panchami Poem
सरस्वती वंदना- शुभ्र वस्त्रे हंसवाहिनी
 
- प्रो. सीबी श्रीवास्तव 'विदग्ध' 
 
शुभ्र वस्त्रे हंसवाहिनी 
वीणावादिनी शारदे, 
डूबते संसार को 
अवलंब दे आधार दे! 
हो रही घर-घर निरंतर 
आज धन की साधना 
स्वार्थ के चंदन अगरु से 
अर्चना-आराधना
आत्मवंचित मन सशंकित 
विश्व बहुत उदास है, 
चेतना जग की जगा मां 
वीणा की झंकार दे! 
सुविकसित विज्ञान ने तो 
की सुखों की सर्जना 
बंद हो पाई न अब भी 
पर बमों की गर्जना 
रक्तरंजित धरा पर फैला 
धुआँ और ध्वंस है 
बचा मृग मारिचिका से, 
मनुज को मां प्यार दे 
ज्ञान तो बिखरा बहुत 
पर, समझ ओछी हो गई 
बुद्धि के जंजाल में दब 
प्रीति मन की खो गई 
उठा है तूफान भारी, 
तर्क पारावार में 
भाव की मां हंसग्रीवी, 
नाव को पतवार दे 
चाहता हर आदमी अब 
पहुंचना उस गांव में 
जी सके जीवन जहां 
ठंडी हवा की छांव में 
थक गया चल विश्व 
झुलसाती तपन की धूप में 
हृदय को मां! पूर्णिमा सा 
मधु भरा संसार दे।

ALSO READ: वसंत पंचमी स्पेशल: सरस्वती वंदना


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Crispy पोटैटो-पनीर बड़ा से मनाएं अपने वेलेंटाइन को, पढ़ें आसान विधि