"हमारे देश में ऑर्डिनेंस फैक्ट्री का काम है कि पिन से लेकर टैंक तक हर चीज की सूची बनाए रखें, उसकी देखभाल करें जरूरत पड़ने पर उसे एंड यूजर यानी कि हमारे सिपाहियों तक सही सलामत पहुंचाएं जैसा कि आप जानते हैं, भारत में कई कमाए हैं। नॉर्दर्न कमांड, सदन कमांड ईस्टर्न कमान, वेस्टर्न कमांड, साउथ वेस्ट कमांड और ट्रेंनिंग कमांड तो जहां-जहां जिसकी चीज की जरूरत हो उसे बनाए और सही समय पर उसे पहुंचाएं।"
यह कहना है लेफ्टिनेंट जनरल बीएस सिसोदिया का जो अति विशिष्ट सेवा मेडल और विशिष्ट सेवा मेडल से सुसज्जित है। यह पूर्व डायरेक्टर जनरल ऑफ ऑर्डिनेंस कोर और मेंबर ऑफ आर्म्ड फोर्सेस ट्रिब्युनल की लखनऊ बेंच के पूर्व सदस्य भी रह चुके हैं।
वेबदुनिया से खास बातचीत करते हुए लेफ्टिनेंट जनरल बीएस सिसोदिया ने आगे बताया कि "अगर आर्मी के बारे में आप समझना चाहते हैं तो मोटे तौर पर आपको समझाता हूं इसके 2 भाग होते हैं। एक वह भाग जो फ्रंट पर लड़ रहा होता है और दूसरा भाग होता है जो देश के अंदर रहकर उनकी सहायता करता है और उन्हें सपोर्ट करता है ताकि उनके परफॉर्मेंस में या उनकी किसी भी जरूरतों में कोई कमी ना रह जाए। ऑर्डिनेंस फैक्ट्री भी उसी का एक भाग है। सीमा पर अगर जवान लड़ रहा है तो उसके हाथ में अगर कोई हथियार है तो हथियार में हमेशा बारूद से या गोलियों से भरा रहे खाली ना हो। इस बात का ध्यान हमें रखना पड़ता है।"
साथ ही आपको बताना चाहता हूं कि "ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में हमारे साथ सिविल डिफेंस के लोग भी काम करते हैं। यह वह लोग होते हैं जो होते सिविलियन है लेकिन काम हमारे साथ करते हैं। बस वर्दी नहीं पहनी होती है इन लोगों ने वरना इनका काम इनका जुझारूपनऔर इनका डेडीकेशन हम लोगों जैसा ही होता है और मुझे बहुत फख्र होता है यह सोच कर कि यह सारे ही लोग इतनी बहादुरी से और इतने समर्पण के साथ काम कर रहे हैं। "
-कारगिल युद्ध के समय में आप पर क्या किसी तरह से कोई प्रेशर था?
-नहीं हम पर कोई प्रेशर का दबाव नहीं था। लेकिन हम खुद ही जानते थे कि यह वह समय है जब हमें लग कर मेहनत करके, एक साथ, मिलजुल कर काम करना है ताकि जो हमारे फौजी भाई हैं और फ्रंट पर लड़ रहे हैं, उन्हें किसी के सामान की कमी ना हो। हमने बिल्कुल नहीं देखा कि यह दिन है या रात है या सुबह या शाम है। हम बस काम में लगे रहते थे ना सिर्फ हम बल्कि सिविल डिफेंस के लोग भी हमारे साथ लगे रहते थे। कितनी बार ऐसा हुआ कि कई कई दिनों तक हम घर ही नहीं पहुंचे।
-इस पूरे समय में आपके घर वालों ने कभी नहीं पूछा कि इतना बिजी हैं आप?
