HIGHLIGHTS
• सिंधारा दूज का महत्व जानें।
• सिंधारा दूज कब है 2024 में।
• सिंधारा दोज के बारे में जानकारी।
Sindhara dooj : Sindhara dooj : चैत्र मास में शुक्ल पक्ष की और नवरात्रि की प्रतिपदा के अगले यानी दूसरे दिन द्वितीया तिथि पर सिंधारा दूज/ सिंधारा दौज का पर्व मनाया जाता है। हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार सिंधारा दूज को सौभाग्य दूज, गौरी द्वितिया या स्थान्य वृद्धि के रूप में भी जाना जाता है। हिन्दू पंचांग कैलेंडर के अनुसार वर्ष 2024 में सिंधारा दूज का पर्व 10 अप्रैल 2024, दिन बुधवार को मनाया जा रहा है। क्यों मनाते हैं सिंधारा दूज, आइए जानते हैं यहां-
इस दिन माता के रूप ब्रह्मचारिणी और गौरी रूप की पूजा की जाती है। यह त्योहार विशेषकर उत्तर भारतीय महिलाओं में प्रचलित है, परंतु तमिलनाडु, केरल में, सिंधारा दूज के दिन महेश्वरी सप्तमत्रिका पूजा की जाती है। यह एक ऐसा दिन है, जो सभी बहूओं को समर्पित उत्सवभरा दिन हैं।
धार्मिक मान्यता के अनुसार सिंधारा दूज का त्योहार सभी बहुओं को समर्पित होता है। इस दिन महिलाएं उपवास रखकर अपने परिवार और पति की लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं। वे अपने जीवन को मंगलकारी बनाने तथा वैवाहिक सुख की कामना करती हैं।
इस दिन को लेकर मान्यता के चलते चंचुला देवी ने मां पार्वती को सुंदर वस्त्र, आभूषण, चुनरी चढ़ाई थीं, जिससे प्रसन्न होकर मां ने उन्हें अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान दिया था। इसी कारण इस सास अपनी बहुओं को उपहार भेंट करती हैं और बहुएं इन उपहारों के साथ अपने मायके जाती है। सिंधारा दूज के दिन, बहुएं अपने माता-पिता द्वारा दिए गए बाया लेकर अपने ससुराल वापस आ जाती हैं। बाया में फल, व्यंजन और मिठाई और धन शामिल होता है। संध्याकाल में गौर माता या माता पार्वती की पूजा करने के बाद, अपने मायके से मिला बाया अपनी सास को यह भेंट करती हैं।
सिंधारा दूज पर्व को बहुत उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। कुछ महिलाएं इस दिन उपवास करती है तो कुछ पूजा नियमों का पालन करती हैं। बता दें कि इस दिन चैत्र नवरात्रि की दूसरी देवी माता ब्रह्मचारिणी और गौरी रूप की पूजा होती है तथा एक-दूसरे को उपहारों का आदान-प्रदान करती हैं। इस दिन विवाहित और अविवाहित महिलाएं दोनों अपने हाथ-पैरों में मेहंदी लगाती हैं। इस दिन नई चूड़ियां खरीदती हैं। महिलाएं अपने पारंपरिक वस्त्र तथा आभूषण पहनती हैं और सिंधारा दूज के दिन बहुओं को उनकी सास द्वारा उपहार देने की परंपरा भी है। यह एक जीवंत उत्सव हैं।
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