boycott turkey trend: तुर्की कहता है कि पाकिस्तान हमारा भाई और और हिंदुस्तान हमारा दोस्त। जब साथ देने की बात आएगी तो भाई का ही साथ देंगे दोस्त का नहीं। जबकि यदि हम इतिहास में झांके तो जब भारत का विभाजन नहीं हुआ था तब परिस्थितियां अलग थी। भारत ने हर मौके पर तुर्की का साथ दिया लेकिन तुर्की ने पीठ में हर बार छूरा ही घोंपा। आश्चर्य तो तब होता है जबकि सैंकड़ों सालों से धोखा खाने के बाद भी भारत फिर से तुर्की का दोस्त बन जाता रहा है। इससे पता चलता है कि भारत को इतिहास और धोखों को भूलने की आदत है। इसी आदत के चलते भारत गुलाम भी बना और विभाजित भी हुआ है। भारत में आाज भी कई युवा तुर्क है।
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तुर्कमेनिस्तान और तुर्किये दो अलग अलग राष्ट्र है। तुर्किये यानी तुर्की जिसकी राजधानी अंकारा है। भारत के एक बड़े हिस्से पर राज करने वाले तुर्की ही थे, जिन्हें भारत में तुर्क और मुगल कहा जाता था। कभी खलीफा का राज यहीं से चलता था। अफगानिस्तान फतह के बाद इस्लामिक खलीफाओं ने भारत के सिन्ध फतह के लिए कई अभियान चलाए। 10 हजार सैनिकों का एक दल ऊंट-घोड़ों के साथ सिंध पर आक्रमण करने के लिए भेजा गया। सिन्ध पर ईस्वी सन् 638 से 711 ई. तक के 74 वर्षों के काल में 9 खलीफाओं ने 15 बार आक्रमण किया। 15वें आक्रमण का नेतृत्व मोहम्मद बिन कासिम ने किया। तुर्की का मुगलों से गहरा कनेक्शन है।
गजनवी तुर्क शासन (977 से): अरबों के बाद तुर्कों ने भारत पर आक्रमण किया। अलप्तगीन नामक एक तुर्क सरदार ने गजनी में तुर्क साम्राज्य की स्थापना की। 977 ई. में अलप्तगीन के दामाद सुबुक्तगीन ने गजनी पर शासन किया। सुबुक्तगीन ने मरने से पहले कई लड़ाइयां लड़ते हुए अपने राज्य की सीमाएं अफगानिस्तान, खुरासान, बल्ख एवं पश्चिमोत्तर भारत तक फैला ली थीं। सुबुक्तगीन की मुत्यु के बाद उसका पुत्र महमूद गजनवी गजनी की गद्दी पर बैठा। महमूद गजनवी ने बगदाद के खलीफा के आदेशानुसार भारत के अन्य हिस्सों पर आक्रमण करना शुरू किए। उसने भारत पर 1001 से 1026 ई. के बीच 17 बार आक्रमण किए। 10वीं शताब्दी ई. के अंत तक भारत अपने पश्चिमोत्तर क्षेत्र बलूचिस्तान, जाबुलिस्तान तथा अफगानिस्तान खो चुका था।
गोर तुर्क शासन : मोहम्मद बिन कासिम के बाद महमूद गजनवी और उसके बाद मुहम्मद गौरी ने भारत पर आक्रमण कर अंधाधुंध कत्लेआम और लूटपाट मचाई। इसका पूरा नाम शिहाबुद्दीन उर्फ मुईजुद्दीन मुहम्मद गौरी था। भारत में तुर्क साम्राज्य की स्थापना करने का श्रेय मुहम्मद गौरी को ही जाता है। गौरी गजनी और हेरात के मध्य स्थित छोटे से पहाड़ी प्रदेश गोर का शासक था। मुहम्मद गौरी ने भी भारत पर कई आक्रमण किए। पृथ्वीराज चौहान के बाद मुहम्मद गौरी ने राजपूत नरेश जयचंद के राज्य पर 1194 में आक्रमण कर दिया। इसे चन्दावर का युद्ध कहा जाता है जिसमें जयचंद्र को बंधक बनाकर उनकी हत्या कर दी गई। जयचंद को पराजित करने के बाद मुहम्मद गौरी खुद के द्वारा फतह किए गए राज्यों की जिम्मेदारी को उसने अपने गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को सौंप दी और वह खुद गजनी चला गया।
