चीन के महान दार्शनिक और विचारक कंफ्यूशियस (confucius) की चर्चा बहुत होती है। उनके महान विचारों से आज भी कई लोग प्रभावित होते हैं और उनके विचार आज भी प्रासंगित हैं। आओ जानते हैं उनके 10 अनजाने रहस्य।
''जिस बात को हम सिर्फ सुनते हैं, उसे जल्द भूल जाते हैं, जो देखते हैं, उसे हम याद रखते हैं, लेकिन जिसे हम खुद करते हैं, उसे हमेशा के लिए समझ जाते हैं।'- कंफ्यूशियस
1. चीन के महान दार्शनिक : चीन के महान दार्शनिक और विचारक कंफ्यूशियस (confucius) का जन्म 551 ईसा पूर्व (28 अगस्त या सितंबर) को चीन के पूर्वी प्रांत शानडोंग (शान तुंग) के क्यूफू (छ्वी फु) शहर में हुआ था। यह वर्ष 2021 उनकी 2,570वीं जयंती का वर्ष है।
2. बुद्ध के समकालीन : भारत में उस काल में भगवान महावीर और बुद्ध के विचारों का जोर था। समय के थोड़े से अंतर में कंफ्यूशियस- लाओत्से तुंग, सुकरात, महावीर और बुद्ध के समकालीन थे।
3. राजनीति और धर्म में रुचि : कंफ्यूशियस ने राजनीति को स्वस्थ करने में में ज्यादा रुचि दिखाई। कंफ्यूशियस को एक राजनीतिज्ञ विचारक से ज्यादा एक धार्मिक विचारक भी माना गया। ओशो कहते हैं कि कंफ्यूशियस के नीतिवादी विचार अधिक प्रभावी सिद्ध हुए।
4. दार्शनिक कुंग : कन्फ्यूशियस का जातीय नाम 'कुंग' था। कुंग फूत्से का लातीनी स्वरूप ही कन्फ्यूशियस है, जिसका अर्थ होता है- 'दार्शनिक कुंग'।
5. चीन पर डाला अपने विचारों का प्राभव : कंफ्यूशियस ने ऐसे समय जन्म लिया जबकि चीन की शक्ति बिखर गई थी और उस समय कमजोर झोऊ राजवंश का आधिपत्य था। झोऊ राजवंश के दौर में कंफ्यूशियस के दार्शनिक विचारों के साथ ही उनके राजनीतिक और नैतिक विचारों ने चीन के लोगों पर अच्छा- खासा प्रभाव डाला। इसी के चलते उन्होंने कुछ वक्त राजनीति में भी गुजारा।
6. समाज सुधारक : दरअसल कंफ्यूशियस एक सुधारक थे। वे अपने देश को एक नई दिशा और दशा में देखना चाहते थे। गौतम बुद्ध, ताओ और कंफ्यूशियस के विचारों के प्रभाव के आधार पर ही चीन का निर्माण हुआ जो बाद में कम्युनिष्ट विचारधारा में ढलकर चीन की प्राचीन परंपरा को तहस नहस कर दिया।
7. विद्वता और दक्षता से मिली पहचना : कन्फ्यूशियस का जन्म अपने पिता की वृद्धावस्था में हुआ था, जिनका उसके जन्म के 3 वर्ष के बाद ही देहांत हो गया। पिता के देहांत के पश्चात् उसका परिवार आर्थिक कठिनाइयों में फंस गया, जिससे उसका बाल्यकाल बड़ी ही दरिद्रता में व्यतीत हुआ। परंतु उसने अपनी इस दरिद्रता को पीछे छोड़कर अपनी विद्वता तथा विभिन्न कलाओं में दक्षता के बल पर अपनी पहचान बनाई।
8. विद्यालय : कन्फ्यूशियस ने 22 वर्ष की उम्र में ही एक विद्यालय की स्थापना कर दी थी। इसमें ऐसे सभी उम्र के लोग ग्रहण करते थे। अपने शिष्यों से वह आर्थिक सहायता लिया करता था। परंतु कम से कम शुल्क दे सकने वाले विद्यार्थी को वह स्वीकार करता था। कंफ्यूशियस ने स्व:अनुशासन, बेहतर जीवनचर्या और परिवार में सामंजस्य पर जोर दिया था। उनकी शिक्षाओं का आज भी चीन के कुछ लोग पालन करते हैं। इस दार्शनिक के नाम से चीन की सरकार एक शांति पुरस्कार भी प्रदान करती है। कंफ्यूशियस के शहर में आज भी उनका स्मारक, मंदिर और भवन समेत कई प्राचीन इमारते हैं। यह चीन की सांस्कृतिक धरोहर है, जिसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर की लिस्ट में शामिल किया है।
9. वे कभी नहीं रहे धार्मिक नेता : खास बात यह कि कन्फ्यूशियस ने कभी ईश्वर के बारे में कोई उपदेश नहीं दिए और ना ही धर्म की बात कही। फिर भी बाद में लोग उन्हें धार्मिक नेता मानने लगे थे। उनके दार्शनिक, सामाजिक तथा राजनीतिक विचारों पर आधारित मत को कनफ़ूशीवाद या कुंगफुत्सीवाद कहा जाता है।
10. कन्फ्यूशियस की रचनाएं : कन्फ्यूशियस की बातों को कई लोगों ने संग्रहित किया है। उनके पौत्र त्जे स्जे द्वारा लिखित 'औसत का सिद्धांत' (अंग्रेजी अनुवाद, डाक्ट्रिन ऑव द मीन) और उसके शिष्य त्सांग सिन द्वारा लिखित 'महान् शिक्षा' (अंग्रेजी अनुवाद, द ग्रेट लर्निंग) नामक पुस्तकों में तत्संबंधी समस्त सूचनाएं हैं। 'बसंत और पतझड़' (अंग्रेजी अनुवाद, स्प्रिंग ऐंड आटम) नामक एक ग्रंथ, जिसे लू का इतिवृत्त भी कहते हैं, कन्फ्यूशियस का लिखा हुआ बताया जाता है।