Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

होली विशेष: जहां से प्रकट हुए थे भगवान नृसिंह, धरती पर आज भी मौजूद है वह खंबा

हमें फॉलो करें होली विशेष: जहां से प्रकट हुए थे भगवान नृसिंह, धरती पर आज भी मौजूद है वह खंबा
, मंगलवार, 7 मार्च 2023 (14:43 IST)
होली का त्योहार भक्त प्रहलाद और भगवान नृसिंह की याद में मनाया जाता है। होली की आग में भक्त प्रहलाद जब नहीं जला और होलिका जल गई तब हिरण्यकश्यप ने खुद ही अपने पुत्र का वध करने की सोची और उसे एक खंबे से बांध दिया। क्रोध में आकर कहा कि तू कहता है तेरा विष्णु सभी जगह है तो क्या इस खंबे में भी है? ऐसा कहते हुए हिरण्यकश्यप ने उस खंबे में एक लात मारी तभी वह खंबा टूटा और उसमें से श्रीहरि विष्णु नृसिंह रूप में प्रकट हुए। 
 
हिरण्यकश्यप को ब्रह्माजी से वरदान मिला था कि उसे कोई भी न धरती पर और न आसमान में, न भीतर और न बाहर, न सुबह और न रात में, न देवता और न असुर, न वानर और न मानव, न अस्त्र से और न शस्त्र से मार सकता है। इसी वरदान के चलते वह निरंकुश हो चला था।
 
वह खुद को भगवान मानता था। लेकिन उसका पुत्र प्रहलाद श्रीहिर विष्णु का भक्त था। होलिका दहन के बाद भी जब भक्त प्रहलाद की मौत नहीं हुई तो आखिरकार क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने खुद ही प्रहलाद को मौत के घाट उतारने की ठानी। उसने अट्टाहास करते हुए कहा कि तू कहता है कि तेरा विष्णु सभी जगह है तो क्या इस खंभे में भी है? ऐसे कहते हुए हिरण्यकश्यम खंभे में एक लात मार देता है। तभी उस खंभे से विष्णुजी नृसिंह अवतार लेकर प्रकट होते हैं और हिरण्यकश्यप का वध कर देते हैं। लोकमान्यता है कि वह टूटा हुआ खंभा अभी भी मौजूद है। 
 
माणिक्य स्तम्भ : कहते हैं कि बिहार के पूर्णिया जिले के बनमनखी प्रखंड के सिकलीगढ़ में वह स्थान मौजूद है जहां असुर हिरण्यकश्यप का वध हुआ था। हिरण्यकश्यप के सिकलीगढ़ स्थित किले में भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए एक खम्भे से भगवान विष्णु का नृसिंह अवतार हुआ था। वह खम्भा आज भी वहां मौजूद है, जिसे माणिक्य स्तम्भ कहा जाता है। 
 
कहा जाता है कि इस स्तम्भ को कई बार तोड़ने का प्रयास किया गया, लेकिन वह झुक तो गया लेकिन टूटा नहीं। इस खंबे से कुछ दूरी पर ही हिरन नामक नदी बहती है। कहते हैं कि नृसिंह स्तम्भ के छेद में पत्थर डालने से वह पत्‍थर हिरन नदी में पहुंच जाता है। हालांकि अब ऐसा होता है या नहीं यह कोई नहीं जानता है। माणिक्य स्तम्भ की देखरेख के लिए यहां पर प्रहलाद स्तम्भ विकास ट्रस्ट भी है। यहां के लोगों का कहना है कि इस स्तंभ का जिक्र भागवत पुराण के सप्तम स्कंध के अष्टम अध्याय में मिलता है।
 
इस स्थल की विशेषता है कि यहां राख और मिट्टी से होली खेली जाती है। कहते हैं कि जब होलिका जल गई और भक्त प्रहलाद चिता से सकुशल वापस निकल आए तब लोगों ने राख और मिट्टी एक-दूसरे पर लगा-लगाकर खुशियां मनाई थीं। इस क्षेत्र में मुसहर जाति की बहुलता है जिनका उपनाम ‘ऋषिदेव’ है।
 
यहीं पर एक विशाल मंदिर है जिसे भीमेश्‍वर महादेव का मंदिर कहते हैं। यहीं पर हिरण्यकश्यप ने घोर तप किया था। जनश्रुति के अनुसार हिरण्यकश्यप का भाई हिरण्याक्ष बराह क्षेत्र का राजा था। यह क्षेत्र अब नेपाल में पड़ता है।
webdunia
उग्र स्तंभ : इसी प्रकार से कुरनूल के पास अहोबलम या अहोबिलम में भी इस तरह के एक स्तंभ के होने की बात कही जाती है। अहोबला नरसिम्हा मंदिर आंध्र प्रदेश के कुरनूल में स्थित है। आंध्रप्रदेश के ऊपरी अहोबिलम शहर में नल्लमला जंगल के बीच स्थित उग्र स्तंभ एक प्राकृतिक चट्टान है। यहाँ आने वाली ट्रेल एक तीर्थयात्रा मार्ग भी है क्योंकि मान्यता है की भगवान नरसिंह यहां प्रकट हुए थे।
 
ऐतिहासिक और पौराणिक साक्ष्‍यों से यह पता चलता है कि होली की इस गाथा के प्रामाणिक तथ्य पाकिस्तान के मुल्तान से जुड़े हैं यानी अविभाजित भारत से। अभी वहां भक्त प्रह्लाद से जुड़े मंदिर के भग्नावशेष मौजूद हैं। वह खंभा भी मौजूद है जिससे भक्त प्रह्लाद को बांधा गया था।
 
मुल्तान में है यह खंबा : ऐतिहासिक और पौराणिक साक्ष्‍यों से यह पता चलता है कि होली की इस गाथा के प्रामाणिक तथ्य पाकिस्तान के मुल्तान से जुड़े हैं यानी अविभाजित भारत से। अभी वहां भक्त प्रह्लाद से जुड़े मंदिर के भग्नावशेष मौजूद हैं। वह खंभा भी मौजूद है जिससे भक्त प्रह्लाद को बांधा गया था। यहां वह स्थान आज भी है जहां पर भक्त प्रह्लाद को बांधा गया था और जहां से साक्षात नृसिंह देवता प्रकट हुए थे। कुछ लोग इस खंबे को भक्त प्रह्लाद के बंधे होने की मान्यता को मानते हैं जबकि कुछ यह मानते हैं कि इसी से नृसिंह देवता प्रकट हुए थे।
 
प्रह्लाद की जन्मभूमि मुल्तान का इतिहास : यह कभी प्रह्लाद की राजधानी था और उन्होंने ही यहां भगवान विष्णु का भव्य मंदिर बनवाया। मुल्तान वास्तव में संस्कृत के शब्द मूलस्थान का परिवर्तित रूप है, वह सामरिक स्थान जो दक्षिण एशिया व इरान की सीमा के चलते सैन्य दृष्टि से संवेदनशील था।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

होली 2023 : आज देश भर में खेली और जलाई जाएगी होली, जानिए क्या करें पूरा दिन, कैसे मनाएं पर्व