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27 जून को निकलेगी विश्वप्रसिद्ध जगन्नाथ 'रथयात्रा', 9 दिन तक चलेगी

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पं. हेमन्त रिछारिया

, शनिवार, 14 जून 2025 (15:05 IST)
जगन्नाथ पुरी में विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा का शुभारंभ आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से होता है। जिसमें भगवान कृष्ण और बलराम अपनी बहन सुभद्रा के साथ रथों पर सवार होकर श्रीगुण्डीचा मंदिर के लिए प्रस्थान करेंगे और अपने भक्तों को दर्शन देंगे। 
 
जगन्नाथ रथयात्रा प्रत्येक वर्ष की आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को प्रारंभ होती है। इस वर्ष यह रथयात्रा 27 जून 2025, शुक्रवार से प्रारंभ होगी। वर्षों बाद इन दिन पुष्य नक्षत्र का संयोग बन रहा है जो इस पर्व को विशिष्ट बनाता है। श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल दशमी तक नौ दिन तक चलती है। यह रथयात्रा वर्तमान मंदिर से 'श्रीगुण्डीचा मंदिर' तक जाती है इस, कारण इसे 'श्रीगुण्डीचा यात्रा' भी कहते हैं।ALSO READ: अविवाहित प्रेमी जोड़े क्यों नहीं जा सकते हैं जगन्नाथ मंदिर?
 
इस यात्रा हेतु लकड़ी के तीन रथ बनाए जाते हैं- बलरामजी के लिए लाल एवं हरे रंग का 'तालध्वज' नामक रथ; सुभद्रा जी के लिए नीले और लाल रंग का 'दर्पदलना' नामक रथ और भगवान जगन्नाथ के लिए लाल और पीले रंग का 'नन्दीघोष' नामक रथ बनाया जाता है। रथों का निर्माण कार्य अक्षय तृतीया से प्रारंभ होता है। रथों के निर्माण में प्रत्येक वर्ष नई लकड़ी का प्रयोग होता है। 
 
लकड़ी चुनने का कार्य बसन्त पंचमी से प्रारंभ होता है। रथों के निर्माण में कहीं भी लोहे व लोहे से बनी कीलों का प्रयोग नहीं किया जाता है। रथयात्रा के दिन तीनो रथों मुख्य मंदिर के सामने क्रमशः खड़ा किया जाता है। जिसमें सबसे आगे बलरामजी का रथ 'तालध्वज' बीच में सुभद्राजी का रथ 'दर्पदलना' और तीसरे स्थान पर भगवान जगन्नाथ का रथ 'नन्दीघोष' होता है।ALSO READ: क्यों अपनी मौसी के घर जाते हैं भगवान जगन्नाथ? यहां जानिए वजह
 
'पोहंडी बिजे' से होगी रथयात्रा की शुरुआत-
 
रथयात्रा के दिन प्रात:काल सर्वप्रथम 'पोहंडी बिजे' होती है। भगवान को रथ पर विराजमान करने की क्रिया 'पोहंडी बिजे' कहलाती है। फिर पुरी राजघराने वंशज सोने की झाडू से रथों व उनके मार्ग को बुहारते हैं जिसे 'छेरा पोहरा' कहा जाता है। 'छेरा पोहरा' के बाद रथयात्रा प्रारंभ होती है। रथों को श्रद्धालु अपने हाथों से खींचते हैं जिसे 'रथटण' कहा जाता है। सायंकाल रथयात्रा 'श्रीगुण्डीचा मंदिर' पहुंचती है। जहां भगवान नौ दिनों तक विश्राम करते हैं और अपने भक्तों को दर्शन देते हैं। 
 
मंदिर से बाहर इन नौ दिनों के दर्शन को 'आड़प-दर्शन' कहा जाता है। दशमी तिथि को यात्रा वापस होती है जिसे 'बहुड़ाजात्रा' कहते हैं। वापस आने पर भगवान एकादशी के दिन मंदिर के बाहर ही दर्शन देते हैं जहां उनका स्वर्णाभूषणों से श्रृंगार किया जाता है जिसे 'सुनाभेस' कहते हैं। द्वादशी के दिन रथों पर 'अधर पणा' (भोग) के पश्चात भगवान को मंदिर में प्रवेश कराया जाता है इसे 'नीलाद्रि बिजे' कहते हैं।
 
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र

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