-नहीं, मेरे घर वालों ने कभी यह सवाल नहीं किया। हम सब साथ में ही थे। मैं मेरी पत्नी,बच्चे साथ थे। और मां पिता के लिए जरूर मुझे लगता था कि वह सवाल पूछेंगे, लेकिन मैं यह भी जानता था कि वह भी जानते हैं कि मैं आर्मी में हूं, देश की सेवा में हूं और इसमें समय की कोई सीमा नहीं होती। बल्कि मैं तो यूं कहूंगा कि कई बार यह भी हुआ है कि जब मैं घर नहीं लौटा था तो घर वाले खुद टिफिन लेकर आ जाया करते थे और जरूरत का सामान लेकर फैक्ट्री पहुंच जाया करते थे। हम फैक्ट्री के अंदर ऑफिसर और सिविल डिफेंस वाले लोग मिलकर तय करते थे। कि कौन सी टुकड़ी को या इस ग्रुप को अभी खाना खाने का ब्रेक दिया जाए?ताकि एक ग्रुप तो आराम कर सके या खाना खा सके लेकिन काम रुके नहीं। उस समय हमारे दिए यही था कि हर वक्त काम चलता रहे काम रुके नहीं, प्रोडक्शन होता रहे।
-तो क्या कभी आपकी कोर फ्रंट में भी जाती है
-बिल्कुल हम लोगों की यूनिट जो रहती हैं, वह फ्रंट पर भी रहती है ताकि वहां पर जितने भी सैनिक हैं, वहां जितने भी कंपनी को सप्लाई किया जाता है उनके हथियार कभी खाली ना वह कभी कोई सिपाही पीछे मुड़कर ना देखें और हम लोगों की ट्रेनिंग भी एक जैसी ही होती है।हमारा और फ्रंट में काम करने वाले सैनिकों के लिए सिर्फ एक बार समझ लीजिए जैसे कि हैंड एंड ग्लव्स वाली बात होती है हम दोनों के बीच में।
-पूरे कारगिल युद्ध के दौरान क्या ऐसा कोई हथियार रहा जो बहुत सफल रहा?
-कौन सा हथियार कहां काम आएगा और कितना सफल होगा। यह बहुत बार इस बात पर निर्भर करता है कि वह किस जगह पर परफॉर्म कर रहा है। कारगिल युद्ध की बात कर लो। बहुत पहाड़ी क्षेत्र का यह युद्ध स्थल रहा है। ऐसे में बोफोर्स तोप ने बहुत साथ निभाया। यूं तो आपने कई विवादों के बारे में पढ़ा होगा लेकिन फील्ड में बहुत बड़ी मदद की
दूसरा हथियारों की मैं बात करूं ऑर्डिनेंस कोर में होने की वजह से मेरा सबसे बड़ा ध्येय यह था कि कोई भी सिपाही खाली हाथ ना रहे। देखिए जंग में किसी भी सिपाही के लिए सबसे बड़ा साथी और सबसे बड़ा मनोबल बढ़ाने वाला, विश्वास कराने वाला अगर कोई होता है तो उसका हथियार होता है। उसका हथियार उसके पास हो। वह लोडेड हो तो इससे बड़ी शक्ति सिपाही को उस युद्ध स्थल पर कोई नहीं दे सकता और उसका मनोबल बनाए रखना बनाए रखना मेरा काम होता है। उस समय जब लड़ रहा होता है उसके दिमाग में हमेशा ही बात रहनी चाहिए कि उसके पास किसी भी सूरत में हथियारों या बारूद की या गोलियों की कमी नहीं होने वाला और उस समय उसके अंदर एक भाव आता है। वह यह कि अगर एक गोली भी मेरे हथियार से बंदूक से निकली है तो उस सामने वाले को खत्म कर कर ही लौटेगी। किसी भी गोली को मैसेज आया नहीं जाने दूंगा।
क्या आपको लगता है इन दिनों आर्मी को लेकर लोगों की सोच में बदलाव आया है?
आर्मी का पहले 2 तरीके का काम हुआ करता था। एक तो बाह्य सुरक्षा यानी कि आप फ्रंट पर लड़ रहे हैं और सीमा की सुरक्षा कर रहे हैं तो वहीं पर दूसरा आंतरिक सुरक्षा का भी काम हुआ करता था। हम दोनों काम कर रहे थे। बखूबी निभा रहे थे। ऐसे में आर्मी, एयरफोर्स और नेवी फोर्स साथ मिलकर दोनों दायित्व निभा रहे थे। लेकिन पिछले कुछ समय में कुछ बदलाव आए हैं जो मुझे देखने मिले हैं। कई सारे काम ऐसे हुए हैं जो आंतरिक सुरक्षा के लिए दूसरे लोगों पर। इसका दायित्व दिया गया।
इससे पैरामिलिट्री फोर्स है या फिर पुलिस है या फिर होमगार्ड्स है अब इन पर वह जिम्मेदारी है कि वह आंतरिक सुरक्षा का ध्यान रखें। ऐसे में हमारा काम। सीमा पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान देने का हो गया है और मुझे बहुत खुशी होती है कि आंतरिक सुरक्षा का काम अब दूसरे लोग संभाल रहे और बखूबी संभाल रहे हैं। यह लोग जब आपस में मिलकर काम करते हैं तो कितना अच्छा रिजल्ट देते हैं। यह मुझे आपको बताने की भी जरूरत नहीं है।