Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

कही-अनकही 14 : गिन्नी की चकरघिन्नी

हमें फॉलो करें कही-अनकही 14 : गिन्नी की चकरघिन्नी
webdunia

अनन्या मिश्रा

हमें लगता है समय बदल गया, लोग बदल गए, समाज परिपक्व हो चुका। हालांकि आज भी कई महिलाएं हैं जो किसी न किसी प्रकार की यंत्रणा सह रही हैं, और चुप हैं। किसी न किसी प्रकार से उनपर कोई न कोई अत्याचार हो रहा है चाहे मानसिक हो, शारीरिक हो या आर्थिक, जो शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता, क्योंकि शायद वह इतना 'आम' है कि उसके दर्द की कोई 'ख़ास' बात ही नहीं। प्रस्तुत है एक ऐसी ही 'कही-अनकही' सत्य घटनाओं की एक श्रृंखला। मेरा एक छोटा सा प्रयास, उन्हीं महिलाओं की आवाज़ बनने का, जो कभी स्वयं अपनी आवाज़ न उठा पाईं।'
एना के मां-पापा आदि के परिवार से मिलने जबलपुर गए थे और कुछ ऐसा कह रहे थे...
‘वैसे हमारे यहां  तो लड़की वाले लड़के वालों को ‘शगुन’ में ही काफी सोना दे देते हैं । रस्में हैं भाई साहब, सालों से चली आ रही हैं। आप भी समझते ही हैं ।’
 
‘हां, फिर लड़का इंजिनियर या डॉक्टर हो तब तो 20-30 लाख कैश ही हो जाता है...’
 
‘हमारे यहां द्वारे का चार, सगाई की रीत, समधी मिलन... सभी रीति-रिवाजों में कैश या सोना ही लगता है...’
 
‘वैसे, क्या-क्या देंगे आप एना को सोने-चांदी में? हम तो इसलिए पूछ रहे हैं ताकि अगर हम कुछ दें तो डबल न हो जाए...’
 
सगाई और शादी वाले दिन एना के मां-पापा सारा सामान, जेवरात, नगद ले कर भोपाल से जबलपुर तक गए। ससुराल से एना को सगाई में चार सोने के कड़े मिले। बाकी तो कुछ चढ़ावा था नहीं, क्योंकि आदि के परिवार के लिए मुश्किल था सामान लाना... उनका कहना था कि घर दो घंटे दूर है होटल से, रास्ते में लूट-डकैती बहुत होती है न। कैसे ले आते? वैसे भी एना के घर से तो इतना सब आ ही रहा था न, तो फिर बहू सूनी कहां रहेगी। अपने मायके से जो मिला वही सब पहन लेगी। 
 
 आदि के घरवालों को कहीं भी ‘सालों से चली आ रही रीत’ या ‘नाते-रिश्तेदारों’ के सामने कोई ‘नीचा’ नहीं देखना पड़ा। एना के मायके की तरफ से सभी के लिए सोने की अंगूठियाँ, चांदी के सिक्के भर के थाल, एक-एक के लिए कपड़े, लिफ़ाफ़े... सभी कुछ था। इन्हीं में से एक थी द्वारे के चार के दौरान दी गई एक ‘सोने की गिन्नी’ जो एना के पापा ने आदि के पापा को दी थी ‘समधी मिलन’ में। 
 
फिर एना का गृह प्रवेश हुआ और शुरू हुई एना की ‘ट्रेनिंग’। सुबह कितनी बजे उठाना है, किस ऑर्डर में किसके पैर छूने हैं, कितनी बार छूने हैं, कैसे चलना है, कैसे बैठना है, कैसे बोलना है, कैसे सांस लेनी है। खैर, एक-दो दिन बाद सब रिश्तेदार अपने-अपने घर के लिए विदा लेने लगे। 
 
आदि के जीजाजी ने भी फिर घर में सबसे बुजुर्ग दादीजी के पैर छू कर विदा ली। दादी ने तोहफे में दे दी जीजाजी को वही ‘सोने की गिन्नी’ जो एना के पापा ने आदि के पापा को दी थी। जीजाजी ने मना किया, लेकिन दादीजी कहां मानने वाली थीं... फिर एना ने जीजाजी के पैर छुए। जीजाजी ने वही सोने की गिन्नी एना को आशीर्वाद स्वरुप दे दी। 
 
एना ने कहा, ‘जीजाजी, दादीजी ने आपको दी है.. आप ही रखिये न?’ 
 
लेकिन जीजाजी बोले, ‘नहीं एना, तुम रखो इसे मेरा आशीर्वाद मान कर।’ कह कर उन्होंने एना के हाथ में मुट्ठी बंधाई और गिन्नी बंद कर दी। 
 
‘मैं तो फिर दादीजी को दी दे दूंगी। वो अच्छे से संभाल लेंगी।’
 
दादीजी भी हंस दी, जीजाजी भी और एना भी।
 
इससे पहले कि एना दादीजी को गिन्नी लौटाती, जीजाजी के जाते से ही एक घर की महिला सदस्य आयीं, एना के हाथ से मुट्ठी खुलवाई और गिन्नी झपट कर बोलीं, ‘तुम नहीं संभाल पाओगी। छोड़ दो, हम रख लेते हैं। महंगी है।’
 
दादीजी का ध्यान तो नहीं गया शायद, लेकिन एना जानती थी कि ये वही गिन्नी है जो उसके पापा ने दी थी। 
 
‘जी, आंटीजी, मैं जानती हूँ कि बहुत महंगी है । मेरे पापा ने ही तो दी थी ‘इनके’ पापाजी को। उसी गिन्नी की तो चकरघिन्नी हो रही है ये। सही कहा आपने, मैं नहीं संभाल पाऊंगी। वैसे ही जैसे वो दूध के कटोरे में से अंगूठी ढूँढने वाले खेल में जीतने के बाद भी शायद नहीं संभाल पाती, है न?’
 
 ऐसा कह कर एना उन सभी घनचक्करों की सोच पर मुस्कुरा कर चल दी। 
अनन्या मिश्रा की ऐसी ही अन्य मर्मस्पर्शी कहानियां यहां पढ़ें
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Noise pollution and heart attack: ट्रैफ‍िक का शोर आपको दे सकता है ‘हार्ट अटैक’, क्‍या कहती है यह Research