कान फिल्म फेस्टिवल से प्रज्ञा मिश्रा की रिपोर्ट ....
कोरियाई डायरेक्टर बोंग जून हो की फिल्म 'ओक्जा' दो वजहों से बहुत चर्चा में थी, पहली तो यह कि इस फिल्म के प्रोडूसर्स में नेटफ्लिक्स का नाम है जो कई लोगों को पसंद नहीं आ रहा है। (इस बारे में बात तो बाद में करते हैं) और दूसरी वजह है इस फिल्म में एक सुपर पिग यानी सूअर का होना। अब जब भी ऐसे कुछ स्पेशल इफेक्ट्स होते हैं तो उम्मीद यही रहती है कि फिल्म बड़े परदे पर ही देखी जाएगी। लेकिन नेटफ्लिक्स के करार नाम के हिसाब से यह फिल्म लैपटॉप और कंप्यूटर और टीवी पर ही मौजूद होगी। नेटफ्लिक्स का यह कहना कुछ हद तक सही भी है कि कितनी ही फिल्में हैं जो फेस्टिवल्स में तो दिखाई जाती हैं लेकिन फिर कभी सिनेमा का मुंह नहीं देखती। तो क्या बुरा है कि हम फिल्म को दूसरे माध्यम से दिखा रहे हैं।
अब बात करें फिल्म की। ओक्जा यह सुपर पिग है जिसे न्यूयॉर्क की कंपनी ने कोरिया के पहाड़ी इलाके में रहने वाले दादा और पोती मिज़ा को पालने के लिए दिया है। 10 साल में ओक्जा कुछ कुछ हिप्पो जैसा दीखता है। मिज़ा और ओक्जा की दोस्ती उनका साथ सब खतरे में है जब कंपनी अपने सूअर को वापस लेने के लिए पहुंच जाती है।
फिल्म में जानवरों पर अत्याचार को इस कदर दिखाया और महसूस कराया गया है कि कई लोग यह कहते पाए गए कि कुछ दिनों तक पोर्क नहीं खा सकेंगे। यहां ज्ञान देने वाला तरीका भी नहीं है। हां बात बहुत ही बेहतर और साफ़ ढंग से समझ में आती है कि खाने की लगातार कमी और बढ़ती आबादी के इस दौर में हम क्या खा रहे हैं और वो किस तरह पैदा किया जा रहा है, और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। ...
फिल्म में ओक्जा का किरदार और एनीमेशन इस बेहतरीन तरीके से बनाया और पिरोया गया है कि यकीन नहीं होता यह असली नहीं है। फिल्म न तो बच्चों वाली एनीमेशन फिल्म की श्रेणी में है और न ही खालिस फेस्टिवल की फिल्म है। फिल्म का दायरा हर इंसान की पहुंच में है और यही वजह है कि फिल्म मुमकिन है नेटफ्लिक्स की पहली मेगा हिट साबित हो। डिज्नी और ड्रीमवर्क्स को चिंता करने की नहीं लेकिन आगाह होने जरूरत है।