हिंदू धर्म में दान देने का खास महत्व है। मंदिर, तीर्थ और धार्मिक आयोजन में दान करना चाहिए। दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और जातक का धन भी बढ़ता है परंतु दान किसे कहां और कब देना चाहिए इसका उल्लेख भी पुराणों में मिलता है। दान करने से जातक कंगाल भी हो सकता है। आओ जानते हैं कि किस तरह यह होता है।
पुराणों में अनेकों दानों का उल्लेख मिलता है। जैसे गौ दान, छाता दान, जुते-चप्पल दान, पलंग दान, कंबल दान, सिरहाना दान, दर्पण कंघा दान, टोपी दान, औषध दान, भूमिदान, भवन दान, धान्य दान, तिलदान, वस्त्र दान, स्वर्ण दान, घृत दान, लवण दान, गुड़ दान, रजन दान, अन्नदान, विद्यादान, अभयदान और धनदान। इनमें से मुख्य है- 1.अन्न दान, 2.वस्त्र दान, 3.औषध दान, 4.ज्ञान दान एवं 5.अभयदान।
कुछ दान ऐसे भी होते हैं जो किसी व्यक्ति विशेष को नहीं दिए जाते हैं। जैसे दीपदान, छायादान, श्रमदान आदि। मुख्यत: दान दो प्रकार के होते हैं- एक माया के निमित्त किया गया दान और दूसरा भगवान के निमित्त किया गया दान। पहले दान में स्वार्थ होता है और दूसरे दान में भक्ति।
वेदों में तीन प्रकार के दाता कहे गए हैं- उत्तम, मध्यम और निकृष्ट।
1. उत्तम : धर्म की उन्नति रूप सत्यविद्या के लिए, मंदिर निर्माण, पंडित, पुरोहित, शिक्षा हेतु, समाज, पशु, पक्षियों के लिए, पर्यावरण के लिए या गरीबों के लिए जो देता है वह उत्तम दान है।
2. मध्यम : कीर्ति या स्वार्थ के लिए जो देता है तो वह मध्यम है। कई लोग अपनी प्रसिद्धि, मान-सम्मान के लिए भी दान देते हैं। ऐसे लोग भी एक दिन कंगाल हो जाते हैं।
3.निकृष्ट : जो वेश्यागमनादि, भांड, भाटे, मनोरंजन समीति आदि को निष्प्रयोजन जो देता है वह निकृष्ट माना गया है। ऐसा दान करने से जातक कंगाल हो जाता है।
4. यथाशक्ति से ज्यादा : यदि आप अपनी शक्ति से ज्यादा दान देते हैं तो भी कंगाल हो जाएंगे।