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वे पलायन जिन्होंने इतिहास बदलकर रख दिया

हमें फॉलो करें वे पलायन जिन्होंने इतिहास बदलकर रख दिया

अनिरुद्ध जोशी

धर्म-अधर्म की जंग, प्राकृतिक आपदा और वैराग्य भाव के चलते दुनिया के कई ऐसे समाज, कौम या धार्मिक समूह रहे हैं जिनको कई कारणों से अपने देश या स्थान को छोड़कर किसी अन्य देश या स्थान पर जाना पड़ा। इस तरह के पलायन के चलते एक ओर जहां मानवता दर-ब-दर हुई, तो दूसरी ओर मानव ने एक नया रास्ता, नई खोज, नया देश और नई भूमि खोजी। आओ जानते हैं ऐसे ही पलायनों के बारे में जिन्होंने इतिहास बदलकर रख दिया।
 
 
यदु का पलायन : ययाति के प्रमुख 5 पुत्र थे- 1. पुरु, 2. यदु, 3. तुर्वस, 4. अनु और 5. द्रुहु। ययाति यदु से रुष्ट हो गए थे और उसे शाप दिया था कि तुम और तुम्हारे वंशज को कभी राजपद नहीं मिलेगा। यदु और उनके वंशज कभी एक स्थान पर टिक नहीं पाए। उनको हर जगह से पलायन ही करना पड़ा। वे जहां भी गए उन्होंने एक नया नगर बसाया और अंतत: उस नगर का विध्वंस हो गया।
 
 
भगवान श्रीकृष्ण का पलायन : कस वंध के बाद उसके श्वसुर मगधपति जरासंध ने कृष्ण और यदुओं का नामोनिशान मिटा देने की ठान ली। आखिरकार श्रीकृष्ण ने मथुरा छोड़ने का निर्णय लिया। भगवान कृष्ण ने जब मथुरा छोड़ी थी, तब वे अपने खानदान के 18 कुल के साथ द्वारिका चले गए थे। यह दुनिया का पहला इतने बड़े पैमाने पर हुआ पलायन था।
 
 
यदुवंशियों का पलायन : मौसुल युद्ध के बाद यदुवंशियों का विनाश हो गया। इसके बाद श्रीकृष्ण के देह त्याग के बाद जब द्वारिका नगरी जल में डूब रही थी तब अर्जुन सभी यदुवंशी स्त्री और बच्चों को लेकर हस्तिनापुर के लिए निकले। हजारों की संख्या में एक जगह पड़ाव डाला तब उनके साथ लूटपाट हुई और लगभग सभी मारे गए। बस बच गया था तो श्रीकृष्ण का प्रपोत्र वज्रनाभ।
 
 
हजरत इब्राहीम : कहते हैं कि बाढ़ के 350 साल बाद हजरत नूह की मौत हो गई। नूह के मरने के ठीक 2 साल बाद हजरत इब्राहीम का जन्म हुआ। एक दिन यहोवा के आदेश पर हजरत इब्राहीम ने उर शहर को छोड़ दिया। वे कनान पहुंचे। यहां इब्राहीम के खानाबदोश वंशज और उनके पुत्र इसाक और जेकब, जो तब तक 12 यहूदी कबीले बन चुके थे, मिस्र चले गए। लेकिन ह. इब्राहीम मक्का आए तो अपने पुत्र इस्माइल से कहा कि यहोवा ने मुझे हुक्म दिया है कि इस जगह एक घर बनाऊं। तब उन्होंने खाना-ए-काबा का निर्माण किया।
 
 
जरथुस्त्र : यह घटना 1500 ईसा पूर्व की है। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि फारस के शहंशाह विश्तास्प के शासनकाल में पैगंबर जरथुस्त्र ने दूर-दूर तक भ्रमण कर अपना संदेश दिया। उनके इस संदेश के कारण ही कुछ समूह उनका विरोधी हो चला था जिसके चलते अपने अनुयायियों के साथ वे उत्तरी ईरान में जाकर बस गए थे। भारत के कई इतिहासकारों द्वारा संत जरथुष्ट्र को ऋग्वेद के अंगिरा, बृहस्पति आदि ऋषियों का समकालिक माना जाता है। प्राचीन फारस (आज का ईरान) जब पूर्वी यूरोप से मध्य एशिया तक फैला एक विशाल साम्राज्य था, तब ईशदूत जरथुस्त्र ने एक ईश्वरवाद का संदेश देते हुए पारसी धर्म की नींव रखी थी।
 
