श्री रामकृष्ण परमहंस बंगाल ही नहीं संपूर्ण भारत के एक प्रमुख संत और सिद्ध योगी थे। बंगाल के हुगली जिले में स्थित कामारपुकुर नामक गांव में रामकृष्ण का जन्म 20 फरवरी 1836 ईस्वी को हुआ। 16 अगस्त 1886 को महाप्रयाण हो गया। उनके पिता का नाम खुदीराम चटोपाध्याय था। आओ जानते हैं उनके जीवन के अद्भुत राज।
1. स्वामी विवेकानंद के गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस एक सिद्ध पुरुष थे। उन्हें कई तरह की सिद्धियां प्राप्त थी। हिंदू धर्म में परमहंस की पदवी उसे ही दी जाती है जो सच में ही सभी प्रकार की सिद्धियों से युक्त सिद्ध हो जाता है।
2. उनका पूरा जीवन कठोर साधना और तपस्या में ही बीता। रामकृष्ण ने पंचनामी, बाउल, सहजिया, सिक्ख, ईसाई, इस्लाम आदि सभी मतों के अनुसार साधना की।
3. रामकृष्ण परमहंस माता कालिका के भक्त थे। उन्हें हर जगह माता कालिका ही नजर आती थी और वे मां काली से बात भी करते थे।
4. रामकृष्ण परमहंस के गुरु तोतापुरी महाराज थे। उन्होंने रामकृष्ण से कहा कि कालिका तुम्हारे भीतर ही है, मूर्ति में नहीं। तुम्हें इस भ्रम को तोड़ना होगा तभी तुम ज्ञान को उबलब्ध हो सकते हो।
5. स्वामी विवेकादंन अपनी जिज्ञासाएं शांत करने के लिए रामकृष्ण परमहंस की शरण में गए। रामकृष्ण परमहंस की प्रशंसा सुनकर नरेंद्र उनके पास पहले तो तर्क करने के विचार से ही गए थे किंतु परमहंसजी ने देखते ही पहचान लिया कि ये तो वही शिष्य है जिसका उन्हें कई दिनों से इंतजार है। परमहंसजी की कृपा से इनको आत्म-साक्षात्कार हुआ फलस्वरूप नरेंद्र परमहंसजी के शिष्यों में प्रमुख हो गए। रामकृष्ण के रहस्यमय व्यक्तित्व ने उन्हें प्रभावित किया, जिससे उनका जीवन बदल गया। 1881 में रामकृष्ण को उन्होंने अपना गुरु बनाया। संन्यास लेने के बाद इनका नाम विवेकानंद हुआ।
6. स्वामी रामकृष्ण परमहंस का असली नाम गदाधर चटोपाध्याय था।
7. रामकृष्ण परमहंस ने शारदादेवी से विवाह किया था। उनकी पत्नी पहले उन्हें पागल समझती थी बाद में उन्हें समझ आया कि यह तो ज्ञानी और सिद्ध है। रामकृष्ण परमहंस अपनी पत्नी को मां कहते थे, जो उम्र में उनसे बहुत छोटी थी।
8. महान दार्शनिक, समाज सुधारक और साहित्यकार ईश्वर चंद्र विद्यासागर का जीवन में रामकृष्ण के संपर्क में आने के बाद बदल गया था।
9. कहते हैं कि एक बार रामकृष्ण परमहंस जी सखी संप्रदाय की साधना कर रहे थे तब उनका चरित्र पूर्णत: स्त्रियों जैसा हो गया था और यह भी कहा जाता है कि इससे उनके शरीर में भी बदलाव आ गया था।
10. एक बार रामकृष्ण परमहंस हुगली नदी पर बैठे थे तभी वे जोर-जोर से चिखने-चिल्लाने लगे कि मुझे मत मारो। सभी भक्त उन्हें देखकर आश्चर्य करने लगे कि उन्हें तो कोई नहीं मार रहा फिर भी उनकी पीट पर कोड़े से मारने के निशान उभरने लगे थे। बाद में पता चला कि नदी के उस पार कोई अंग्रेज गरीबों को कोड़े से मार रहा था जिसका दर्द उन्होंने भी झेला।