यह एक अद्भुत कहानी है। ओशो रजनीश ने अपने किसी प्रवचन में सुनाई थी। आप भी इस कहानी को पढ़े। दुनिया के किसी भी धर्म को समझने के लिए हमें यही करना चाहिए।
एक जैन शिष्य ने पूछा- जैन में ऐसा क्या है, जो बहुत बुद्धिमान लोग भी इसे समझ नहीं पाते?
गुरु ने एक पत्थर उठाया और पूछा- यदि एक शेर हमारी ओर बढ़ने लगे और हमला करने वाला हो तो क्या इस पत्थर से हमें कुछ मदद मिलेगी?
शिष्य बोला- हां, बिलकुल। हम यह पत्थर फेंककर उसे डरा सकते हैं और जान बचाने के लिए भाग सकते हैं, लेकिन इस सबका जैन से क्या लेना-देना।
गुरु ने शिष्य से पूछा- अच्छा बताओ, यदि मैं तुम्हें यह पत्थर फेंककर मारूं, क्या तब भी इसकी कोई उपयोगिता है?
शिष्य ने हैरान होकर कहा- कतई नहीं। यह तो बहुत ही बुरा होगा, लेकिन इसका मेरे प्रश्न से क्या संबंध है?
गुरु ने पत्थर नीचे गिरा दिया और बोले- हमारा मन बहुत शक्तिशाली है, पर वह इस पत्थर की ही भांति है। इसे अच्छाई और बुराई दोनों के लिए ही प्रयुक्त किया जा सकता है।
शिष्य ने कहा- इसका यह अर्थ है कि जैन को समझने के लिए अच्छा मन होना चाहिए। गुरु ने कहा- नहीं। केवल पत्थर गिरा देना ही पर्याप्त है।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि मन के हारे हार है और मन के जीते जीत। हार-जीत से मुक्ति मिले तो ही मिले सच्चा प्रित।