उत्तर प्रदेश के बहराइच में महाराजा सुहेलदेव का भव्य स्मारक बन रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार, 16 फरवरी 2021 को राजा सुहेलदेव की जयंती के मौके पर उनके भव्य स्मारक का बहराइच में वर्चुअल शिलान्यास किया था। वहां एक संग्रहालय भी बनेगा, जिसमें महाराजा सुहेलदेव से जुड़ी ऐतिहासिक जानकारियां दर्ज होंगी। यूपी की योगी सरकार के इस फैसले से उत्तर प्रदेश की राजनीति में हलचल बढ़ गई है। इस बीच उनकी जाति और उनके इतिहास को लेकर विवाद खड़ा किया जाने लगा है। आओ जानते हैं सुहेलदेवजी के संबंध में खास 10 बातें।
1. सुहेलदेवजी 11वीं सदी में श्रावस्त्री के राजा थे। उनका बहराइच और श्रावस्ती जिले में राज्य था। मिरात-ए-मसूदी के अनुसार श्रावस्ती के राजा मोरध्वज के वे बड़े बेटे थे। जबकि अवध गजेटियर के मुताबिक बहराइच के महाराजा प्रसेनजित के घर माघ माह की बसंत पंचमी के दिन 990 ईस्वी को सुहेलदेव ने जन्म लिया था। महाराजा सुहेलदेव का शासन काल 1027 ईस्वी से 1077 तक रहा था। उन्होंने अपने साम्राज्य का विस्तार पूर्व में गोरखपुर और पश्चिम में सीतापुर तक किया था।
2. उन्होंने 1034 में महमूद गजनवी के भांजे गाज़ी सैयद सालार मसूद और उसकी संपूर्ण टोली को युद्ध में धूल चटा दी थी। मसूद ने बहराइज पर रात में हमला किया था। अबुल फजल ने आइन-ए-अकबरी में लिखा कि मसूद गाजी महमूद गजनवी का भांजा था। एक शोधानुसार बहराइच की लड़ाई में सुहेलदेव ने 21 पासी राजाओं का गठबंधन बनाकर सैयद सालार मसूद गाजी को युद्ध में शिकस्त दी। इन राजाओं में बहराइच, श्रावस्ती के साथ ही लखीमपुर, सीतापुर, लखनऊ और बाराबंकी के राजा भी शामिल थे।
3. चौदहवीं सदी में लिखी अमीर खुसरो की किताब एजाज-ए-खुसरवी में इस युद्ध का जिक्र मिलता है। इसी युद्ध के कारण ही वर्तमाना में राजा सुहेलदेव की बहादुरी की चर्चा हो रही है।
4. मुगल राजा जहांगीर के दौर में चिश्तिया संप्रदाय से आने वाले अब्दुर रहमान रशीदी चिश्ती ने 17वीं सदी में 'मिरात-इ-मसूदी' नामक किताब लिखी जो गाज़ी सैयद सालार मसूद की बायोग्राफी है जिसमें इस युद्ध का जिक्र मिलता है। इस किताब से पता चलता है कि गाजी का जन्म 1014 ईसवी में अजमेर में हुआ था।
5. सुहेलदेव से हारने के बाद घायल गाज़ी सैयद सालार मसूद की मौत हो गई और उसे बहराइज में ही दफना दिया गया। अब तो उसकी कब्र एक मजार और फिर दरगाह में बदल गई है। 1250 में दिल्ली के सुल्तान नसीरुद्दीन ने बनवाई थी दरगाह। इसके बाद लोग यहां माथा टेकने लगे और धीरे धीरे यहां मेला लगने लगा। बाराबंकी की चर्चित दरगाह देवा शरीफ से गाजी मियां की बारात आने के साथ इस मेले का आगाज होता है। जिस दिन यह बारात बहराइच में दरगाह पर आती है, ठीक उसी दिन महाराजा सुहेलदेव विजयोत्सव मनाते हैं। पहले इस जगह पर हिंदू संत और ऋषि बलार्क का एक आश्रम था। विवाद का एक कारण यह भी है।
6. इतिहासकार कहते हैं कि महमूद गजनवी के समकालीन उतबी और अलबरूनी ने इस युद्ध और मसूद की भयानक हार का जिक्र नहीं किया है। हालांकि कुछ इतिहाकारों का मानना है कि इसका जिक्र इसलिए नहीं किया क्योंकि यह उनके लिए शर्म की बात होती।
7. हाल ही में सुहेलदेवजी की जाति को लेकर भी विवाद चल रहा है। सुहेलदेव राजभर समाज से हैं, पासी समाज से हैं या राजपूत समाज से यह अभी स्पष्ट नहीं है। भाजमा उन्हें राजभर समुदाय का मानती है जिसका राजपूत समुदाय विरोध करता है।
8. अंग्रेज गजटियर अनुसार सुहेलदेव राजपूत राजा थे, जिन्होंने 21 राजाओं का संघ बनाकर मुस्लिम बादशाहों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। 1950 में कभी स्कूल टीचर रहे गुरु सहाय दीक्षित द्विदीन की एक कविता 'श्री सुहेल बवानी' में सुहेलदेव को जैन राजा बताया गया है।
9. 'फ़ैसिनेटिंग हिन्दुत्व: सैफ़्रॉन पॉलिटिक्स एंड दलित मोबिलाइज़ेशन' के लेखक समाजशास्त्री प्रोफ़ेसर बद्री नारायण का मानना था कि वे भर समुदाय से थे।
10. मिरात-ए-मसूदी के बाद के लेखकों ने सुहेलदेव को भर, राजभर, बैस राजपूत, भारशिव, पांडववंशी या फिर नागवंशी क्षत्रिय तक बताया है। आर्य समाज और आरएसएस का मानना है कि सुहेलदेव एक हिन्दू राजा थे और उनकी जाति पर विवाद करना व्यर्थ है। इतिहासकारों ने भले ही उनके इतिहास की अनदेखी की हो लेकि लोक मन में सुहेलदेवी गाथाएं अभी भी जीवित है।
अमीश त्रिपाठी की किताब 'सुहेलदेव एंड बैटल ऑफ बहराइच' (Suheldev & the Battle of Bahraich) में महाराजा सुहेलदेव और गाजी मियां की लड़ाई का जिक्र है।