अपने सामाजिक जीवन और कार्यक्षेत्र में दद्दू के नाम से पहचाने जाने वाले लेखक महेन्द्र कुमार सांघी के काव्य संग्रह ठेला का रविवार को लोकार्पण किया गया। अपनी उम्र का एक पड़ाव पार कर चुके वरिष्ठ लेखक महेन्द्र सांघी ने इस संग्रह में अपने अतीत से लेकर वर्तमान तक की अपनी दृष्टि को बखूबी दर्ज किया है।
उन्हानें जिस तरह से कॉलेज के दिनों से लेकर अब तक के समय को व्यंग्य रचनात्मकता में सहेजा है, वो बेहद महत्वपूर्ण और रोचक है।
उनके इस काव्य संकलन ठेला का संस्था रंजन कलश के तत्वावधान में इंदौर प्रेस क्लब में मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ विकास दवे, ख्यात कवि सत्यनारायण सत्तन, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रवीन्द्र नारायण पहलवान के आतिथ्य में किया गया।
जितना ठेलोगे उतना सफर तय होगा
इस मौके पर अपने चुटीले अंदाज में कवि सत्यनारायण सत्तन ने कहा, ठेला तो ठेला है, जितना ठेलोगे उतना सफर तय करेगा। उन्होंने कहा, रूप, रस, गंध स्पर्श से लदा हुआ यह ठेला, सहज भावों की अभिव्यक्ति को ठेलते हुए अपने चारों पहियों की चर्र आवाज को दर्शाते हुए विभन्न विषय सामग्री को शब्द प्रदान करने का सामर्थ रखता है।
इस ठेले की सामग्री में मां की प्रेम मूर्ति, घृणा का जहर, प्रेम का अमृत, शतरंज की बिसात, अंधेरे उजाले की बैटरी, अभाव प्रभाव स्वभाव, घर बाजार दुबले पतले मोटे गीत गजल गाते हिन्दी के दीवाने वादों की सजधज व्यंग्य का बालपन समाया है।
डॉ. विकास दवे ने कहा, इस संग्रह की रचनाएं मानवीय संवेदनाओं से उपजी व्यंगात्मक तीखापन लिए हैं जो समाज में व्याप्त विकृतियों पर तीखा व्यंग्य करती है।
डॉ. रवीन्द्र नारायण पहलवान ने कहा, संग्रह की व्यंग्यात्मक शैली सीधे पाठको के दिलों दिमाग पर दस्तक देती है।
इस काव्य संग्रह के लोकार्पण की शुरुआत आशा जाकड़ की शारदे वंदना के साथ हुई। अतिथि स्वागत एवं परिचय अमृता अवस्थी, डॉक्टर ऋतुराज टोंगिया, अशोक द्विवेदी, मुकेश इंदौरी ने दिया।
लोकार्पण के मौके पर डॉ. बनवारी लाल जाजोदिया, डॉक्टर जवाहर गर्ग, अशोक द्विवेदी, डॉ पुष्पेंद्र दुबे, गोपाल माहेश्वरी, मोहनलाल सांघी, शोभा रानी तिवारी आशा जाकड़, डॉ. अंजुल कंसल आदि कई साहित्यकार उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन पंडित संतोष मिश्रा ने किया एवं आभार कौस्तुक माहेशवरी ने माना।
लेखक सांघी विश्व के प्रथम हिन्दी पोर्टल वेबदुनिया और नईदुनिया से संबद्ध रहे हैं। अपनी चुटीली हास्य रचनाओं के कारण दद्दू नाम उन्हें वहीं से प्राप्त हुआ है। वेबदुनिया में प्रकाशित अपने नियमित कॉलम दद्दू का दरबार में वे अटपटे सवालों के चटपटे जवाब देते हैं।
क्या कहा लेखक ने
इस मौके पर लेखक महेन्द्र सांघी ने अपने लेखन यात्रा के दौरान आए कई पडावों का जिक्र किया, लेखन के लिए मार्गदर्शन करने वाले साथियों और वरिष्ठों के प्रति आभार व्यक्त किया। इसके बाद उन्होंने कहा, मेरी साहित्यिक यात्रा में यदि में अपनी जीवन साथी श्रीमती निर्मला सांघी का जिक्र नहीं करूंगा तो उनसे आंखें नहीं मिला पाऊंगा। वर्षों उन्होंने मेरी अधूरी रचनाओं के पन्नों को सम्हाले रखा। अंत में मैं कहना चाहता हूं कि मेरे व्यंग्य ने कभी किसी को आहत किया हो तो मैं माफी चाह्ता हूं। सच मानिये किसी पर व्यंग्य करते हुए व्यंग्यकार का मन भी दुखता है।