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पाकिस्तान से क्यों अलग होना चाहते हैं बलूचिस्तान, पख्तून, पीओके, सिंध और वजीरिस्तान?

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WD Feature Desk

, मंगलवार, 29 अप्रैल 2025 (17:59 IST)
Pakistan will be divided: पाकिस्तान की बात करें तो सिर्फ पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के लोगों ने संपूर्ण सेना, संसाधनों और शासन-प्रशासन पर कब्जा कर रखा है। जब भारत का विभाजन हुआ तो भारत से पाकिस्तान गए लोगों को वहां मुहाजिर कहा जाता है। इसका अर्थ है आप्रवासी। इन लोगों को पाकिस्तान के लोग पाकिस्तानी मानते ही नहीं है। इन्हें सेना, शासन और प्रशासन में कोई नौकरी नहीं दी जाती है। इन पर हर तरह के अत्याचार किए जाते हैं। ऐसा ही व्यवहार बलूचों, पख्तूनों, कश्मीरियों और अफगानियों के साथ होता है। पाकिस्तानी पंजाबियों ने देश के बाकी हिस्सों में रहने वाले लोगों को सामाजिक और आर्थिक पैमाने पर हाशिये पर धकेल दिया है। सरकारी राजस्व का सबसे ज्यादा हिस्सा पंजाब पर खर्च किया जाता है, जबकि राजस्व देश के बाकी हिस्सों से जुटाए जाते हैं। ऐसे ही कई कारण है जिसके चलते पाकिस्तान के कुछ क्षेत्र पाकिस्तान से अलग होना चाहते हैं। 
 
बलूचिस्तान:
4 अगस्त 1947 को लार्ड माउंटबेटन, मिस्टर जिन्ना, जो बलूचों के वकील थे, सभी ने एक कमीशन बैठाकर तस्लीम किया और 11 अगस्त को बलूचिस्तान की आजादी की घोषणा कर दी गई। वादे के मुताबिक उसे एक अलग राष्ट्र बनना था 1 अप्रैल 1948 को पाकिस्तानी सेना ने कलात पर अभियान चलाकर कलात के खान को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर कर दिया। बाद में 27 मार्च 1948 को पाकिस्तान ने संपूर्ण बलूचिस्तान को अपने कब्जे में ले लिया। तभी से अब तक बलूच अपनी आजादी के लिए पाकिस्तानी सेना से लड़ रहे हैं। पाकिस्तानी सेना ने अब तक 2 लाख से ज्यादा बलूचों को मार दिया है। करीब 347,190 वर्ग किलोमीटर में फैला बलूचिस्तान भारत से सैन्य हस्तक्षेप की मांग कर रहा है। बलूचिस्तान भी पाकिस्तान के लिए नाक का बाल बन गया है। 2016 में भारत के सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने एक बयान में कहा था कि अगर अब पाकिस्तान निर्दोष लोगों पर गोली चलाता है तो उसे बलूचिस्तान खोना पड़ सकता है।
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पख्तून:
खैबर-पख्तूवनाह पाकिस्तान का एक राज्य है। खैबर-पख्तूवनाह के लोग अफगानिस्तान से सीधे कनेक्ट में है। यहां अफगानिस्तान समर्थित लड़ाकों ने पाकिस्तान के नाक में दम कर रखा है। अफगानिस्तान की मूल जाति पख्तून है। पख्तून पठान होते हैं। अफगान के लोग मानते हैं कि यह इलाका हमारा है। इसमें एक जगह है फाटा जो कबाइलियों का क्षेत्र है। 
 
अफगानिस्तान की सीमा पर मौजूद पाकिस्तान के कबायली इलाके में सात जिले हैं जिन्हें सात एजेंसियां कहा जाता है। संघीय प्रशासित इस कबाइली इलाके को अंग्रेजी में फेडरली एडमिनिटर्ड ट्राइबल एरिया (FATA) कहा जाता है। फाटा की आबादी लगभग पचास लाख है जिसमें से सबसे ज्यादा पख्तून लोग शामिल हैं। ब्रिटिश राज में इस इलाके को फाटा नाम दिया गया था। यहां रहने वाले पठान लड़ाकों ने खुद को गुलाम बनाने की कोशिशों का डटकर मुकाबला किया था। अभी तक यह इलाका पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच एक बफर जोन की तरह रहा है। 11 सितंबर 2001 के हमले के बाद अमेरिका ने जब अफगानिस्तान पर हमला किया तो वहां से भाग कर तालिबान और अल कायदा के चरमपंथियों ने इसी इलाके में शरण ली। तहरीक ए तालिबान का यहीं जन्म हुआ।
 
