Holi 2024: होली के त्योहार में कैसे हुई रंगवाली होली मनाने की शुरुआत
Holi 2024: होली के त्योहार में कैसे जुड़ा रंग उत्सव मनाने का रिवाज
Holi 2024: 24 मार्च को होलिका दहन, 25 मार्च को धुलेंडी यानी रंगवाली होली और 30 मार्च 2024 को रंगपंचमी मनाई जाएगी। होलिका दहन का त्योहार हिरण्याकश्यप की बहन होलिका और पुत्र प्रहलाद से जुड़ा है। होली के त्योहार से आखिर रंग किस तरह जुड़ गया और जब रंग नहीं होता था तब होली किस तरह खेली जाती थी।
पांच दिनों का त्योहार : होली त्योहार प्रमुख रूप से 5 दिन तक मनाया जाता है। पहले दिन होलिका को जलाया जाता है, जिसे होलिका दहन कहते हैं। दूसरे दिन लोग एक-दूसरे को रंग व अबीर-गुलाब लगाते हैं जिसे धुरड्डी, धुलेंडी, धुरखेल, धूलिवंदन, होली और चैत बदी आदि नामों से जाना जाता है। होली के पांचवें दिन रंगपंचमी को भी रंगों का उत्सव मनाते हैं। चैत्रमास की कृष्णपक्ष की पंचमी को खेली जाने वाली रंगपंचमी देवी देवताओं को समर्पित होती है। कहते हैं कि इस दिन श्री कृष्ण ने राधा पर रंग डाला था। इसी की याद में रंग पंचमी मनाई जाती है।
होली का प्राचीन नाम : पहले होली का नाम होलाका था। साथ ही होली को आज भी 'फगुआ', 'धुलेंडी', 'दोल' के नाम से जाना जाता है।
रंगों की होली से पहले खेलते थे धुलेंडी : होली के त्योहार से रंग जुड़ने से पहले लोग एक दूसरे पर धूल और किचड़ चुपड़ते थे इसीलिए इसे धुलैंडी कहा जाता था। कहते हैं कि त्रैतायुग के प्रारंभ में विष्णु ने धूलि वंदन किया था। धूल वंदन अर्थात लोग एक दूसरे पर धूल लगाते हैं। इसकी याद में धुलेंडी मनाई जाती है। धुलेंडी के दिन सुबह के समय लोग एक दूसरे पर कीचड़, धूल लगाते हैं। पुराने समय में यह होता था जिसे धूल स्नान कहते हैं। पुराने समय में चिकनी मिट्टी की गारा का या मुलतानी मिट्टी को शरीर पर लगाया जाता था।
होली और रंग पंचमी : आजकल होली के अगले दिन धुलेंडी को पानी में रंग मिलाकर होली खेली जाती है तो रंगपंचमी को सूखा रंग डालने की परंपरा रही है। कई जगह इसका उल्टा होता है। हालांकि होलिका दहन से रंगपंचमी तक भांग, ठंडाई आदि पीने का प्रचलन हैं।
होली पर इस तरह जुड़ा रंग : होली के त्योहार में रंग कब से जुड़ा इसको लेकर मतभेद है परंतु इस दिन श्रीकृष्ण ने पूतना का वध किया था और जिसकी खुशी में गांववालों ने पहली बार रंगोत्सव मनाया था। यह भी कहा जाता है कि श्रीकृष्ण ने गोपियों के संग रासलीला रचाई थी और दूसरे दिन रंग खेलने का उत्सव मनाया था। यह भी कहा जाता है कि फाल्गुन पंचमी पर श्री कृष्ण न राधा पर रंग डाला था तभी से इसका नाम रंग पंचमी हो गया।