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संत सूरदास जयंती: कैसे एक दृष्टिहीन कवि ने रच दिया भक्तिकाल का सबसे उजला अध्याय, पढ़ें उनके 20 कालजयी दोहे

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WD Feature Desk

, गुरुवार, 1 मई 2025 (12:37 IST)
sant surdas jayanti 2025 hindi: हर वर्ष की तरह, संत सूरदास जी की जयंती 2025 में भी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जाएगी। यह पावन दिन भारतीय साहित्य और संस्कृति में एक विशेष स्थान रखता है क्योंकि यह हमें उस दिव्य आत्मा की याद दिलाता है जिसने अपनी नेत्रहीनता को कभी अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। सूरदास जी ने अपनी आत्मिक दृष्टि और कृष्णभक्ति के माध्यम से हमें वो काव्य-संसार दिया जिसमें प्रेम, भक्ति और मानवता की गहराइयाँ समाई हुई हैं।
 
भक्तिकाल में सूरदास जी का योगदान इतना महान है कि उन्हें 'कविता की आंख' कहा जाता है। उनकी संवेदनशीलता, भावनात्मक गहराई और भक्ति रस से ओतप्रोत रचनाएं आज भी पाठकों और भक्तों के हृदय को स्पर्श करती हैं। सूरदास जी की रचनाएं मुख्यतः भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं, प्रेम, करुणा और वात्सल्य से परिपूर्ण होती थीं, जो आज भी भारतीय संस्कृति की धरोहर बनी हुई हैं।
 
संत सूरदास जी का जीवन परिचय: संत सूरदास जी का जन्म 1478 ईस्वी में मथुरा के पास स्थित सीही ग्राम में हुआ था। वे जन्म से दृष्टिहीन थे, लेकिन उनके भीतर ईश्वर के प्रति अगाध श्रद्धा और अद्वितीय काव्य प्रतिभा थी। माना जाता है कि उन्होंने छोटी उम्र में ही घर छोड़ दिया था और वृंदावन आकर श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन हो गए थे।
 
उनका जीवन श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं के गुणगान में बीता और उन्होंने भक्ति आंदोलन को एक सशक्त दिशा दी। सूरदास जी वल्लभाचार्य के शिष्य थे और पुष्टिमार्ग संप्रदाय से जुड़े हुए थे। उन्होंने अपने "सूर सागर" नामक ग्रंथ में 100,000 से अधिक पदों की रचना की, जिनमें से आज लगभग 8,000 ही उपलब्ध हैं।
 
संत सूरदास जयंती का महत्व और 2025 में इसकी तिथि: संत सूरदास जयंती हर वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। वर्ष 2025 में यह जयंती 2 मई 2025 (शुक्रवार) को पड़ रही है। इस दिन भक्त वृंदावन, मथुरा और देश भर के मंदिरों में सूरदास जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं, उनकी रचनाओं का पाठ करते हैं और श्रीकृष्ण भक्ति में लीन हो जाते हैं।
 
कृष्णभक्ति का महासागर: 'सूर सागर', 'सूर सारावली' और 'साहित्य लहरी' उनकी प्रमुख काव्य कृतियाँ हैं। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के शिशु रूप, किशोर रूप, रासलीला, और गोपियों के साथ उनके दिव्य संवादों का अद्वितीय चित्रण किया है। उनके काव्य में वात्सल्य रस की गहराई और माधुर्य भाव का सौंदर्य एक साथ देखने को मिलता है।
 
सूरदास जी की भाषा ब्रजभाषा थी, जो उस समय आम जनमानस की भाषा थी। उन्होंने ब्रज भाषा को साहित्यिक स्तर पर प्रतिष्ठित किया और यह भाषा आज भी कृष्ण भक्ति से जुड़ी रचनाओं में सर्वाधिक प्रयोग में लाई जाती है।
 
संत सूरदास जी के 20 प्रसिद्ध पद / दोहे :
1. मैया मोरी मैं नाहीं माखन खायो।
तोहि कैसे कहें जसुमति मैया, मोहि चोर कहायो॥
 
2. लाली देखी मुँह की, कहिन सब कीन्ही बात।
हिये तैं तो चोरी भई, मोसे कहाँ न जात॥
 
3. अब तौं मोहि छाड़ि दयौ, जातौ है जोगी कौन दिशा।
मोहि बिसरत तेरौ दरसन, काहे करै मनसा॥
 
4. जसोदा हरि पालने झुलावै।
हलरावै दुलरावै मधुरै मुसुकावै॥
 
5. गोपियाँ ग्वाल-बाल लै गाय चरावन जाय।
नवनीत चोराय खाय, सखिन संग रमाय॥
 
6. बरसाने की राधिका प्यारी।
श्रीकृष्ण की प्रियतमा नारी॥
 
7. मधुबन तुम क्यौं रहत हरे।
बिरहिन ब्याकुल भई तिहारे॥
 
8. जिन जड़ ते चेतन कियो, रचि गुण तत्व विधान।
चरन चिकुर कर नख दिए, नयन नासिका कान॥
 
9. जासों प्रेम बढ़ायि कै, सब तजि डारौं आप।
तासों तौं बलिहारी, औगुन करौं न जाप॥
 
10. हरि गावत सुनि हरि गुण, तन मन होई मगन।
नयन नीर बहावई, रसना गावै गुन॥
 
11.दीपक पीर न जानई, पावक परत पतंग।
तनु तो तिहि ज्वाला जरयो, चित न भयो रस भंग॥
 
12. जशोदा के उर लागै, ललना रूप अनूप।
ललन कन्हैया लागै, मोहन मन स्वरूप॥
 
13. असन बसन बहु बिधि दये, औसर-औसर आनि।
मात पिता भैया मिले, नई रुचहि पहिचानि॥
 
14. देखो करनी कमल की, कीनों जल सों हेत।
प्राण तज्यो प्रेम न तज्यो, सूख्यो सरहिं समेत॥
 
15. सुनि परमित पिय प्रेम की, चातक चितवति पारि।
घन आशा सब दुख सहै, अंत न याँचै वारि॥
 
16. कह जानो कहँवा मुवो, ऐसे कुमति कुमीच।
हरि सों हेत बिसारिके, सुख चाहत है नीच॥
 
17. मीन वियोग न सहि सकै, नीर न पूछै बात।
देखि जु तू ताकी गतिहि, रति न घटै तन जात॥
 
18. प्रभु पूरन पावन सखा, प्राणनहू को नाथ।
परम दयालु कृपालु प्रभु, जीवन जाके हाथ॥
 
19. सदा सूँघती आपनो, जिय को जीवन प्रान।
सो तू बिसर्यो सहज ही, हरि ईश्वर भगवान्॥
 
20. जो पै जिय लज्जा नहीं, कहा कहौं सौ बार।
एकहु अंक न हरि भजे, रे सठ ‘सूर’ गँवार॥ 


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