गुलाम वंश: कुतुबुद्दीन ऐबक के बाद क्रमश: ये शासक हुए- आरामशाह, इल्तुतमिश, रूकुनुद्दीन फिरोजशाह, रजिया सुल्तान, मुइजुद्दीन बहरामशाह, अलाउद्दीन मसूद, नसीरुद्दीन महमूद। इसके बाद अन्य कई शासकों के बाद उल्लेखनीय रूप से गयासुद्दीन बलबन (1250-1290) दिल्ली का सुल्तान बना। गुलाम राजवंश ने लगभग 84 वर्षों तक शासन किया। दिल्ली पर यह प्रथम मुस्लिम शासक था। इस वंश का संपूर्ण भारत नहीं, सिर्फ उत्तर भारत पर ही शासन था। गुलाम वंश के बाद खिलजी वंश के अधीन दिल्ली आ गई।
खिलजी वंश (1290-1320 ई.) : गुलाम वंश के बाद दिल्ली पर खिलजी वंश के शासन की शुरुआत हुई। इस वंश या शासन की शुरुआत जलालुद्दीन खिलजी ने की थी। खिलजी कबीला मूलत: तुर्किस्तान से आया था। इससे पहले यह अफगानिस्तान में बसा था। जलालुद्दीन खिलजी के बाद दिल्ली पर उन्होंने क्रमश: शासन किया- अलाउद्दीन खिलजी, शिहाबुद्दीन उमर ख़िलजी और कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी। इसके अलावा मालवा के खिलजी वंश का द्वितीय सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी भी खिलजी वंश का था जिसने मरने के पहले ही अपने पुत्र को गद्दी पर बैठा दिया था।
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तुगलक वंश: खिलजी वंश के बाद तुगलक वंश चला। गियासी अल-दीन तुगलक को आमतौर पर तुर्की-मंगोल या तुर्क मूल का माना जाता है। गयासुद्दीन तुगलक 'गाजी' सुल्तान बनने से पहले कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी के शासनकाल में उत्तर-पश्चिमी सीमांत प्रांत का शक्तिशाली गवर्नर नियुक्त हुआ था। उसे 'गाजी' की उपाधि मिली थी। गाजी की उपाधि उसे ही मिलती है, जो काफिरों का वध करने वाला होता है। तुगलक वंश के शासकों ने भी गुलाम, खिलजी की तरह दिल्ली सहित उत्तर और मध्य भारत के कुछ क्षेत्रों पर राज्य किया जिसमें क्रमश: गयासुद्दीन तुगलक, मुहम्मद बिन तुगलक, फिरोजशाह तुगलक, नसरत शाह तुगलक और महमूद तुगलक आदि ने दिल्ली पर शासन किया। तुगलक 1412 तक शासन करता रहा तथापि 1399 में तैमूरलंग द्वारा दिल्ली पर आक्रमण के साथ ही तुगलक साम्राज्य का अंत माना जाना चाहिए।
तैमूरलंग: चंगेज खां के बाद तैमूरलंग शासक बनना चाहता था। वह चंगेज का वंशज होने का दावा करता था, लेकिन असल में वह तुर्क था। चंगेज खां तो चीन के पास मंगोलिया देश का था। यह मंघोल ही मंगोल और फिर मुगल हो गया। सन् 1211 और 1236 ई. के बीच भारत की सरहद पर मंगोलों ने कई आक्रमण किए। इन आक्रमणों का नेतृत्व चंगेज खां कर रहा था। चंगेज 100-150 वर्षों के बाद तैमूर लंग ने पंजाब तक अपने राज्य का विस्तार कर लिया था। तैमूर 1369 ई. में समरकंद का शासक बना। तैमूर भारत में मार-काट और बर्बादी लेकर आया।
