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कहानी : लिव-इन विथ संस्कार...

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सुशील कुमार शर्मा

मुक्ता को समझ में नहीं आ रहा है कि मोहित को कैसे समझाएं कि शादी के बिना एकसाथ रहना आज भी समाज में गुनाह माना जाता है। 
 
मुक्ता दिल्ली की एक सॉफ्टवेयर कंपनी में असिस्टेंट मैनेजर थी और मोहित उस कंपनी में मैनेजर। दोनों में प्यार हो गया और करीब एक साल से दोनों लिव-इन में रह रहे थे। मोहित अपने पिता की इकलौती संतान था। 
 
मुक्ता दो बहनें थीं। मुक्ता के पिता रेलवे के रिटायर्ड अफसर थे। मोहित के पिता मुंबई में प्रॉपर्टी का धंधा करते थे।
 
दोनों के माता-पिता को इसकी जानकारी लगी तो दोनों तरफ से विरोध हुआ और दोनों को शादी के लिए तैयार किया गया।
 
मोहित के दादाजी कस्बे में रहते थे। अच्छी उपजाऊ करीब 100 एकड़ जमीन के मालिक थे। शहर में राजनीतिक और सामाजिक रुतबा था। सामाजिक एवं नैतिक संस्कारों के लिए प्रतिबद्ध व्यक्तित्व था। मोहित के पिता को यही चिंता सता रही थी कि अगर बाबूजी को पता चल गया तो उनकी खैर नहीं। 
 
मोहित भी यह बात जानता था कि पापा, दादाजी का सामना नहीं कर सकेंगे। उसने इन सब परिस्थितियों से बचने के लिए पापा से कहा, 'पापा हम शादी यही मुंबई से करें तो कैसा रहेगा?'
 
'ये निर्णय तो बाबूजी ने बहुत पहले कर लिया है बेटा कि तुम्हारी शादी हमारे शहर से ही होगी। इसमें मैं कुछ नहीं कर सकता', पिता ने चिंतित स्वर में उत्तर दिया। 
 
'लेकिन पापा वहां सब दकियानूसी लोग हैं, अगर उन्हें हमारे बारे में पता चला तो क्या होगा?' 
 
'मुझे मेरी चिंता नहीं है लेकिन दादाजी आपको बहुत लताड़ेगें', मोहित ने चेतावनी देते हुए कहा।
 
'पुत्र के कर्म पिता को ही भोगने होते हैं बेटा, देखेंगे, जो होगा सो भुगतेंगे, लेकिन बाबूजी का निर्णय अटल है, उसे कोई नहीं बदल सकता', पिता ने लगभग निर्णय सुना दिया। 
 
मोहित को भी मालूम था कि पापा, दादाजी की बात नहीं टाल सकते अत: उसने भी बुरे मन से ही सही, निर्णय मान लिया। 
 
दादाजी ने शहर का सबसे महंगा शादी हाउस अपने पोते के लिए अनुबंधित किया। मुक्ता एवं उसके परिवार वालों को भी वहीं बुला लिया गया। सभी नातेदारों और रिश्तेदारों को निमंत्रित किया गया। 
 
मेहंदी की रस्म चल रही थी। सभी मस्त थे व नाच-गा रहे थे। तभी मोहित के फूफाजी को मोहित एवं मुक्ता के लिव-इन की बात कहीं से पता चली। वो मुस्कुराते हुए दादाजी के पास गए और उनके कान में कुछ कहा। 
 
दादाजी उनकी बात सुनकर सन्न रह गए और उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि बात सच हो सकती है। लेकिन जब फूफाजी ने बात को पुष्ट कर दिया तो उन्होंने दूसरे कमरे में जाकर मुक्ता, उसके माता-पिता, मोहित के माता-पिता, फूफाजी-बुआजी और अपनी पत्नी को बुलाया। 
 
क्यों साले साहब, जब सब पहले ही हो चुका है तो यह शादी का नाटक कर हम लोगों का समय क्यों बर्बाद कर रहे हो आप?' फूफाजी ने मोहित के पिता को इंगित करके कहा। 
 
'जीजाजी, वो ऐसा है कि मैं...' मोहित के पिता अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाए कि इसी बीच दादाजी बोल उठे।
 
'क्यों सुरेश, यही संस्कार दिए हैं अपने बेटे को? मैंने तो तुम्हें ऐसे संस्कार नहीं दिए थे', दादाजी ने अपने बेटे को लताड़ते हुए कहा। 
 
'लेकिन दादाजी इसमें बुराई क्या है? हमने प्रेम किया और साथ रहने लगे', मोहित ने अपना बचाव करते हुए कहा। 
 
'बुराई इसमें बेटा यह है कि ऐसा सिर्फ जानवर करते हैं और हम शायद जानवर नहीं हैं', दादाजी ने बहुत तीक्ष्ण स्वर में उत्तर दिया। 
 
'जो लड़की शादी से पहले ही अपना सबकुछ दूसरे को दे दे, उस पर कैसे विश्वास करोगी भाभी', बुआजी ने मोहित की मां को इंगित कर मुक्ता के मां-बाप पर कटाक्ष किया। 
 
