1. संत तारण तरण स्वामी (saint taaran taran) का जन्म मध्यप्रदेश (भारत) के बुंदेलखंड में पुष्पावती (बिलहरी) नामक स्थान पर वि.सं. 1505 में अगहन सुदी सप्तमी को हुआ था। उनकी माता वीरश्री देवी व पिता का नाम गढाशाह था।
2. तारण तरण स्वामी ने तारण पंथ की स्थापना की थी और मोक्ष मार्ग के प्रचारक बने। तारण पंथ का अर्थ है- 'तारने वाला पंथ' यानी 'मोक्ष मार्ग' पर ले जाने वाला पंथ। वे जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर की वीतराग परंपरा में मंडलाचार्य थे तथा 151 मंडलों के आचार्य होने के कारण उन्हें मंडलाचार्य कहा जाता है। तारण पंथ के मध्यप्रदेश में 4 तीर्थक्षेत्र एवं देश भर में करीब 115 चैत्यालय स्थापित हैं।
3. उन्होंने विचार, आचार, सार, ममल तथा केवल मत आदि पांच मतों में चौदह ग्रंथों जिसमें मुख्य रूप से जैन धर्म में सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चारित्र को जाना जाता है की रचना की तथा कई भजनों का लेखन भी किया।
4. प्रचलित मतानुसार तारण तरण स्वामी (Taaran swami) एक वीतरागी दिगंबर संत थे, जिन्हें 11 वर्ष की उम्र में सम्यक दर्शन, 21 की उम्र में ब्रह्मचर्य व्रत तथा 30 की उम्र में सप्तम प्रतिमा धारण करके 60 वर्ष की आयु उन्होंने जैनेश्वरी दीक्षा ग्रहण की।
5. मप्र के अशोकनगर जिले के अंतर्गत मल्हारगढ़ नामक स्थान पर वि.सं. 1572 में ज्येष्ठ वदी सप्तमी (ज्येष्ठ वदी षष्ठी/छठ की रात के अंतिम प्रहर में) 66 वर्ष की आयु में संत तारण तरण स्वामी का बेतवा नदी में सल्लेखनापूर्वक समाधि मरण हुआ था। 10 एकड़ में फैले इस निसई जी की स्थापना संत तारण तरण स्वामी के द्वारा की गई थी।
उनका निसईजी (मल्हारगढ़) में समाधि स्थल स्थापित है, जो कि बीना-गुना लाइन पर मुंगावली तहसील से करीब 14 किलोमीटर दूर पर एक विशाल मंदिर एवं सर्वसुविधा युक्त धर्मशाला बनी हुई है। आज यह स्थान नदी में टापू के रूप में स्थापित है तथा उसके तट पर गुरु तारण तरण की पादुकाएं रखी हुई हैं, जहां उनके हजारों भक्त यहां नाव के द्वारा जाकर गुरु वंदना करके उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस दिन निसईजी मल्हारगढ़ में मेला महोत्सव का आयोजन भी होता है।