तुर्क का मुगल बाबर: तुर्क साम्राज्य यानी आटोमन एम्पायर से शुरू में मुगलों का मामूली रिश्ता रहा लेकिन जैसे-जैसे आटोमन एम्पायर की जड़े गहराती गईं, मुगलों से उसके धार्मिक एवं राजनीतिक रिश्ते भी बनते गए। कुछ समय के लिए मुगलों ने ऑटोमन साम्राज्य के शासकों को खलीफा भी मान लिया था। तुर्की का मुगलों से गहरा नाता है। मुगल शासन में मंसबदारी प्रथा, दरबारी प्रथा, जागीरदारी, घुड़सवार सेना, रीति-रिवाज पर तुर्की का खासा असर था। यह सब तुर्की-मंगोल परंपराओं से प्रभावित थे। मुगलों ने तुर्की से तोपें मंगाई थीं। मुगलों के निर्माण की गुंबद और मीनारों की वास्तुकला पर तुर्की की कला का प्रभाव देखा जा सकता है। यह सब इसलिए क्योंकि मुगल मूलतः मध्य एशिया के मंगोल और तुर्की क्षेत्रों की उपज थे। पहले ये बौद्ध थे और बाद में ये सभी मुसलमान हो गए। ऑटोमन साम्राज्य एवं मुगल, दोनों ने ही इस्लाम की रक्षा की. उसके मूल्यों को आगे बढ़ाया। मुगलों और ऑटोमन साम्राज्य में खलीफा बेहद महत्वपूर्ण स्थान था. मुगलों ने आटोमन साम्राज्य के शासकों को खलीफा के रूप में मान्यता दी थी।
1526 ई. में पानीपत के प्रथम युद्ध में दिल्ली सल्तनत के अंतिम वंश (लोदी वंश) के सुल्तान इब्राहिम लोदी की पराजय के साथ ही भारत में मुगल वंश की स्थापना हो गई। इस वंश का संस्थापक बाबर था जिसका पूरा नाम जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर था। इतिहासकार मानते हैं कि बाबर अपने पिता की ओर से तैमूर का 5वां एवं माता की ओर से चंगेज खां (मंगोल नेता) का 14वां वंशज था। वह खुद को मंगोल ही मानता था, जबकि उसका परिवार तुर्की जाति के 'चगताई वंश' के अंतर्गत आता था। पंजाब पर कब्जा करने के बाद बाबर ने दिल्ली पर हमला कर दिया। इसके बाद उसका बेटा नासिरुद्दीन मुहम्मद हुमायूँ दिल्ली के तख्त पर बैठा। हुमायूं के बाद जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर, अकबर के बाद नूरुद्दीन सलीम जहांगीर, जहांगीर के बाद शहाबुद्दीन मोहम्मद शाहजहां, शाहजहां के बाद मुहीउद्दीन मुहम्मद औरंगजेब, औरंगजेब के बाद बहादुर शाह प्रथम, बहादुर शाह प्रथम के बाद अंतिम मुगल बहादुर शाह जफर दिल्ली का सुल्तान बना।
ऊपर बताए गए सभी नाम तुर्क यानी तुर्किये से संबंध रखते हैं। पाकिस्तान का साथ तुर्की इसलिए देता है क्योंकि यह दोनों मिलकर फिर से भारत पर कब्जा करने का सपना देखते हैं, लेकिन भारत के लोगों को कोई भी साजिश जब तक समझ में आती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। वर्तमान में भारत में तुर्की ने बहुत अंदर तक हर क्षेत्र में घुसपैठ कर दी है। तुर्क तो चले गए लेकिन वर्तमान में भारत के अंदर तुर्की को चाहने वाले लाखों लोग मिल जाएंगे।