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8 अप्रैल बंजारा दिवस, जानिए भारत के बंजारा समाज के रोचक तथ्‍य

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, शनिवार, 8 अप्रैल 2023 (11:32 IST)
8 अप्रैल को विश्‍व बंजारा दिवस मनाया जा रहा है। भारत में घुमंतू जातियां, जो कभी भी एक स्थान पर नहीं रहती वे पारथी, सांसी, बंजारा तथा बावरिया आदि मानी जाती हैं। इसमें बंजारा समुदाय को सबसे बड़ा समुदाय माना जाता है। देश ही नहीं विदेश में भी बंजारा समुदाय हर जाति और धर्म में विद्यमान है।
 
- देश विदेश में यह समुदाय कई नामों से जाना जाता है। जैसे योरप में जिप्सी, रोमा आदि। वहीं भारत में गोर बंजारा, बामणिया बंजारा, लदनिया बंजारा आदि। 
 
- पूर्ण भारत में बंजारा समाज की जनसंख्‍या अनुमानीत रूप से 6 करोड़ से ज्यादा बताई जाती है। वनजारा शब्द से ही बंजारा शब्द बना है। भारत में मुख्य रूप से बंजारा समाज की 51 से अधिक जातियां पाई जाती हैं।
 
- एक शोध के अनुसार बंजारा एक व्यापारिक समाज रहा है। व्यापार करने की दृष्टि से ये एक स्थान से दूसरे स्थान पर डेरा डालते रहते थे। मुगल और अंग्रेजों के काल में इन्हें सामग्री और रसद भेजने के काम में लगा दिया गया तब से इनकी दशा बदल गई।
 
- बंजारा समाज जहां से भी गुजरता और डेरा डालता था वहां पर वह जल की व्यवस्था जरूर करता था। उन्हीं के कारण कई जगहों पर कुएं, बावड़ी और तालाब का निर्माण हुआ है। पशुपालन और पशुओं की रक्षा का कार्य भी इन्होंने ही संभाला। 
 
- देश और धर्म के विकास में बंजारा समुदाय की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस समाज में भी कई बड़े संत हुए हैं। बंजारा धर्मगुरु संत सेवालाल सबसे बड़ा नाम है जो करीब  284 वर्ष पूर्व हुए थे।
 
- बंजारा समाज में संतों के अलावा कई वीर योद्धा भी हुई हैं जिन्होंने मुगलों और अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। चाहे गोरा बादल हो या जयमल फत्ता, संत सेवालाल जी हो या फिर रूप सिंह जी महाराज जिसको समाज अपना आदर्श मानता है।
 
- अखिल भारतीय हिंदू गोर बंजारा और लबाना नायकड़ा समाज कुंभ की तैयारी करता है। संपूर्ण बंजारा समाज हिन्दू धर्म का पालन करता है। यहां तक कि जो विदेश की बंजारा जातियां हैं वे भी कहीं न कहीं मूल में हिन्दू धर्म से जुड़ी हुई है। 
 
- बंजारा समुदाय के अंतर्गत कई प्रकार के गोत्र पाए जाते हैं- 6 चौहान, 7 राठौर, 12 पवार, 1 जाधव, 1 तुंवर। इसमें भी सपावट, कुर्रा, कालथिया, लादड़िया, कैडुत, मूड़ आदि गोत्र सम्मलित है। अधिकतर चंद्रवंशी या सूर्यवंशी हैं।
 
- बंजारा समुदाय के लोकगीत, लोककथा, वेशभूषा, खान पान, रीति रिवाज, लोकोक्ति, भाषा, बोली आदि कई बातें ब हुत ही रोचक है। इसके संवरक्षण की जरूरत है।

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