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आखिर क्यों मुगल बादशाह बाबर को आगरा के बाद काबुल में फिर से दफनाया गया? जानिए दो बार दफनाने की वजह

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WD Feature Desk

, शुक्रवार, 18 जुलाई 2025 (17:49 IST)
why was babur buried in kabulइतिहास में कई ऐसी घटनाएं मिलती हैं जो हमें चौंका देती हैं, और मुगल साम्राज्य के संस्थापक जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर का दो बार दफनाया जाना उन्हीं में से एक है। बाबर, जिसने भारत में मुगल वंश की नींव रखी, उसकी मृत्यु के बाद उसे पहले आगरा में दफनाया गया, लेकिन कुछ सालों बाद उसके अवशेषों को निकालकर काबुल ले जाया गया और वहीं अंतिम रूप से दफनाया गया। आखिर ऐसा क्यों हुआ? आइए जानते हैं इसके पीछे की दिलचस्प और ऐतिहासिक वजहें।
 
बाबर की मृत्यु और आगरा में पहला दफन
बाबर का निधन 26 दिसंबर 1530 को आगरा में हुआ था। उसने अपने जीवन में कई युद्ध लड़े और एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया। उसकी मृत्यु के बाद, उसे आगरा में यमुना नदी के किनारे आराम बाग (जिसे अब राम बाग के नाम से जाना जाता है) में दफनाया गया।

यह उसका पहला मकबरा था, जिसे उसकी इच्छा के विरुद्ध माना जाता है। दरअसल, बाबर ने अपनी वसीयत में यह स्पष्ट रूप से लिखा था कि उसे उसकी पसंदीदा जगह, यानी काबुल में दफनाया जाए। लेकिन, उस समय की राजनीतिक अस्थिरता और शायद कुछ अन्य कारणों से, उसके बेटे हुमायूं ने उसे तुरंत काबुल ले जाने के बजाय आगरा में ही दफनाना उचित समझा।

काबुल में दोबारा दफनाने की वजहें
बाबर की काबुल में दोबारा दफन की प्रक्रिया उसकी मृत्यु के लगभग 9 साल बाद पूरी हुई। इसके पीछे कई महत्वपूर्ण कारण थे:
1. बाबर की अंतिम इच्छा
सबसे प्रमुख कारण बाबर की स्वयं की अंतिम इच्छा थी। बाबर प्रकृति प्रेमी था और उसे काबुल से गहरा लगाव था। उसने अपनी आत्मकथा 'बाबरनामा' में काबुल के बगीचों और सुंदर परिदृश्यों का कई बार जिक्र किया है। उसकी प्रबल इच्छा थी कि उसे उसी मिट्टी में दफनाया जाए जहाँ उसने अपना शुरुआती जीवन बिताया था और जिससे उसे इतना प्रेम था।

2. गुलबदन बेगम का हस्तक्षेप
बाबर की बेटी, गुलबदन बेगम (जिसने 'हुमायूंनामा' लिखा था), ने अपने पिता की अंतिम इच्छा को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हुमायूं के भारत में साम्राज्य स्थापित करने और सत्ता मजबूत होने के बाद, गुलबदन बेगम ने अपने भाई हुमायूं से पिता के अवशेषों को काबुल ले जाने का आग्रह किया। वह अपने पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए दृढ़ थी।

3. सांस्कृतिक और भावनात्मक लगाव
मुगल शासकों का मध्य एशिया, विशेषकर समरकंद और फरगना से गहरा सांस्कृतिक और भावनात्मक लगाव था। काबुल उनके लिए एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक केंद्र था, जो उनके पैतृक भूमि के करीब था। बाबर खुद को 'काबुली' मानता था और उसके लिए काबुल सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि उसकी जड़ों और पहचान का प्रतीक था। इसलिए, काबुल में दफन होना उसके लिए एक प्रतीकात्मक वापसी थी।

4. हुमायूं की सत्ता का स्थिरीकरण
जब बाबर की मृत्यु हुई, तब हुमायूं का शासन भारत में पूरी तरह से स्थिर नहीं हुआ था। राजनीतिक चुनौतियाँ और विद्रोह आम थे। ऐसे में, एक बड़े काफिले के साथ बाबर के अवशेषों को काबुल ले जाना एक जोखिम भरा काम हो सकता था। संभवतः, हुमायूं ने अपनी सत्ता मजबूत होने तक इंतजार किया। जब उसे लगा कि अब वह सुरक्षित रूप से यह कार्य कर सकता है, तभी उसने इस पर अमल किया।

काबुल में बाबर का मकबरा
आज, बाबर का मकबरा काबुल में स्थित है, जिसे बाग-ए-बाबर या बाबर के बगीचे के नाम से जाना जाता है। यह स्थान स्थानीय लोगों और पर्यटकों के लिए एक लोकप्रिय पिकनिक स्थल है। इसकी वास्तुकला इस्लामी और फ़ारसी शैलियों का मिश्रण है।



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