Swami Shivananda: रामकृष्ण परमहंस के शिष्यों में स्वामी विवेकानंद के बाद स्वामी शिवानंद और स्वामी सारदानंद का नाम भी प्रमुखता से लिया जाता है। स्वामी शिवानंद का असली नाम तारकनाथ घोषाल था। वे पश्चिम बंगाल के रहने वाले थे, लेकिन उन्होंने वाराणसी में रामकृष्ण अद्वैत आश्रम की स्थापना की थी। 16 दिसंबर 1854 में उनका जन्म हुआ और 20 फरवरी 1934 को उनका निधन हो गया था।
माता पिता : स्वामी शिवानंद का परिवार कोलकाता के बारासात में रहता था। उनके पिता रामकनाई घोषाल एक वकील और माता वामासुंदरी देवी एक गृहिणी थीं जो धार्मिक महिला थीं।
श्री रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात : शिवानंद जी ने प्रारंभ में गाजियाबाद में नौकरी की थी। फिर वह एक अंग्रेजी फर्म में नौकरी के साथ पुन: कोलकाता लौट गए। इसी समय के दौरान उन्हें सौभाग्य और संयोग से मई 1880 में रामचंद्र दत्ता के आवास पर रामकृष्ण परमहंस जी से मिलने का अपसर प्राप्त हुआ। इस मुलाकात ने तारकनाथ को रामकृष्ण परमहंस का शिष्य बना दिया और वे संन्यासी बन गए।
महापुरुष महाराज : तारकनाथ (शिवानंद) का विवाह किशोरावस्था में ही हो गया था। लेकिन अपनी पत्नी की सहमति से उन्होंने ब्रह्मचर्य का पालन किया। रामकृष्ण परमहंस के दूसरे शिष्य स्वामी विवेकानंद को जब यह पता चला तो उन्होंने स्वामी शिवानंद को 'महापुरुष' कहा। बाद में स्वामी शिवानंद को 'महापुरुष महाराज' के रूप में जाना जाने लगा।
मठों की स्थापना : तारकानाथ से सांसारिक जीवन को त्याग कर दक्षिणेश्वर में और कोलकाता (कंकुरगाछी) में एकांत स्थान पर कई दिन तक साधना की। श्री रामकृष्ण के देहांत के पश्चात बारानगर मठ की स्थापना हुई थी। इस मठ में शामिल होने के बाद मठवासी आदेश प्राप्त करते हुए उन्हें 'स्वामी शिवानंद' नाम दिया गया। स्वामी शिवानंद के रूप में उन्होंने 1896 तक उत्तर भारत की आध्यात्मिक यात्रा की और पुन मठ लौट आए। इसके एक साल बाद यानी 1897 में उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।
इसके बाद स्वामी जी वेदांत दर्शन का प्रसार करने के लिए सीलोन गए। वहां से वे 1898 में पुन: मठ लौट। इसके बाद 1902 में स्वामीजी ने वाराणसी में रामकृष्ण अद्वैत मठ की स्थापना की और 7 वर्षों तक वहां प्रमुख के रूप में कार्य किया।
रामकृष्ण परमहंस मिशन के अध्यक्ष बने : 1910 में उन्हें रामकृष्ण मिशन का उपाध्यक्ष चुना गया। उस दौरान ब्रह्मानंद महाराज वहां के अध्यक्ष थे। 1922 में उनके निधन के बाद स्वामी जी दूसरे अध्यक्ष बने। अध्यक्ष के रूप में रामकृष्ण मिशन के कार्य और उद्येश्य का उन्होंने खूब प्रचार प्रसार किया और 20 फरवरी 1934 को उनका निधन हो गया।