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क्या है ‘धर्मांतरण’ का असली एजेंडा, कहीं सॉफ्ट कन्वर्शन तो कहीं सामूहिक धर्मपरिवर्तन, समझिए क्या है ‘धर्मसंकट’

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हमें फॉलो करें छांगुर बाबा बलरामपुर

WD Feature Desk

, गुरुवार, 17 जुलाई 2025 (14:26 IST)
motive behind religious conversion: उत्तर प्रदेश आतंकवाद निरोधक दस्ते (UP ATS) ने बलरामपुर जिले में एक रैकेट का पर्दाफाश करते हुए छांगुर बाबा और उसकी सहयोगी नीतू रोहरा उर्फ नसरीन को गिरफ्तार किया। जमालुद्दीन उर्फ छांगुर बाबा, एक बड़े अवैध धर्मांतरण नेटवर्क का मास्टरमाइंड निकला। धर्मांतरण, यानी एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तन, एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा है, जिसके सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और भू-राजनीतिक आयाम हैं। यह केवल व्यक्तिगत आस्था का विषय नहीं रह गया है, बल्कि कई बार इसके पीछे गहरे एजेंडे और रणनीतियां भी काम करती हैं। हाल ही में बांग्लादेश से आई तस्वीरें, जहां बाढ़ प्रभावित इलाकों में राहत सामग्री बांटते हुए नाबालिग हिंदुओं से धर्म बदलने की बात की जा रही थी, इस मुद्दे की गंभीरता को दर्शाती हैं। इस तरह के घटनाक्रम धर्मांतरण के विभिन्न रूपों और उनके वास्तविक उद्देश्यों पर सोचने को मजबूर करते हैं। आइये इस गंभीर मुद्दे की बारीकियों को समझते हैं :

सॉफ्ट कन्वर्जन: एक धीमी और गहरी चाल
धर्मांतरण का एक रूप 'सॉफ्ट कन्वर्जन' कहलाता है। यह वह प्रक्रिया है जो बिना किसी प्रत्यक्ष जबरदस्ती के, धीरे-धीरे और समय लेकर की जाती है। इसका उद्देश्य लोगों की सांस्कृतिक पहचान को भी प्रभावित करना होता है, जिसे कुछ लोग 'सॉफ्ट कॉलोनियलिज्म' (नरम उपनिवेशवाद) के रूप में देखते हैं।

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य (ब्रिटिश भारत): ब्रिटिश भारत में ईसाई मिशनरियों ने इसी रणनीति का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया। उन्होंने स्कूल, अस्पताल और अनाथालय खोले, जहां शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की जाती थीं। इन सेवाओं के माध्यम से, विशेषकर गरीब, वंचित और बीमार लोगों को आकर्षित किया जाता था। धीरे-धीरे, इन संस्थानों में धार्मिक शिक्षा और प्रभाव के जरिए लोगों को ईसाई धर्म की ओर मोड़ा जाता था। यह धर्मांतरण गरीबी, बीमारी या सामाजिक भेदभाव का लाभ उठाकर किया जाता था, और अक्सर यह इतना सूक्ष्म होता था कि लोग अपनी मूल सांस्कृतिक जड़ों से कट जाते थे।

वर्तमान परिदृश्य: आज भी देश के आदिवासी बहुल इलाकों या आपदा प्रभावित क्षेत्रों से ऐसी खबरें आती हैं कि वहां के लोग गरीबी, जातिगत भेदभाव, बीमारी या प्राकृतिक आपदा के वक्त धर्मांतरण की कोशिशों का सामना करते हैं। राहत सामग्री, मुफ्त शिक्षा या चिकित्सा सहायता के बदले धर्म परिवर्तन का प्रस्ताव दिया जाता है। यह तरीका अधिक टिकाऊ माना जाता है क्योंकि इसमें लोग अपनी सांस्कृतिक पहचान तक खो देते हैं, जिससे वापसी की संभावना कम हो जाती है।

सामूहिक धर्मांतरण: तात्कालिक प्रभाव
सॉफ्ट कन्वर्जन के विपरीत, सामूहिक धर्मांतरण अक्सर किसी विशेष घटना या तात्कालिक दबाव के कारण होता है। यह गरीबी, सामाजिक बहिष्कार या किसी बड़े संकट के समय अधिक देखने को मिलता है, जहां एक साथ बड़ी संख्या में लोग अपना धर्म बदलते हैं। हालांकि, इसके पीछे भी अक्सर एक संगठित नेटवर्क काम करता है।

धर्मांतरण से किसे फायदा? भू-राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव
धर्मांतरण का असली एजेंडा केवल धार्मिक आस्था का प्रसार नहीं होता, बल्कि इसके गहरे सामाजिक, आर्थिक और भू-राजनीतिक निहितार्थ होते हैं:
1. नीति और कानून पर प्रभाव: अगर किसी देश में या दुनिया के कई देशों में एक धर्म के अनुयायी बढ़ जाते हैं, तो वहां की नीतियां और यहां तक कि कानून भी उसी धर्म के सिद्धांतों और हितों के मुताबिक हो सकते हैं। 'ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (OIC)' और 'वेटिकन' (होली सी) इसके सीधे प्रमाण हैं, जहां धार्मिक पहचान वैश्विक मंचों पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

2. वैश्विक शक्ति संतुलन: सीधी बात है कि अगर किसी धर्म का ग्राफ ऊपर जाएगा, तो वही धर्म वैश्विक शक्ति के रूप में उभरेगा। फिर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सारे फैसले उसी धर्म के अनुसार प्रभावित होंगे, और उसी धर्म को मानने वालों का फायदा होगा। यह धार्मिक जनसांख्यिकी का भू-राजनीतिक शक्ति पर सीधा प्रभाव है।

3. बाजार और अर्थव्यवस्था: धार्मिक आबादी के हिसाब से बाजार बनता-बिगड़ता है। किसी विशेष धर्म के अनुयायियों की संख्या बढ़ने से उस धर्म से संबंधित उत्पादों, सेवाओं और रीति-रिवाजों यहां तक की धार्मिक यात्राओं और पर्यटन का बाजार भी बढ़ता है।

4. अंतर्राष्ट्रीय मंच पर आवाज: बड़ी धार्मिक आबादी की आवाज़ अंतर्राष्ट्रीय मंच पर ज्यादा सुनी जाती है, जिससे उस धर्म से जुड़े देशों और संगठनों का प्रभाव बढ़ता है।

धर्मांतरण एक बहुआयामी घटना है, जिसके पीछे आस्था के साथ-साथ सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक उद्देश्य भी छिपे हैं। सॉफ्ट कन्वर्जन एक धीमी लेकिन गहरी प्रक्रिया है जो सांस्कृतिक पहचान को भी प्रभावित करती है, जबकि सामूहिक धर्मांतरण तात्कालिक दबावों का परिणाम हो सकता है। इन प्रक्रियाओं के माध्यम से धार्मिक समूहों की संख्या में वृद्धि न केवल स्थानीय नीतियों और कानूनों को प्रभावित करती है, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर भी इसका असर पड़ता है। इस संवेदनशील मुद्दे को समझने के लिए इसके विभिन्न पहलुओं और ऐतिहासिक संदर्भों पर विचार करना आवश्यक है।
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