आज की इस बिजी लाइफस्टाइल में अक्सर लोग खासकर की छात्र, इंस्टेंट नूडल्स या अन्य रेडी-टू-ईट भोजन का सेवन करना पसंद करते हैं। यह बनाने में काफी आसान और स्वादिष्ट होता है लेकिन यह सेहत के लिए बहुत हानिकारक भी है।
इंस्टेंट फूड से पेट तो भर जाता है लेकिन शरीर को ज़रूरी पोषक तत्व नहीं मिलते हैं जिससे शरीर तमाम तरह की बिमारियों की चपेट में आ जाता है। लेकिन जिम्मी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट में पद्मश्री डॉ जनक पलटा ने सोलर कुकर की मदद से छात्रों को हेल्दी और इंस्टेंट भोजन बनाना सिखाया। यह तकनीक देखकर छात्रों ने कहा 'सोलर कुकर कमाल का है मैगी बनने से भी कम समय लगा।'
दरअसल आई पी एस अकादमी इंदौर से एम.एस.सी केमिस्ट्री के छात्रों का समूह अपनी शिक्षिका के साथ स्टडी टूर पर आए भोजन सुरक्षा व सस्टेनेबल डेवलपमेंट सीखने के लिए पहुंचा। सेंटर की निदेशिका डॉ. जनक पलटा मगिलिगन ने सभी का स्वागत कर उन्हें मात्र 1/2 एकड़ पर बने आवासीय देशी-गाय आधारित जैवविधता फार्म दिखाया। सोलर कुकर में केमिस्ट्री के छात्रों ने अपने हाथ से लाल चौलाई की भाजी बनाई।
छात्रों ने दैनिक जरूरतों की साल भर की सारी पूर्ती दाले, गेहूं, ज्वार, बाजरा, मक्का जैसे कई अनाज देखे। साथ ही सभी फलदार पेड़ जैसे चीकू, बादाम, आम, जाम ,पपीता जैसे तमाम तरह के पेड़ देख छात्र हैरान हो गए।
जनक दीदी ने छात्रों को बताया 'हड्डीजोड़, किडनी में होने वाली पथरी और दांतों के लिए नीम, वज्रादंती, सभी प्राकृतिक उत्पाद मौजूद हैं। जैवविधता ही भोजन सुरक्षा का मुख्य आधार है इसी से पांच इन्द्रियों की तृप्ति होती है।' बिजी लाइफस्टाइल और सिटी लाइफ से अलग छात्रों ने पेड़ों के बीच चहकते पक्षियों को सुना, हवा से पेड़ो की शाखाओं पर झूमते पत्तों, फूलों की पंखुड़ियों की आवाज़ की आवाज सुनी। साथ ही ईमली व अम्बाडी के स्वाद पोई की बेल, गुड़हल, मोगरे को छूकर महसूस भी किया।
इसके बाद छात्रों ने दर्जन भर सोलर कुकर देखे जिसमें उन्होंने दाल बनती, पीने के लिए उबलता पानी देखा। साथ ही उन्होंने जाना कि सोलर-विंड पॉवर भी यहां बनती है और 50 आदिवासी परिवारों को भी निशुल्क स्ट्रीट लाइट यही से जाती है।
छात्रों को सोलर कुकर बहुत कमाल का लगा और मैगी बनाने से आसन उन्हें सोलर कुकर में लाल चौलाई की भाजी भी बनाई। जनक पलटा मगिलिगन ने बताया कि जैव विविधता और जैविक फार्मिंग से ही फूड सिक्योरिटी मिलेगी और इसी से पांच इन्द्रियों को तृप्ति मिलेगी क्योंकि यह सात्विक है।
इस सस्टेनेबल लाइफस्टाइल से मानव, पशु-पक्षी, वनस्पति, मिट्टी, पानी जैविक होंगे तो समस्त प्राणियों का जीवन बचेगा। वरना फैक्ट्री फ़ूड न तो सस्टेनेबल है न सुरक्षित है क्योंकि केमिकल से उगाकर लंबा समय प्लास्टिक में पैक कर रख फूड शारीरिक, मानसिक, अध्यात्मिक व् आर्थिक विनाश का रास्ता है!