Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
Wednesday, 2 April 2025

आज के शुभ मुहूर्त

(षष्ठी तिथि)
  • तिथि- चैत्र शुक्ल षष्ठी
  • शुभ समय- 6:00 से 7:30, 12:20 से 3:30, 5:00 से 6:30 तक
  • व्रत/मुहूर्त-स्कंद षष्ठी
  • राहुकाल-दोप. 1:30 से 3:00 बजे तक
webdunia

Interesting Story : संत कबीर दास जी के संयम की रोचक कथा

Advertiesment
हमें फॉलो करें Interesting Story
Kabir Das
 
एक नगर में एक जुलाहा रहता था। वह स्वभाव से अत्यंत शांत, नम्र तथा वफादार था। उसे क्रोध तो कभी आता ही नहीं था। एक बार कुछ लड़कों को शरारत सूझी। वे सब उस जुलाहे के पास यह सोचकर पहुंचे कि देखें इसे गुस्सा कैसे नहीं आता?
 
उन में एक लड़का धनवान माता-पिता का पुत्र था। वहां पहुंचकर वह बोला यह साड़ी कितने की दोगे?
 
जुलाहे ने कहा - 10 रुपए की।
 
तब लड़के ने उसे चिढ़ाने के उद्देश्य से साड़ी के दो टुकड़े कर दिए और एक टुकड़ा हाथ में लेकर बोला - मुझे पूरी साड़ी नहीं चाहिए, आधी चाहिए। इसका क्या दाम लोगे?
 
जुलाहे ने बड़ी शांति से कहा 5 रुपए।
 
लडके ने उस टुकड़े के भी दो भाग किए और दाम पूछा? जुलाहा अब भी शांत। उसने बताया - ढाई रुपए।
 
लड़का इसी प्रकार साड़ी के टुकड़े करता गया। 
 
अंत में बोला - अब मुझे यह साड़ी नहीं चाहिए। यह टुकड़े मेरे किस काम के?
 
जुलाहे ने शांत भाव से कहा - बेटे ! अब यह टुकड़े तुम्हारे ही क्या, किसी के भी काम के नहीं रहे।
 
अब लड़के को शर्म आई और कहने लगा - मैंने आपका नुकसान किया है। अंतः मैं आपकी साड़ी का दाम दे देता हूं।
 
जुलाहे ने कहा कि जब आपने साड़ी ली ही नहीं तब मैं आपसे पैसे कैसे ले सकता हूं?
 
लडके का अभिमान जागा और वह कहने लगा, मैं बहुत अमीर आदमी हूं। तुम गरीब हो। मैं रुपए  दे दूंगा तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा,पर तुम यह घाटा कैसे सहोगे? और नुकसान मैंने किया है तो घाटा भी मुझे ही पूरा करना चाहिए।
 
जुलाहे ने मुस्कुराते हुए कहा - तुम यह घाटा पूरा नहीं कर सकते। सोचो, किसान का कितना श्रम लगा तब कपास पैदा हुई। फिर मेरी स्त्री ने अपनी मेहनत से उस कपास को बुना और सूत काता। फिर मैंने उसे रंगा और बुना। इतनी मेहनत तभी सफल हो जब इसे कोई पहनता, इससे लाभ उठाता, इसका उपयोग करता। पर तुमने उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले। रुपए  से यह घाटा कैसे पूरा होगा? जुलाहे की आवाज़ में आक्रोश के स्थान पर अत्यंत दया और सौम्यता थी।
 
लड़का शर्म से पानी-पानी हो गया। उसकी आंखें भर आई और वह संत के पैरो में गिर गया।
 
जुलाहे ने बड़े प्यार से उसे उठाकर उसकी पीठ पर हाथ फिराते हुए कहा -
 
बेटा, यदि मैं तुम्हारे रुपए ले लेता तो है उस में मेरा काम चल जाता पर तुम्हारी ज़िन्दगी का वही हाल होता जो उस साड़ी का हुआ। कोई भी उससे लाभ नहीं होता। साड़ी एक गई, मैं दूसरी बना दूंगा। पर तुम्हारी ज़िन्दगी एक बार अहंकार में नष्ट हो गई तो दूसरी कहां से लाओगे तुम? तुम्हारा पश्चाताप ही मेरे लिए बहुत कीमती है।
 
सीख - संत की ऊंची सोच-समझ ने लडके का जीवन बदल दिया। यह संत कोई और नहीं बल्कि कबीर दास जी थे। 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

चंद्र ग्रहण, 5 जून 2020 : कब से कब तक, कहां दिखाई देगा, ज्योतिष में उपछाया चंद्रग्रहण