Aurobindo Ghosh Life Divine: आज 5 दिसंबर का दिन, भारतीय इतिहास और अध्यात्म के एक ऐसे महापुरुष की पुण्यतिथि है, जिन्होंने एक उग्र राष्ट्रवादी क्रांतिकारी के रूप में देश को जगाया और फिर एक महान योगी और दार्शनिक के रूप में मानव चेतना के विकास को दिशा दी। श्री अरबिंदो घोष का जीवन एक अभूतपूर्व परिवर्तन और त्याग की कहानी है। उनका जीवन केवल भारत के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा नहीं था, बल्कि वह भारतीय संस्कृति, योग और आत्मज्ञान के भी अद्वितीय उदाहरण थे।
जीवन परिचय: 15 अगस्त 1872 को जन्मे योगी अरविंद घोष का का निधन 5 दिसंबर 1950 को हुआ था। वे केवल एक महान स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं, बल्कि एक योगी, दर्शनशास्त्री और कवि भी थे। उनका जीवन कई उतार-चढ़ावों से भरा हुआ था, और उन्होंने भारतीय संस्कृति के पुनर्निर्माण, योग, और आत्मोत्थान के महत्व को समझा और अपने जीवन में इसे उतारने की कोशिश की।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान: अरविंद घोष का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण था। 1900 के आसपास, उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह करने के लिए आध्यात्मिक क्रांति का मार्ग अपनाया। उनका आदर्श था – 'स्वराज'/ स्वतंत्रता केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि आत्मिक और मानसिक भी होना चाहिए। 1905 में बंगाल विभाजन के समय उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भाग लिया और इसके खिलाफ जोरदार आंदोलन किया।
भारतीय संस्कृति और योग: अरविंद घोष का विश्वास था कि भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता ही भारत को पुनः शक्तिशाली बना सकती है। उनका मानना था कि केवल आध्यात्मिक पुनर्निर्माण से ही देश की स्वतंत्रता संभव है। उन्होंने योग और ध्यान को मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक बताया।
आध्यात्मिक जीवन: योगी अरविंद ने केवल राजनीतिक रूप से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी भारत को जागरूक करने का कार्य किया। 1910 में, एक न्यायिक मामले में ब्रिटिश सरकार द्वारा उन्हें कड़ी सजा दी गई और वे पुडुचेरी, तत्कालीन फ्रांसीसी भारत में निर्वासित हो गए। यहां पर उन्होंने ध्यान और साधना के द्वारा जीवन के गूढ़ रहस्यों को जाना। इस दौरान उन्होंने 'योग विद्या' और 'आध्यात्मिक जागृति' पर गहरी साधना की और कई ग्रंथ लिखे, जिनमें से प्रमुख द लाइफ डिवाइन, 'The Life Divine' और द सिंथेसिस ऑफ योग, 'The Synthesis of Yoga' हैं।
योगदान और विरासत: योगी अरविंद का योगदान न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में था, बल्कि उन्होंने भारतीय संस्कृति, योग और समाज के पुनर्निर्माण के लिए भी अपार योगदान दिया। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि केवल बाहरी स्वतंत्रता से कुछ नहीं होता, असली स्वतंत्रता भीतर से आती है। उनका ध्यान और योग के प्रति समर्पण हमें आत्म-निर्माण की दिशा दिखाता है।
05 दिसंबर, आज उनकी पुण्यतिथि पर, हम उन्हें नमन करते हैं और उनके दिखाए मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्राप्त करते हैं। उनकी विचारधारा आज भी हमें सही दिशा दिखाती है, और उनका योगदान भारतीय इतिहास में सदैव याद रखा जाएगा।
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