-संतोष कुमार
नई दिल्ली। विश्व पुस्तक मेले के 8वें दिन राजकमल प्रकाशन स्टॉल पर बॉम्बे की बार बालाओं की जिंदगी को वास्तविक ढंग से सामने लाती विवेक अग्रवाल की किताब 'बॉम्बे बार' का लोकार्पण सत्यनारायण जटिया और अशोक माहेश्वरी द्वारा हुआ। विवेक अग्रवाल की यह पुस्तक बार बालाओं के समाज को समझने की एक अलग खिड़की खोल सकती है। इस पुस्तक पर लेखक से विनीत कुमार ने विस्तार से बात की।
विवेक अग्रवाल किताब के बारे में बताते हैं कि बार बालाओं के जीवन की कुछ कठोर व मर्मभेदी सच्चाइयां हैं, जो कोई नहीं जानता। ये बार बालाएं क्या करती हैं? कितने दिन इस रूपहले संसार में अंधियाला जीवन जीती हैं? वे कहां गुम हो जाती हैं? कैसा इंसान उनके अंदर बसता है? इन बार बालाओं को कैसा पति, पिता, दोस्त, परिवार मिलता है? ऐसी हर जानकारी इस किताब में आईने की तरह साफ दिखती है।
सुपरिचित पत्रकार विवेक अग्रवाल की यह किताब मुंबई की बार बालाओं की जिंदगी की अब तक अनकही दास्तान को तफसील से बयान करती है। यह किताब बार बालाओं की जिंदगी की उन सच्चाइयों से परिचित कराती है, जो निहायत तकलीफदेह हैं। बार बालाएं अपने हुस्न और हुनर से दूसरों का मनोरंजन करती हैं। यह उनकी जाहिर दुनिया है। लेकिन शायद ही कोई जानता होगा कि दूर किसी शहर में मौजूद अपने परिवार से अपनी सच्चाई को लगातर छुपाती हुई वे उसकी हर जिम्मेदारी उठाती हैं।
आज के अंतिम सत्र में रामाशंकर कुशवाहा की पुस्तक 'लोक का प्रभाष' पर परिचर्चा की गई। इस लोक संबद्ध व्यक्तित्व की जीवनगाथा के अनेक पड़ाव हैं। इस जीवनी में आपको उन पड़ावों का विस्तृत और प्रामाणिक विवरण मिलेगा। प्रभाषजी के व्यक्तिगत जीवन के अनजाने प्रसंगों से आप रू-ब-रू होंगे। उनके सार्वजनिक जीवन के निर्भय सोच के संदर्भों से आप अवगत होंगे।