महर्षि अरविंद घोष को आध्यात्मिक क्रांति की पहली चिंगारी माना जाता है। उनका जन्म 15 अगस्त 1872 को कोलकाता में हुआ था और 5 दिसंबर 1950 को उनका पांडुचेरी में निधन हो गया था। उनके पिता के.डी. कृष्णघन घोष एक डॉक्टर थे। माता स्वर्णलता देवी और पत्नी का नाम मृणालिनी था। राज नारायण बोस, बंगाली साहित्य के एक जाने माने नेता, श्री अरविंद के नाना थे।
1. 5 से 21 वर्ष की आयु तक अरविंद की शिक्षा-दीक्षा विदेश में हुई।
2. वर्ष 1890 में 18 साल की उम्र में अरविंद को कैंब्रिज में प्रवेश मिल गया।
3. उन्होंने 1890 में भारतीय सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण की।
4. स्वदेश लौटने पर उनके ज्ञान तथा विचारों से प्रभावित होकर गायकवाड़ नरेश ने उन्हें बड़ौदा में अपने निजी सचिव के पद पर नियुक्त कर दिया।
5. बाद में कोलकाता में उनके भाई बारिन ने उन्हें बाघा जतिन, जतिन बनर्जी और सुरेन्द्रनाथ टैगोर जैसे क्रांतिकारियों से मिलवाया।
6. 1902 में अहमदाबाद के कांग्रेस सत्र में अरविंद बाल गंगा तिलक से मिले और बाल गंगाघर तिलक से प्रभावित होकर वो भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष से जुड़ गए।
7. बंगाल के युवाओं में अरविंद ने सशस्त्र क्रांति के बीज बोए। जनता को जागृत करने के लिए अरविंद ने उत्तेजक भाषण दिए। जिसके चलते बहुत हंगामा खड़ा हुआ था।
8. उन्होंने अपने भाषणों तथा 'वंदे मातरम्' में प्रकाशित लेखों द्वारा अंग्रेज सरकार की दमन नीति की कड़ी निंदा की थी।
9. अरविंद का नाम 1905 के बंगाल विभाजन के बाद हुए क्रांतिकारी आंदोलन से जुड़ा और 1908-09 में उन पर अलीपुर बमकांड मामले में राजद्रोह का मुकदमा चला जिसके फलस्वरूप अंग्रेज सरकार ने उन्हें जेल की सजा सुना दी।
10. जब सजा के लिए उन्हें अलीपुर जेल में रखा गया तो जेल में अरविंद का जीवन ही बदल गया। महर्षि अरविंद पहले एक क्रांतिकारी नेता थे लेकिन बाद में वे अध्यात्म की ओर मुड़ गए। उन्होंने सन 1912 तक सक्रिय राजनीति में भाग लिया था।
11. जेल से बाहर आकर वे किसी भी आंदोलन में भाग लेने के इच्छुक नहीं थे। अरविंद गुप्त रूप से 1910 में पांडिचेरी चले गए। वहीं पर रहते हुए अरविंद ने योग द्वारा सिद्धि प्राप्त की और आज के वैज्ञानिकों को बता दिया कि इस जगत को चलाने के लिए एक अन्य जगत और भी है।
12. वहीं पर उन्होंने श्री अरविंद आश्रम ऑरोविले की स्थापना की थी। उन्होंने काशवाहिनी नामक रचना की। जेल से छूटकर अंग्रेजी में कर्मयोगी और बंगला भाषा में धर्म नामक पत्रिकाओं का संपादन किया।
13. अरविंद एक महान योगी और दार्शनिक थे। उनका पूरे विश्व में दर्शनशास्त्र पर बहुत प्रभाव रहा है। उन्होंने जहां वेद, उपनिषद आदि ग्रंथों पर टीका लिखी, वहीं योग साधना पर मौलिक ग्रंथ लिखे। खासकर उन्होंने डार्विन जैसे जीव वैज्ञानिकों के सिद्धांत से आगे चेतना के विकास की एक कहानी लिखी और समझाया कि किस तरह धरती पर जीवन का विकास हुआ। वेद और पुराण पर आधारित महर्षि अरविंद के 'विकासवादी सिद्धांत' की उनके काल में पूरे यूरोप में धूम रही थी।
14. सन् 1914 में मीरा नामक फ्रांसीसी महिला की पांडिचेरी में अरविंद से पहली बार मुलाकात हुई। जिन्हें बाद में अरविंद ने अपने आश्रम के संचालन का पूरा भार सौंप दिया। अरविंद और उनके सभी अनुयायी उन्हें आदर के साथ 'मदर' कहकर पुकारने लगे।
15. सन 1926 से 1950 तक वे अरविंद आश्रम में तपस्या और साधना में लींन रहे। यहां उन्होंने सभाओं और भाषणों से दूर रहकर मानव कल्याण के लिए चिंतन किया। बताया जाता है कि निधन के बाद 4 दिन तक उनके पार्थिव शरीर में दिव्य आभा बने रहने के कारण उनका अंतिम संस्कार नहीं किया गया और अंतत: 9 दिसंबर को उन्हें आश्रम में समाधि दी गई।