भारतीय आध्यात्मिक गुरु सत्य साईं बाबा (Sathya Sai Baba) सभी धर्म के लोगों के लिए प्रेरणास्रोत थे। उनका मानना था कि हर व्यक्ति का कर्तव्य यह सुनिश्चित कराना है कि सभी लोगों को आजीविका के लिए मूल रूप से जरूरी चीजों तक पहुंच मिले। उनके विचार आज भी बहुत प्रभावशाली हैं। उनके विचारों से न केवल आप अपना बल्कि दूसरे के जीवन को भी खुशहाल और सुखदायी बना सकते हैं।
यहां आपके लिए प्रस्तुत हैं सत्य साईं बाबा के 20 अनमोल विचार-
1. प्रभु के साथ जीना शिक्षा है, प्रभु के लिए जीना सेवा है। प्रभुमय जीना ही बोध है।
2. यदि तुम प्रभु में सर्वदा पूर्ण विश्वास बना कर रखोगे, तो तुम्हें उसकी अनुकंपा अवश्य ही प्राप्त होगी। अनुकंपा कर्म का दुःख दूर करती है। प्रभु मनुष्य को कर्म से पूर्ण रूप में बचा सकते हैं।
3. ये तीन बातें सर्वदा स्मरण रखो- संसार पर भरोसा ना करो। प्रभु को ना भूलो। मृत्यु से ना डरो।
4. तुम मेरी ओर एक पग लो, मैं तुम्हारी ओर सौ पग लूंगा।
5. दिन का आरंभ प्रेम से करो। प्रेम से दिन व्यतीत करो। प्रेम से ही दिन को भर दो। प्रेम से दिन का समापन करो। यही प्रभु की ओर का मार्ग है।
6. सभी कर्म विचारों से उत्पन्न होते हैं। तो विचार वो हैं जिनका मूल्य है।
7. अहंकार लेने और भूलने में जीता है। प्रेम देने तथा क्षमा करने में जीता है।
8. प्रेम रहित कर्तव्य निंदनीय है। प्रेम सहित कर्तव्य वांछनीय है। कर्तव्य रहित प्रेम दिव्य है।
9. शिक्षा हृदय को मृदु बनाती है। यदि हृदय कठोर है, शिक्षित होने का अधिकार नहीं मांगा जा सकता।
10. सहायता सर्वदा करो। दुःख कभी मत दो।
11. धन आता और जाता है। नैतिकता आती है तथा बढ़ती है।
12. यदि धन की हानि हो तो कोई हानि नहीं हुई। यदि स्वास्थ्य की हानि हो तो कुछ हानि हुई। यदि चरित्र की हानि हुई तो समझो सब कुछ ही क्षीण हो गया।
13. तुम एक नहीं तीन प्राणी हो- एक जो तुम सोचते हो तुम हो, दूसरा जो दूसरे सोचते हैं तुम हो, तीसरा जो तुम यथार्थ में हो।
14. विचार के रूप में प्रेम सत्य है। भावना के रूप में प्रेम अहिंसा है। कर्म के रूप में प्रेम उचित आचरण है। समझ के रूप में प्रेम शांति है।
15. शिक्षा का मंतव्य धनार्जन नहीं हो सकता। अच्छे मूल्यों का विकास ही शिक्षा का एकमात्र मंतव्य हो सकता है।
16. समय से पहले आरंभ करो। धीरे चलो। सुरक्षित पहुंचों।
17. उतावलापन व्यर्थता देता है। व्यर्थता चिंता देती है। इसलिए उतावलेपन में मत रहो।
18. देना सीखो, लेना नहीं। सेवा करना सीखो, राज्य नहीं।
19. कर्तव्य ही भगवान है तथा कर्म ही पूजा है। तिनके सा कर्म भी भगवान के चरणों में डाला फूल है।
20. सभी से प्रेम करो। सभी की सेवा करो।