 
हजरत मूसा : यह घटना लगभग 1300 ईसा पूर्व की है। उस काल में मिस्र में फेरो का शासन था। हजरत इब्राहीम मध्य में उत्तरी इराक से कनान चले गए थे। वहां से उनके खानाबदोश वंशज और उनके पुत्र इसाक और इस्माइल, जो तब तक 12 यहूदी कबीले बन चुके थे, मिस्र चले गए थे। मिस्र में उन्हें कई पीढ़ियों तक गुलाम बनकर रहना पड़ा। वहीं वे मिस्र में मिस्रियों के साथ रहते थे, लेकिन दोनों ही कौमों में तनाव बढ़ने लगा तब मिस्री फराओं के अत्याचारों से तंग आकर हिब्रू कबीले के लोग हजरत मूसा के नेतृत्व में पुन: अपने देश इसराइली कनान लौट आए। लौटने की इस यात्रा को यहूदी इतिहास में 'निष्क्रमण' कहा जाता है।
 
 
पारसियों का पलायन : इस्लाम की उत्पत्ति के पूर्व प्राचीन ईरान में जरथुष्ट्र धर्म का ही प्रचलन था। 7वीं शताब्दी में तुर्कों और अरबों ने ईरान पर बर्बर आक्रमण किया और कत्लेआम की इंतहा कर दी। 'सॅसेनियन' साम्राज्य का पतन हो गया तब पारसी लोग अपना देश छोड़कर भारत की ओर लाखों की तादाद में पलायन कर गए। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार 8वीं से 10वीं सदी के बीच पारसियों का निष्‍क्रमण होता रहा। सबसे पहले पारसी सिन्ध और गुजरात में रुके, वहीं से वे सूरत और मुंबई में बस गए।
 
 
यहूदियों का पलायन : 7वीं सदी में इस्लाम के आगाज के बाद यहूदियों की मुश्किलें बढ़ गईं। तुर्क और मामलुक शासन के समय यहूदियों को इसराइल से पलायन करना पड़ा। अंतत: यहूदियों के हाथ से अपना राष्ट्र जाता रहा। लाखों यहूदियों ने अपने देश से निकलकर अन्य देशों में शरण ली। सैकड़ों वर्ष की लड़ाई के बाद मई 1948 में इसराइल को फिर से यहूदियों का स्वतंत्र राष्ट्र बनाया गया। दुनियाभर में इधर-उधर बिखरे यहूदी आकर इसराइल में बसने लगे। अब यहूदियों की संख्या दुनियाभर में 1.4 करोड़ के आसपास सिमट गई है। दुनिया की आबादी में उनकी हिस्सेदारी मात्र 0.20 प्रतिशत है।
 
 
अहमदियों का पलायन : मुसलमानों को कट्टरता के दौर से बाहर निकालने के उद्देश्य से ही अहमदिया संप्रदाय की स्थापना 1889 ई. में पंजाब के गुरदासपुर के कादिया नामक स्थान पर मिर्जा गुलाम अहमद ने की थी। भारत विभाजन के बाद अधिकतर अहमदिया पाकिस्तान को अपना मुल्क मानकर वहां चले गए। लेकिन विभाजन के बाद से ही वहां उन पर जुल्म और अत्याचार होने लगे, जो धीरे-धीरे अपने चरम पर पहुंच गए। पाकिस्तान में लगभग 25 लाख से ज्यादा अहमदिया रहते हैं। कहते हैं कि 6 लाख से अधिक अहमदी लोगों ने अपना मुल्क छोड़कर चीन-पाक की सीमा पर शरण ले रखी है जबकि कुछ के परिवारों ने देश छोड़ दिया है। 
 
 
कश्मीरी पंडितों का पलायन : जम्मू और कश्मीर के कश्मीर में 1989 से 1995 के बीच पाकिस्तान प्रायोजित इस्लामिक आतंकवादियों द्वारा कत्लेआम का एक ऐसा दौर चलाया गया जिसके चलते पंडितों को कश्मीर से पलायन होने पर मजबूर होना पड़ा। इस नरसंहार में 6,000 कश्मीरी कश्मीरी पंडितों को मारा गया। 7,50,000 पंडितों को पलायन के लिए मजबूर किया गया। 1,500 मंदिर नष्ट कर दिए गए। 600 कश्मीरी पंडितों के गांवों को इस्लामी नाम दिया गया। यह भारत का सबसे बड़ा नरसंहार और पलायन था।
 
