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Holi 2024: होली पर डांडे की पूजा का क्या है महत्व

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WD Feature Desk

holi ka danda 2024: होलिका दहन के पहले चौराहे पर होली का डांडा लगाया जाता है। इस डांडे का खास महत्व होता है। यह डांडा किस चीज का होता है? इसे क्यों लगाया जाता है और क्या महत्व है इसका? क्या करते हैं इस डांडे से? आओ जानते हैं इस संबंध में दिलचस्प जानकारी।
 
डांडे की पूजा holi ka danda 2024 :
  • भारत में कई जगह तो फाल्गुन मास प्रारंभ होते ही होली का डांडा रोपण कर होली उत्सव का प्रारंभ हो जाता है।
  • कई जगहों पर बसंत पंचमी के दिन ही इसका रोपण कर देते हैं। खासकर ब्रजमंडल में।
  • कई जगहों पर होलाष्टक पर डांडा रोपणकर इस उत्सव की शुरुआत की जाता ही। 
  • अधिकतर जगहों पर होलिका दहन के एक दिन पूर्व ही होली का डांडा गाड़ा जाता है।
  • असल में प्राचीनकाल में इस डांडे को माघ पूर्णिमा के दिन रोपित किया जाता था।
  • होली का डंडा एक प्रकार का पौधा होता है, जिसे सेम का पौधा कहते हैं। 
  • होलिका दहन के पूर्व 2 डांडे रोपण किए जाते हैं। जिनमें से एक डांडा होलिका का प्रतीक तो दूसरा डांडा प्रहलाद का प्रतीक माना जाता है।
  • इन दोनों डांडे की विधिवत पूजा की जाती है। 
  • इसके बाद इन डंडों को गंगाजल से शुद्ध करने के बाद इन डांडों के इर्द-गिर्द गोबर के उपले, लकड़ियां, घास और जलाने वाली अन्य चीजें इकट्ठा की जाती है।
  • उपलों को इन्हें धीरे-धीरे बड़ा किया जाता है और उसके आसपास रंगोली मांडना आदि से सजावट करते हैं।
  • कई लोग अपने घरों से भरभोलिये यानी कंडों की माला बनाकर लाते हैं और उसके आसपास जमाते हैं। 
  • होलिका दहन के पहले होली के डांडा को निकाल लिया जाता है। उसकी जगह लकड़ी का डांडा लगाया जाता है। 
  • फिर विधिवत रूप से होलिका की पूजा की जाती है और अंत में उसे जला दिया जाता है।
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होलिका दहन की पूरी पूजा विधि- Holika Dahan Puja vidhi:-
1. सबसे पहले होलिका पूजन के लिए पूर्व या उत्तर की ओर अपना मुख करके बैठें।
2. अब अपने आस-पास पानी की बूंदें छिड़कें।
3. गोबर से होलिका और प्रहलाद की प्रतिमाएं बनाएं।
4. थाली में रोली, कच्चा सूत, चावल, फूल, साबुत हल्दी, बताशे, फल और एक कलश पानी रखें।
5. नरसिंह भगवान का स्मरण करते हुए प्रतिमाओं पर रोली, मौली, चावल, बताशे और फूल अर्पित करें।
6. अब सभी सामान लेकर होलिका दहन वाले स्थान पर ले जाएं।
7. अग्नि जलाने से पहले अपना नाम, पिता का नाम और गोत्र का नाम लेते हुए अक्षत (चावल) में उठाएं और भगवान गणेश का स्मरण कर होलिका पर अक्षत अर्पण करें।
8. इसके बाद प्रहलाद का नाम लें और फूल चढ़ाएं।
9. भगवान नरसिंह का नाम लेते हुए पांच अनाज चढ़ाएं।
10. अब दोनों हाथ जोड़कर अक्षत, हल्दी और फूल चढ़ाएं।
11. कच्चा सूत हाथ में लेकर होलिका पर लपेटते हुए परिक्रमा करें।
12. आखिर में गुलाल डालकर चांदी या तांबे के कलश से जल चढ़ाएं।
13. इसके बाद होलिका दहन होता है।

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