मुक्ता का चेहरा तमतमा गया। वो कुछ बोलने वाली थी, पर उसकी मां ने उसका हाथ दाब दिया। मुक्ता के मां-बाप स्थिति की गंभीरता से वाकिफ थे अत: उन्होंने चुप रहना बेहतर समझा। 
 
'लेकिन दादाजी, आजकल महानगरों में ये सब आम है, इसे कानूनी वैधता भी है', मोहित ने अपना पक्ष रखते हुए कहा।
 
'आजकल बिना एक-दूसरे को जाने-बूझे शादी नहीं करनी चाहिए, शादियां टूट जाती हैं। मोहित बेटा, ये भारत है। भारत की 80 प्रतिशत जनता गांव-कस्बों व शहरों में रहती है, महानगरों में नहीं। भारत में संस्कार और सामाजिक मर्यादाएं निभाई जाती हैं। और जहां तक एक-दूसरे को जानने-बूझने की बात है तो इस भारत में करीब 95% शादियां मां-बाप द्वारा समझ-बूझ कर की जाती हैं, जो अधिकांशत: सफल होती हैं। क्या तुम्हारी दादी, तुम्हारी बुआ, तुम्हारी मां- इन सबने लिव-इन से शादी की है? क्या शादी से पहले ये एक-दूसरे को जानते थे? क्या ये शादियां असफल हैं?' दादाजी के तर्कों के सामने मोहित निरुत्तर-सा हो गया। 
 
'सिर्फ शारीरिक भूख बुझाने के अलावा लिव-इन का कोई औचित्य नहीं है', दादाजी ने मोहित को लताड़ते हुए कहा। 
 
हम जिस समाज में रहते हैं वहां विवाह एक एग्रीमेंट नहीं है कि पसंद आया तो निभाया, नहीं तो छोड़ दिया। विवाह दो समाजों, दो संस्कृतियों, दो परिवारों और दो आत्माओं का मिलन हैं। हां, मैं विवाह में जातिवाद का विरोध करता हूं', दादाजी ने वहां उपस्थित सभी को संबोधित करते हुए कहा। 
 
'आज इस विवाह में करीब 10 हजार लोग आ रहे हैं। क्या कोई बता सकता है कि वो सब यहां क्यों आ रहे हैं?' दादाजी ने एक प्रश्न उछाला। 
 
सब एक-दूसरे का मुंह देखने लगे। किसी को भी इस प्रश्न का उत्तर नहीं सूझा। 
 
'ये सब लोग मेरे यहां खाना खाने नहीं आ रहे हैं। ये सभी सामाजिक सरोकारों को स्वीकृति देने आ रहे हैं। ये आज की परंपराएं नहीं हैं, अनादिकाल से ये पवित्र परंपराएं चली आ रही हैं और भविष्य में भी रहेंगी। बिना सामाजिक स्वीकृति के सिर्फ पशु ही संबंध बनाते हैं।'
 
दादाजी ने मुक्ता के माता-पिता से पूछा, 'अगर आज मोहित इस लड़की से शादी करने से मना कर दे, इसे व्यभिचारिणी घोषित कर दे तो आपका और आपके परिवार का क्या भविष्य होगा, आपने सोचा है? समाज को क्या आप मुंह दिखा सकते हैं। हरेक मां-बाप की जिम्मेवारी होती है कि वह अपनी संतानों के क्रिया-कलापों पर नजर रखे और अगर कहीं वो गलत कर रहे हैं तो उन्हें रोके। अगर आपने मुक्ता को टोक दिया होता तो आज ये सब बातें आपको नहीं सुनना पड़तीं', दादाजी ने मुक्ता के परिवार को नसीहत देते हुए कहा। 
 
'हमें समाज में विकृति फैलाने वाली, समाज को तोड़ने वाली और व्यक्तिगत स्वार्थ और सुख केंद्रित कुरीतियों को बढ़ावा नहीं देना चाहिए। इससे परिवार, समाज और राष्ट्र का नुकसान होता है', दादाजी ने पूरे प्रकरण पर पटाक्षेप करते हुए कहा। 
 
'अब इस संबंध में कोई चर्चा नहीं होगी और सब लोग हर्षपूर्वक विवाह की तैयारी करो', दादाजी ने सबको निर्देशित करते हुए कहा। 
 
मोहित के पिता और मुक्ता के पिता ने दादाजी से क्षमा-याचना की। उन्हें अपनी गलती का अहसास हो रहा था कि काश! उन्होंने मुक्ता और मोहित को इस कुरीति के बारे में आगाह किया होता, लेकिन वे खुश थे कि सब ठीक-ठाक हो गया। 
 
जब सब लोग उस कमरे से निकल गए तो दादाजी ने दादी के कान में कहा, 'क्यों लिव-इन में रहोगी मेरे साथ?' 
 
दादी शर्माते हुए बोली, 'दादा और पोता एक जैसे हैं।' 
 
बाहर मधुर शहनाई गूंज रही थी!
 
 

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