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Motivational Context incident : अल हल्लाज मंसूर

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अनिरुद्ध जोशी

, गुरुवार, 20 फ़रवरी 2020 (12:10 IST)
यह कहानी ओशो रजनीश ने अपने किसी प्रवचन में सुनाई थी। यह कहानी सूफी संत मंसूर अल हल्लाज और उसके गुरु जुन्नैद की है। कहते हैं कि मंसूर पारसी से मुसलमान बन गया था। उसके गुरु जन्नैद ने उसे ज्ञान की शिक्षा दी थी।
 
 
कहते हैं कि संत अल हल्लाज मंसूर (858– मार्च 26, 922) को ईश निंदा के जुर्म में बहुत ही निर्मम तरीके से मारा गया था। कुछ लोग मानते हैं कि उसे फांसी दे दी गई थी। दरअसल, मंसूर को जब आत्मज्ञान हुआ तो उसके मुंह से निकल गया था- 'अनलहक'
 
 
वेदों में दो वाक्य है पहला है 'अहं ब्रह्मास्मि' अर्थात मैं ही ब्रह्म (ईश्‍वर) हूं। दूसरा है 'तत्वमसि' अर्थात वह तुम ही हो। अनहलक का अर्थ होता है मैं खुदा हूं। कुछ लोग इसका अर्थ 'मैं सच हूं' निकालते हैं।
 
 
यह सुनकर अब्बासी खलीफा अल मुक्तदर के आदेश पर मंसूर को जेल में डाल दिया गया। कहते हैं कि 11 साल जेल की यातनाएं सहने के बाद 922 ईस्वी में उन्हें एक बड़ी भीड़ के समक्ष लाया गया। भीड़ का हुज्‍जुम तमाशा देखने आया था। इसके बावजूद मंसूर के चेहरे पर जरा भी भय और पीड़ा नहीं थी।
 
 
लोगों को खरीफा का आदेश था कि इसे पत्थर से मारमारकर मार दिया जाए। जब भीड़ पत्थर मार रही थी तब भी मंसूर हंस रहा था, लेकिन अचानक भीड़ में किसी ने उसे फूल फेंककर मारा तब वह रोने लगा। फूल फेंने वाला कोई और नहीं बल्कि मंसूर का गुरु जुन्नैद था।
 
 
जुन्नैद ने उससे चुपचाप पूछा क्या हुआ, तुम मेरे फूल फेंकने पर रोए क्यों? मंसूर ने कहा- लोग मुझे पत्थर मारते हैं क्योंकि उन्हें ईश्वर का पता नहीं है वह निर्दोष हैं, लेकिन आप तो जानते हैं। आप उन लोगों की नजरों में मेरे खिलाफ होने का दिखावा क्यों कर रहे थे? आपने ही तो मुझे जिंदगीभर यही सिखाया था कि कभी दिखावें और पाखंड में मत जिना। आपने फूल फेंकर मेरा दिल तोड़ दिया।
 

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