जिम्मी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट आज एक ऐसी संस्था का नाम है जहां प्रकृति ने अपना भरपूर प्यार बरसाया है और जहां हर व्यक्ति यह देखने और सीखने जाता है कि कैसे प्रकृति के सान्निध्य में बिना किसी आधुनिक संसाधनों के सहजता से जीवन को जिया जा सकता है।
जिम्मी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट की डायरेक्टर डॉ. जनक पलटा मगिलिगन की अनूठी जीवन शैली से अब तक कई लोग प्रेरणा पा चुके हैं और आश्चर्यमिश्रित हर्ष के साथ स्वयं भी उस जीवन शैली को अपनाने के लिए तैयार हो रहे हैं।
यही वजह है कि कभी यहां छात्रों का समूह जुटता है तो कभी किसी संस्थान के सदस्य, कभी ग्रामीण युवा तो कभी कोई महिला संगठन। यह सिलसिला सतत जारी है। इसी क्रम में पिछले दिनों आइडेलिक इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के प्रबंधन छात्रों ने एक वर्कशॉप के माध्यम से सीखा कि कैसे सनातन विकास की परंपरा को प्रकृति के साहचर्य से सुंदर और सहज बनाया जा सकता है।
मैनेजमेंट के 48 छात्रों ने यहां जीवन का प्रबंधन सीखा और समझा। सेंटर के प्रशिक्षक नंदा चौहान और राजेंद्र चौहान की सहायता से उन्होंने जाना कि 'स्थायी प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन' क्या और कैसे होता है। विद्यार्थियों ने जल संरक्षण की तकनीक, विधि और पद्धति देखकर जाना कि कैसे जल का पुन: उपयोग हो सकता है और कैसे वर्षा का जल संचयन कर भविष्य को सुरक्षित बनाया जा सकता है। उन्होंने सेंटर के रासायनिक मुक्त खेत पर जैविक खेती और जैव विविधता के तरीकों को जाना।
यहां उन्हें पता चला कि वर्तमान और भावी पीढ़ियों दोनों के लिए जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए मिट्टी को ऊर्वर बनाए रखना जरूरी है।
उनके अनुसार यह पहला अनुभव है जब अक्षय ऊर्जा, जैविक खाद्य सामग्री और दैनिक उपयोग के लिए प्राकृतिक बाथ-जेल, शैंपू, के अलावा वज्रदंती, नीम, अरीठा जैसे कई औषधीय पौधों को करीब से देखा। पत्थर चट्टा हड्डीजोड़, पुदीना तुलसी, हरे और काले इलायची, अंबाडी, आंवला, अजवाइन के अलावा मूंगफली का मक्खन, जैम, अचार, सिरप के साथ स्क्वैश, घर की कॉफी, अनाज, दालें, सब्जियां और फल, गायों के लिए नैसर्गिक चारा इतनी सारी बातें एक ही जगह देखने और उनका अनुभव करने का यह पहला अवसर था।
सेंटर पर आकर ही उन्होंने जाना कि इको फ्रेंडली कैंपस वास्तव में कैसा होता है, जहां जी भर कर सांस ली जा सके, जहां खुलकर प्रकृति की सुगंध में सराबोर हुआ जा सके। कैसे अपना ईंधन स्वयं बना सकते हैं। सौर पकवान कैसे बनाए जाते हैं और कैसे इतनी आसानी से खाद्य प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी से आहार की गुणवत्ता बनाई रखी जा सकती है। सेंटर कैसे स्थानीय लोगों को मुफ्त बिजली की आपूर्ति कर रहा है, यह जानना भी एक दिलचस्प अनुभव रहा।
छात्रों ने सौर रसोई और पावर स्टेशन चलने वाले शेफ्लर डिश से सूर्य की किरण के माध्यम से आग को निकलते देखा।
डायरेक्टर जनक दीदी ने उन्हें सोलर ड्रायर में सूखते सेब, केले, पपीता ना सिर्फ दिखाए बल्कि उनको चखने का मौका भी दिया ताकि छात्र जान सके कि इस तरह का फूड पौष्टिक होने के साथ स्वादिष्ट भी होता है।
इस पूरे आनंद के बाद उनके साथ एक संवाद सत्र हुआ। सत्र में बताया गया कि देश के सस्टेनेबल विकास में प्रबंधन छात्रों की भूमिका क्या हो सकती है। उन्हें बताया गया कि हर क्षेत्र, सेवा, व्यापार, उद्योग, उद्यम, विपणन, पैकेजिंग और क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर की सेवाओं में सस्टेनेबल विकास ज़रूरी है और सस्टेनेबल विकास के लिए इन सबका कुशल प्रबंधन जरूरी है।
इंस्टीट्यूट की प्राचार्य डॉ. बबिता कड़ाकिया और प्राध्यापक व छात्र सभी यहां आकर अभिभूत हुए। उन्होंने जनक दीदी का आभार मानते हुए कहा कि केंद्र भारत का एकमात्र संस्थान है जो भारत के युवाओं की क्षमता और कुशलता में अभिवृद्धि कर रहा है।