 
यजीदी समुदाय का पलायन : फाउंडेशन फॉर इंडिया एंड इंडियन डायसपोरा स्टडीज (एफआईआईडीएस-अमेरिका) की रिपोर्ट 'प्लाइट ऑफ द यजीदी' के अनुसार करीब 5,00,000 यजीदी इराक के विभिन्न हिस्सों, तुर्की और विभिन्न देशों में विस्थापित हुए हैं। इराक में वर्ष 2014 में ही इस्लामिक स्टेट के आतंकवादियों ने यजीदियों पर हमले किए। इन हमलों में अनुमानित 50,000 लोग घायल हुए, 10,000 पुरुष मारे गए जबकि 7,000 महिलाओं का अपहरण हुआ। 20 हजार यजीदियों को मुक्त करवाया गया।
 
 
रोहिंग्या मुस्लिमों का पलायन : 2 साल पहले म्यांमार की सेना की कठोर कार्रवाई से भयभीत होकर करीब 7,00,000 रोहिंग्या मुसलमानों ने सीमा पार कर पड़ोसी देशों में शरण ली है। इन देशों में भारत और बांग्लादेश प्रमुख हैं। भारत में लगभग 60,000 हजार रोहिंग्या मुस्लिम विभिन्न राज्यों में रहते हैं। ये लोग समुद्र, बांग्लादेश और म्यांमार सीमा से लगे चिन इलाके के जरिए भारत में घुसपैठ कर आए हैं। जम्मू और कश्मीर के हिन्दू बहुल क्षेत्र जम्मू में लगभग 10,000 से अधिक रोहिंग्या मुस्लिमों ने शरण ले रखी है। बांग्लादेश और म्यांमार की सीमा पर रोहिंग्या मुस्लिमों का सबसे बड़ा शरणार्थी शिविर है, जहां लगभग 3,50,000 लोग रहते हैं।
 
 
सीरिया और इराक से पलायन : इस्लामिक स्टेट के आतंक के चलते सीरिया और इराक से भागकर शिया, ईसाई और अन्य समुदाय के लोगों ने योरप के देशों में शरण ले रखी है। ऐसा माना जाता है कि अकेले सीरिया में 65 लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हुए हैं, जबकि इतने ही इराक से। रिपोर्ट के मुताबिक तुर्की में सबसे अधिक शरणार्थियों ने डेरा बनाया है। आंकड़ों मुताबिक साल 2017 के अंत तक तुर्की में तकरीबन 35 लाख पंजीकृत शरणार्थी रह रहे थे। इनमें बड़ी संख्या सीरियाई लोगों की है। इसके बाद जर्मन, फ्रांस और ब्रिटेन का नंबर आता है, जहां लाखों की संख्या में इराक और सीरिया के शरणार्थी रह रहे हैं।
 
 
तिब्बती पलायन : 14वें दलाई लामा के आदेश का पालन करते हुए लगभग 1,50,000 से ज्यादा तिब्बती अपने देश तिब्बत को छोड़कर पिछले कई सालों से भारत में रह रहे हैं। 1959 में तिब्बती विद्रोह निष्फल होने के बाद दलाई लामा भारत आ गए थे। उस समय वे 80,000 तिब्बती शरणार्थियों को लेकर भारत आए थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें यहां रहने की इजाजत दी थी। तिब्बती शरणार्थी भारत के लद्दाख, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में रहते हैं। इसके अलावा कर्नाटक और ओडिशा सहित देश के अन्य हिस्सों में भी इनके कुछ समूह रहते हैं।
 
