Sanjha ke geet: संजा लोकपर्व में हर शाम लड़कियां समूहों में मिलकर संजा बाई की आरती और गीत गाती हैं। ये गीत इस पर्व का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इन गीतों के बोल बहुत सरल और प्यारे होते हैं, जो संजा की कलाकृति और रोजमर्रा की गतिविधियों पर आधारित होते हैं। संजा गीत लड़कियां समूह में गाती हैं, जिनमें नारी जीवन, विवाह, प्रेम, और पारिवारिक मूल्यों की झलक होती है। साथ ही यह पर्व सहभागिता, समाज-भाव और लोक कला के संरक्षण को भी बढ़ावा देता है।
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यहां वेबदुनिया के पाठकों के लिए संजा लोकपर्व के कुछ प्रमुख और लोकप्रिय गीत दिए जा रहे हैं:
1. सूरज म्हारा केवड़ो: यह गीत सूर्योदय और संजा के सुबह उठने का वर्णन करता है।
गीत: सूरज म्हारा केवड़ो,
संजा म्हारी धोबण बाई।
कहां से आई रे सूरज,
कहां गई रे संजा बाई।
धूप में खड़ी रे सूरज,
छांव में खड़ी रे संजा बाई।
ओड़ो-ओड़ो,
संजा म्हारी धोबण बाई।
2. एकली खड़ी रे म्हारी संजा: यह गीत संजा के अकेले खड़े होने और उसकी कला का वर्णन करता है।
गीत: एकली खड़ी रे म्हारी संजा,
आंगण में खड़ी रे।
हाथ में म्हारे गोबर,
हाथ में फूल रे।
फूलों से म्हारी संजा,
फूलों से गोबर रे।
एकली खड़ी रे म्हारी संजा,
आंगण में खड़ी रे।
3. संजा बाई का किला: यह गीत संजा के बनाए गए किले और उसके दरवाजों के बारे में है।
गीत: किला बनायो रे संजा बाई,
किले कोनी केत है।
किला तो बनायो,
दरवाजा कोनी केत है।
जा-जा संजा बाई,
म्हारी बाई।
किले के द्वार खोल दे,
म्हारी बाई।
4. संजा म्हारी केत है: यह गीत संजा के श्रृंगार और उसकी सुंदरता को दर्शाता है।
गीत: संजा म्हारी केत है,
गांव में जात है।
पायला में म्हारी संजा,
घुंघरू बजात है।
आंखा में म्हारी संजा,
काजल लगात है।
संजा म्हारी केत है,
गांव में जात है।
5. संजा बाई को ले जाओ : यह गीत विदाई के समय गाया जाता है, जब संजा का विसर्जन किया जाता है।
गीत: संजा बाई को ले जाओ,
संजा बाई को ले जाओ रे।
हाथों में थाली,
ओर में थाली रे।
पांच पूड़ी,
पांच पकवान रे।
संजा बाई को ले जाओ,
संजा बाई को ले जाओ रे।
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