पीओके:
पाकिस्तान अधिकृत जम्मू और कश्मीर कभी भारत का हिस्सा हुआ करता था। इनमें एक गिलिगित बालिस्टान भी शामिल है। भारत विभाजन के समय 1948 में पाकिस्तानी फौज ने कबाइलियों के साथ आक्रमण करके इसे अपने कब्जे में ले लिया। तभी से यहां के लोगों पर पाकिस्तान का अत्याचार जारी है। यहां के हिंदू, शिया और अहमदिया लोगों के नरसंहार का दौर चला तो वे सभी पलायन करके भारत आ गए। हालांकि यहां बहुत से शिया अभी भी रहते हैं। इसी के साथ ही पाकिस्तान अब यहां के सुन्नियों को आतंकवाद की ट्रेनिंग देकर भारत में हमले करने के लिए भेजती रही है। यहां के लोग पाकिस्तान से त्रस्त हो चले हैं। यहां किसी भी प्रकार से पाकिस्तान ने कोई विकास नहीं किया है। खैबर-पख्तूवनाह में तो लंबे वक्त से अलग करने को लेकर आंदोलन चल रहे हैं।
 
वजीरिस्तान:
यह पाकिस्तान के उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत का एक सूबा। इस क्षेत्र को पाकिस्तान मानता है तालिबानी आतंकवादियों का गढ़। वजीरिस्तान में पाकिस्तान ने कई अभियान चलाकर हजारो लड़ाकों को मार गिराया है। यहां पर सैन्य अभियान चलते ही रहते हैं। वजीर जनजातियां कबीलों में विभाजित हैं, जिनका शासन गांव के पुरुष बुजुर्गों द्वारा किया जाता है, जो एक कबीलाई जिरगा में मिलते हैं। यह इसमें पाकिस्तान का दखल नहीं चाहते हैं। दूर-दूर तक पहाड़ियों से भरे इस क्षेत्र में बाहर के लोगों के लिए आवाजाही कर सकना लगभग असंभव है। 
 
सिंध:
1970 के दशक में जी.एम. सैय्यद द्वारा सिंधु आंदोलन शुरू किया गया था, जो सिंध की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक अलग पहचान की बात करते थे। वे मानते थे कि पाकिस्तान बनने के बाद सिंध की स्वायत्तता समाप्त हो गई है। सिंध प्रांत में कभी 30 प्रतिशत से ज्यादा हिंदू और मुहाजिर रहते थे। हालांकि पाकिस्तान ने एक अभियान चलाकर सिंधी हिंदुओं को यहां से पलायन करने पर मजबूर कर दिया तो दूसरी ओर मुहाजिरों का आंदोलन दबा दिया। 
 
हालांकि वर्तमान में पाकिस्तानी सेना के बर्बर रवैये के विरोध में कई संगठनों ने सिंधुदेश की स्थापना की मांग शुरू कर दी है। सिंधुदेश लिबरेशन आर्मी (एसएलए), जय सिंध कौमी महाज (जेएसक्यूएम), जय सिंध मुत्ताहिदा महाज़ (जेएसएमएम), जय सिंध छात्र संघ (जेएसएसएफ) जैसे संगठन अलग सिंधुदेश की मांग कर रहे हैं। सिंधुदेश कि मांग का मतलब सिंधियों के लिए अलग मातृभूमि का निर्माण करना है। हालांकि यह दमन चक्र 1950 से ही प्रारंभ हो गया था लेकिन जिस वक्त पूर्वी पाकिस्तान, यानी बांग्लादेश में पाकिस्तानी सेना बांग्लादेशियों का नरसंहार कर रही थी, उस वक्त सिंध देश में भी पाकिस्तानी फौज क्रूर अभियान चला रही थी।

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