यह कहानी ओशो ने अपने किसी प्रवचन में सुनाई थी। जीवन में सुख है तो दुख भी है और इसके अलावा भी बहुत कुछ होता है। सभी को स्वीकार करना जरूरी है।
मुल्ला नसरुद्दीन अपने बगीचे से प्रेम करता था। वसंत आते ही उनके बगीचे में हर तरफ फूलों ने अपनी छटा बिखेर दी। सुगंधित जूही और दूसरे सुंदर-सुंदर फुलों के बीच जब नसरूद्दीन ने जंगली फूल देखे तो उदास हो गया।
नसरूद्दीन ने उन जंगली फूलों को उखाड़कर फेंक दिया, लेकिन कुछ दिनों के भीतर ही वे जंगली फूल और खरपतवार फिर से उग आए।
नसरूद्दीन ने सोचा क्यों न खरपतवार दूर करने वाली दवा का छिड़काव करके इन्हें नष्ट कर दिया जाए। फिर उसे किसी जानकार ने बताया कि इस तरह तो अच्छे फूलों के नष्ट होने का खतरा भी है। तब नसरूद्दीन ने निराश होकर एक अनुभवी माली की सलाह ली।
माली ने व्यंग करते हुए कहा- जंगली फूल और यह खरपतवार तो शादीशुदा होने की तरह है। जहाँ बहुत-सी बातें अच्छी होती हैं वहाँ कुछ अनचाही दिक्कतें और तकलीफें भी पैदा हो जाती हैं। मेरी मानो नसरूद्दीन तो तुम इन्हें नजरंदाज करना सीखो। इन फूलों की तुमने कोई ख्वाहिश तो नहीं की थी, लेकिन अब वे तुम्हारे बगीचे का हिस्सा बन गए हैं।