shani dev story n wife names : हिन्दू धर्म के अनुसार शनिवार का दिन शनिदेव की पूजा के लिए जाना जाता है। अत: शनिवार के दिन शनिदेव की पूजा-अर्चना करने से शनि ग्रह दोष से मुक्ति तथा ढैय्या और साढ़े साती का प्रभाव दूर होता है।
आइए यहां जानते हैं शनिदेव की पत्नियों के 8 नाम और उनके श्राप की कथा के बारे में-
ज्योतिष शास्त्र और पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शनिदेव की 8 पत्नियां हैं। और हर शनिवार को नियमित रूप से जो भी व्यक्ति शनिदेव की इन 8 पत्नियों के नामों का जाप करता हैं, उससे शनिदेव प्रसन्न रहते है तथा उस पर अपनी कृपा हमेशा बनाए रखते है।
यहां जानें शनिदेव की पत्नियों के नाम : shanidev ki patni
1. ध्वजिनी,
2. धामिनी,
3. कंकाली,
4. कलहप्रिया,
5. कंटकी,
6. तुरंगी,
7. महिषी,
8. अजा।
ये भगवान शनिदेव की 8 पत्नियां है।
शनिदेव की पत्नियों का मंत्र : shani dev ki patniyon ka naam mantra
- ध्वजिनी धामिनी चैव कंकाली। कंटकी कलही चाथ तुरंगी महिषी अजा।।
शनेर्नामानि पत्नीनामेतानि संजपन पुमान्। दु:खानि नाशयेन्नित्यं सौभाग्यमेधते सुखम्।।
shani dev story : कथा : धार्मिक ग्रंथों में वर्णित जानकारी के अनुसार शनिदेव साक्षात रुद्र हैं। उनकी शरीर क्रांति इन्द्रनील मणि के समान है। शनि भगवान के शीश पर स्वर्ण मुकुट, गले में माला तथा शरीर पर नीले रंग के वस्त्र सुशोभित हैं। वे क्रूर ग्रह माने जाते हैं। इनकी दृष्टि में क्रूरता का मुख्य कारण उनकी पत्नी का श्राप है। शनिदेव गिद्ध पर सवार रहते हैं। हाथों में क्रमश: धनुष, बाण, त्रिशूल और वरमुद्रा धारण करते हैं। वे भगवान सूर्य तथा छाया (सवर्णा) के पुत्र हैं।
ब्रह्म पुराण के अनुसार बाल्यकाल से ही शनिदेव भगवान श्री कृष्ण के अनन्य भक्त थे। वे भगवान श्री कृष्ण के अनुराग में निमग्न रहा करते थे। युवावस्था में उनके पिताश्री ने उनका विवाह चित्ररथ की कन्या से करवा दिया। उनकी पत्नी सती, साध्वी एवं परम तेजस्विनी थी।
एक रात्रि वह ऋतु स्नान कर पुत्र प्राप्ति की इच्छा लिए शनिदेव के पास पहुंची, पर देवता तो भगवान के ध्यान में लीन थे। उन्हें बाह्य संसार की सुधि ही नहीं थी। उनकी पत्नी प्रतीक्षा करके थक गई। उनका ऋतकाल निष्फल हो गया। इसलिए उन्होंने क्रुद्ध होकर शनिदेव को श्राप दे दिया कि आज से जिसे तुम देखोगे, वह नष्ट हो जाएगा। तब ध्यान टूटने पर शनिदेव ने अपनी पत्नी को मनाया।
उनकी धर्मपत्नी को अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ किंतु श्राप के प्रतिकार की शक्ति उनमें नहीं थी, तभी से शनिदेव अपना सिर नीचा करके रहने लगे, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि किसी का अनिष्ट हो। अत: तभी से शनिदेव की नजर झुकी ही रहती है।
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