Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

होली पर कविता : स्नेह के रंग में महकना, गुलाब-सा मुस्कुराना

Advertiesment
हमें फॉलो करें होली पर कविता : स्नेह के रंग में महकना, गुलाब-सा मुस्कुराना
Holi Poem
- राकेश खरे 'राकेश' 
 
मैंने एक मित्र से कहा, 
मित्र चलो होली खेलें, 
यह सुन वह घबरा गया 
बोला, कौन-सी होली? 
कैसी होली? 
 
वोट बैंक की आड़ में, 
लोग राजनेता बन रहे हैं। 
नाम राम का हो, 
या रहीम का, 
चलता हुआ भारत का पथ, 
लोगों को डरा रहा है। 
 
आम आदमी होली खेलने से घबरा रहा है। 
मैंने कहा मित्र, 
धर्म के नाम पर, 
जनता को भड़काना, 
ऊंगली के इशारे पर देश को नचाना, 
हमारा काम नहीं है। 
 
होली के रंग में, इनका स्थान नहीं है। 
स्नेह के रंग में महकना, 
गुलाब-सा मुस्कुराना, 
चमन को सजाना संवारना, 
होली के प्रतीक हैं। 
 
भेद-भाव की तामसिक निशा हटाओ 
हाथ में गुलाल लो 
मेरे तन पे मल दो। 
मुस्कुराएं जगत, 
उसे रंग में भर दो। 
होली के रंग से भारत के पथ भर दो।  

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

होलाष्टक 2020 कब से कब तक : ये 13 काम करेंगे तो नहीं आएगा कोई संकट