दुनियभर में युद्ध, संघर्ष, विध्वंस का दौर जारी है। लोगों के दिलों से नफरत निकालना और उनके दिलों को जोड़ना सचमुच बहुत ही मुश्किल है। ऐसे में बुद्ध की शिक्षा ही मनुष्य को बचा सकती है।
एक डाकू था अंगुलिमाल। जो भी उसके इलाके से गुजरता था उसे वह मारकर उसकी अंगुलियों की माला पहनता था। उसने कसम खाई थी 100 लोगों की अंगुलियां पहनने की। 99 पूरे हो चुके थे।
गौतम बुद्ध उसके रास्ते से गुजरते थे। अंगुलिमाल ने दूर से ही बुद्ध को आते देखा। सोचने लगा- सौवां आदमी मारकर आज मेरी कसम पूरी होगी, लेकिन बुद्ध के सुंदर मुख को देखर उसने कहा- रे श्रमण तुझे जान की परवाह नहीं। क्या तुझे मालूम नहीं, यह अंगुलिमान का क्षेत्र है। मैं तुमसे कहता हूं यहां से चले जाओ वर्ना में तुम्हें मार डालूंगा। तुम अकेले और निहत्थे हो, तुम्हें देखकर मेरा विचार बदल गया है। मैं फिर किसी दिन 100 पूरे कर लूंगा।
भगवान बुद्ध बोले- 'अंगुलिमाल! हम तो अपने रास्ते पर हैं। तुम सोचो तुम्हें अपनी कसम पूरी करनी है, तो करो। बुद्ध की इस बात पर अंगुलीमाल हैरान होकर सोच में पड़ गया। तब बुद्ध बोले- अंगुलिमान! अच्छा बताओं तुम्हारी इस तलवार से तुम इस वृक्ष की डाल को काट सकते हो।
अंगलुमाल ने कहा- यह कौन सी बड़ी बात है। अंगुलीमान से एक ही झटके से वृक्ष की डाल को काटकर रख दिया। तब बुद्ध बोले- अच्छा अब इस डाल को पुन: जोड़ सकते हो? यह सुनकर अंगुलीमाल बोला- यह असंभव है।
तब बुद्ध ने कहा- अंगुलीमाल! काटना आसान है, लेकिन जोड़ना मुश्किल। हम जोड़ने का काम करते हैं, काटने का नहीं। तुम जो काम करते हो वह कोई बच्चा भी कर सकता है।
अंगुलिमाल पर बुद्ध की बातों का असर गहरा पड़ा। उसने अपनी तलवार व हथियार फेंक दिए और प्रव्रज्या मांगी। 'आ भिक्षु!' कहकर भगवान ने उसे दीक्षा दी।
इससे सीख मिलती है कि हिंसा करना बहुत ही आसान है लेकिन किसी को अपना बनाना बहुत ही मुश्किल। किसी भी वस्तु को तोड़ना बहुत ही आसान है लेकिन उसे बनाना बहुत मुश्किल है। जो व्यक्ति सृजनकर्ता है वह महान है और जो विध्वंसकर्ता है वह शैतान है।
- ओशो रजनीश के किस्से और कहानियों से साभार