रंग पंचमी होली के समापन का अंतिम दिन है। होलिका दहन के दूसरे दिन धुलेंडी और धुलेंडी के चौथे दिन रंग रंग पंचमी मनाई जाती है। होली दहन फाल्गुन मास की शुक्ल पूर्णिमा को होता है जबकि धुलेंडी उसके दूसरे दिन चैत्र मास के पहले दिन अर्थात एकम के दिन होता है। चैत्र माह हिन्दू कलैंडर का पहला माह है। माह की शुरुआत रंगोत्सव से होती है। इसके बाद चैत्र कृष्ण पक्ष की पंचमी को रंग पंचमी मनाई जाती है। रंग पंचमी की धूम मध्यप्रदेश में ही होती है, अन्य राज्यों में उतना उत्साह नहीं होता है।
1. कहते हैं कि इस दिन श्री कृष्ण ने राधा पर रंग डाला था। इसी की याद में रंग पंचमी मनाई जाती है।
2. यह त्योहार देवताओं को समर्पित है। यह सात्विक पूजा आराधना का दिन होता है। मान्यता है कि कुंडली के बड़े से बड़े दोष को इस दिन पूजा आराधना से ठीक हो जाते हैं।
3.धन लाभ पाने और गृह कलेश दूर करने के लिए भी यह रंग पंचमी मनाई जाती है। इस दिन देवी लक्ष्मी की विशेष पूजा होती है।
4. रंग पंचमी के दिन प्रत्येक व्यक्ति रंगों से सराबोर हो जाता है।
5. कई लोग इस दिन ताड़ी या भांग पीते हैं और नृत्य एवं गान का मजा लेते हैं।
4. शाम को स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद गिल्की के पकोड़े का मजा लिया जाता है।
6. इस दिन अलग अलग राज्यों में अलग अलग पकवान बनाए जाते हैं। जैसे महाराष्ट्र में पूरणपोली बनाई जाती है।
7. लगभग पूरे मालवा प्रदेश में होली पर जलूस निकालने की परंपरा है, जिसे गेर कहते हैं। जलूस में बैंड-बाजे-नाच-गाने सब शामिल होते हैं।
होलिका दहन के बाद 'रंग उत्सव' मनाने की परंपरा भगवान श्रीकृष्ण के काल से प्रारंभ हुई। तभी से इसका नाम फगवाह हो गया, क्योंकि यह फागुन माह में आती है। कृष्ण ने राधा पर रंग डाला था। इसी की याद में रंग पंचमी मनाई जाती है। श्रीकृष्ण ने ही होली के त्योहार में रंग को जोड़ा था।