फाल्गुन मास की पूर्णिमा की रात्रि को होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन के दूसरे दिन धुलेंडी मनाई जाती है। आओ जानते हैं कि इस दिन कौनसे 5 महत्वपूर्ण कार्य किए जाते हैं।
1. धूलिवंदना : होलिका दहन के बाद धुलेंडी अर्थात धूलिवंदन मनाया जाता है। सुबह उठकर नित्यकर्म से निवृत्त होकर होलिका को ठंडा किया जाता है। मतबल पूजा करने के बाद जल चढ़ाया जाता है। धूलिवंदन अर्थात् धूल की वंदना। राख को भी धूल कहते हैं। होलिका की आग से बनी राख को माथे से लगाने की बाद ही होली खेलना प्रारंभ किया जाता है। अतः इस पर्व को धूलिवंदन भी कहते हैं।
2. रंगों का मजा : फिर घर में पूजा पाठ करने के बाद घर के बड़े बुर्जुगों को रंग लगाने के बाद होली खेली जाती है। सब अपने मित्रों और रिश्तेदारों से मिलने निकल पड़ते हैं। सभी नृत्य, गान और धूम धड़ाका करते हैं। गांवों में लोग देर रात तक होली के गीत गाते हैं तथा नाचते हैं। स्थानीय भाषाओं में बने होली के गीतों में कुछ ऐसे गीत हैं जो सदियों से गाए जा रहे हैं।
3. शत्रुता दूर करने का मौका : इस दिन लोग एक-दूसरे से गले मिलते हैं। शत्रु के घर जाकर भी, उससे गले मिलकर, गिले-शिकवे दूर कर उनके साथ भी होली खेली जाती है और उनके लिए भी मंगल कामनाएं की जाती हैं।
4. गमी वाले घर रंग डालना : कुछ राज्यों में इस दिन उन लोगों के घर जाते हैं जहां गमी हो गई है। उन सदस्यों पर होली का रंग प्रतिकात्म रूप से डालकर कुछ देर वहां बैठा जाता है। कहते हैं कि किसी के मरने के बाद कोईसा भी पहला त्योहार नहीं मनाते हैं।
5. भांग और भजिये का सेवन : इस दिन लोग खूब भांग का सेवन करते और मिठाइयां खाते हैं। शाम को घरों में खीर, पूरी और पूड़े आदि विभिन्न व्यंजन (खाद्य पदार्थ) पकाए जाते हैं। इस अवसर पर अनेक मिठाइयां बनाई जाती हैं जिनमें गुझियों का स्थान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। बेसन की सेव और दहीबड़े हर परिवार में बनाए व खिलाए जाते हैं।