 
बांग्लादेश से पलायन : बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के दौरान कहते हैं कि पाकिस्तानी सेना ने लाखों बांग्लादेशियों का कत्ल कर दिया था। उस दौरान लगभग 10 लाख से अधिक बांग्लादेशियों ने भारत में शरण ली थी। पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय और त्रिपुरा की राज्य सरकारों ने सीमा पर शरणार्थी कैंप लगवाए थे। उस वक्त समझौते के अनुसार बांग्लादेश की मुक्ति के बाद इन सभी को पुन: बांग्लादेश भेजे जाने की योजना थी लेकिन यह संभव नहीं हो पाया। वर्तमान में भारत में लगभग 2 करोड़ से अधिक बांग्लादेशी निवास कर रहे हैं। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 54,000 चकमा और हजोंग शरणार्थी हैं। 2012 की रिपोर्ट के अनुसार 83,438 बांग्लादेशी नागरिक शरणार्थी बनकर रह रहे हैं।
 
 
अफगानी पलायन : कुछ वर्ष पूर्व अफगानिस्तान पर जब अमेरिकी हमला हुआ था तो लगभग 5 लाख अफगानी लोगों ने ईरान और पाकिस्तान में शरण ली थी। इससे पहले सोवियत-अफगान युद्ध के दौरान 1979 से 1989 के बीच 60,000 से ज्यादा अफगानी नागरिकों ने भारत में शरण ली थी। 2017 में अफगानिस्तान से करीब 26 लाख लोग विस्थापित हुए हैं। यूएनएचसीआर ने इस इजाफे का कारण अफगान बच्चों के जन्म को बताया है, साथ ही दूसरा कारण जर्मनी में अफगान लोगों को शरणार्थी दर्जा मिलने को कहा है।
 
 
भारत विभाजन : भारत विभाजन के दौरान विश्व का सबसे बड़ा पलायन हुआ था। लगभग 1 करोड़ 50 लाख की संख्‍या में हिन्दू और सिख भारत आए और इतनी ही संख्‍या में मुसलमान पाकिस्तान गए। कहते हैं कि इस दौरान 10 लाख लोगों का कत्ल किया गया। जिन हिन्दू और सिखों ने पाकिस्तान में ही रहने का फैसला किया था उन पर जब भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में अत्याचार बढ़ने लगा, तो वे अपना देश छोड़कर भारत में समय-समय पर शरण लेने लगे। इनमें हिन्दुओं की संख्या ज्यादा रही। हिन्दुओं में भी सिन्धी समाज के लोग बड़ी संख्‍या में भारत आए। यह सिलसिला अभी तक जारी है।
 
 
श्रीलंका से पलायन : भारत में श्रीलंका के 1,00,000 से ज्यादा तमिल रहते हैं। इनमें से ज्यादातर 1970 में श्रीलंका में चरमपंथ की शुरुआत के समय भारत आ गए थे। ये लोग भारत के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु के चेन्नई, तिरुचिरापल्ली और कोयंबटूर और कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु तथा केरल में रह रहे हैं।
 
 
दक्षिणी सूडान से पलायन : दक्षिणी सूडान से लोग बड़ी तादाद में भाग रहे हैं। यह अफ्रीकी देश पिछले लंबे समय से जातीय हिंसा और गृहयुद्ध झेल रहा है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक यह देश 'सबसे बुरे आपातकाल के दौर से गुजर रहा है लेकिन यहां की सरकार और विपक्ष अपने ही लोगों के मुद्दों को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं।'
 
 
अन्य पलायन : 1944 के दूसरे विश्व युद्ध में लाखों यहूदी और जर्मन लोगों को पलायन करना पड़ा था। कहते हैं कि युद्ध के बाद लगभग 1 करोड़ 20 लाख जर्मन लोगों को पलायन करना पड़ा था। 1948 से 50 के बीच चीन और ताइवान के बीच तनाव के चलते 20 लाख लोगों को पलायन करना पड़ा था। इसी तरह अमेरिका और वियतनाम का जब 1975 के आसपास युद्ध हुआ तो लगभग 20 लाख लोगों ने वियतनाम से पलायन कर अन्य पड़ोसी देशों में शरण ली। 2 लाख से अधिक लोगों को अपनी जान गंवाना पड़ी।
 
 
एक रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में दूसरे देशों में शरण लेने वाले लोगों की संख्या 1 करोड़ 65 लाख से अधिक है। देश के भीतर ही देशवासियों के विस्थापन की संख्‍या 4 करोड़ बताई जाती है जिसे आईडीपी कहते हैं अर्थात 'इंटरनली डिस्प्लेस्ड पीपल।'
 

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