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स्वच्छ तो हैं मगर सुरक्षा का क्या? हादसों का शहर बनता इंदौर

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वृजेन्द्रसिंह झाला

Indore Police News: भारत के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर में सड़कों और दीवारों से गंदगी के दाग तो मिटाए जा रहे हैं, लेकिन छोटी-छोटी बातों से पैदा हुए विवाद में निर्दोष लोगों के उड़ते खून छींटे अहिल्या नगरी के दामन को दागदार बना रहे हैं। ये ऐसे दाग हैं, जिसे किसी भी पानी और झाड़ू से मिटाया नहीं जा सकता। इसका दर्द पीड़ितों को पूरी जिंदगी सालता रहता है। आम आदमी के लिए भी हत्याओं की घटनाएं महज एक खबर से ज्यादा कुछ नहीं होतीं, थोड़ी देर चर्चा करते हैं फिर सब कुछ भूलकर अपनी जिंदगी में मशगूल हो जाते हैं।
 
दरअसल, पिछले कुछ दिनों में हत्या जिस तरह की वारदातें हुई हैं, उससे शहर की पुलिस व्यवस्था पर सवाल उठने लगे हैं। उठने भी चाहिए। लोग तो यह भी कहने लगे हैं कि पुलिस कमिश्नरी लागू होने के बाद शहर में अपराध बढ़ गए हैं। इसमें कोई संदेह नहीं पुलिस हर जगह और हर किसी के साथ नहीं हो सकती, लेकिन खाकी का खत्म होता खौफ इस तरह की घटनाओं को बढ़ावा ही देता है। पिछले दिनों चंदननगर थाना क्षेत्र में मामूली-सी बात पर कार सवार एक युवा इंजीनियर की चाकू मारकर हत्या कर दी गई। और भी घटनाएं हुईं। ये घटनाएं पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाने के लिए काफी हैं। 
 
खैर, जांच तो छोड़ दीजिए शहर के प्रमुख चौराहों पर आधी रात के बाद कोई पुलिसकर्मी ही नजर नहीं आता। अतिरिक्‍त पुलिस कमिश्‍नर (लॉ एंड ऑर्डर और ट्रैफिक) मनीष कपूरिया ने वेबदुनिया को ही चर्चा में बताया था कि हत्‍याओं के मामलों में हमने अपराध पंजीबद्ध किए हैं। जहां तक शहर में अपराधों के ग्राफ की बात है तो हम इसे लेकर जीरो टॉलरेंस पर हैं। नाइट्रावेट और अन्य नशों का सेवन करने वालों की जांच के लिए पुलिस समय-समय पर अभियान चलाती है। 
 
वेबदुनिया ने शुक्रवार और शनिवार दरमियानी रात शहर के कुछ थाना क्षेत्रों के ऐसे स्थानों पर जाकर देखा, जहां शाम के समय तो पुलिसकर्मी मौजूद रहते हैं, लेकिन रात के समय वहां सन्नाटा पसरा हुआ था। शहर की पुलिस व्यवस्था का हाल जानने के लिए वेबदुनिया का रात का सफर अन्नपूर्णा थाना क्षेत्र से शुरू होकर हीरानगर थाना क्षेत्र में समाप्त हुआ।

इस दौरान जूनी इंदौर, पंढरीनाथ थाना, सेंट्रल कोतवाली, एमजी रोड थाना, परदेशीपुरा थाना, तुकोगंज थाना, एमआईजी आदि थाना क्षेत्रों से गुजरना हुआ, लेकिन न सिर्फ रास्ते में बल्कि प्रमुख स्थानों पर भी कोई पुलिसकर्मी नजर नहीं आया। आइए जानते हैं शहर की पुलिस व्यवस्था की हकीकत... 
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समय : रात करीब 2 बजकर 2 मिनट, स्थान : संजय सेतु, थाना : सेंट्रल कोतवाली 
संजय सेतु पुलिस चौकी के पास रोज शाम के समय आपको पुलिस चैकिंग करते हुए दिखाई दे जाएगी। पुलिस जवान बड़ी ही मुस्तैदी से वाहन चालकों को खासकर दोपहिया वाहन चालकों को रोकते हैं और उनके कागजात और लाइसेंस की मांग करते हैं।  लेकिन, रात को जब हमने वहां देखा तो पुलिस सहायता केन्द्र में अंधेरा था और उसका बंद दरवाजा मुंह चिढ़ा रहा था।
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समय : रात करीब 2 बजकर 6 मिनट, स्थान : चिमनबाग चौराहा, थाना : एमजी रोड
हमारा अगला पड़ाव चिमनबाग चौराहा था, जहां पुलिस चौकी में लाइट तो जल रही थी, लेकिन वहां कोई पुलिसकर्मी मौजूद नहीं था। शाम के समय यहां भी पुलिस‍कर्मियों द्वारा वाहनों की सघन चैकिंग की जाती है, लेकिन रात में यहां कोई नहीं था। हां, दिन के समय जरूर यहां पुलिसकर्मी दिखाई दे जाते हैं। 
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समय : रात करीब 2 बजकर 13 मिनट : स्थान : मालवा मिल चौराहा, थाना : परदेशीपुरा
दिन के समय काफी भीड़भाड़ वाला मालवा मिल चौराहे पर सन्नाटा पसरा हुआ था। इक्का-दुक्का वाहन ही दिखाई दे रहे थे। तभी हमारी नजर एक कोने में मौजूद पुलिस चौकी पर पड़ी। चौकी में अंधेरा था और बाहर ताला लटका हुआ था। ऐसे में पुलिसकर्मी होने का तो वहां सवाल ही नहीं उठता। 
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समय : रात करीब 2 बजकर 21 मिनट : स्थान : तीन पुलिया चौराहा, थाना : परदेशीपुरा
परदेशीपुरा थाना क्षेत्र की नंदानगर पुलिस चौकी का भी बाहर से दरवाजा बंद था। भीतर पूरी तरह अंधेरा था। तीन पुलिया चौराहा और परदेशीपुरा चौराहे पर एक भी पुलिसकर्मी नजर नहीं आया। पाटनीपुरा चौराहे के पास एक पुलिस वाहन सायरन बजाते हुए जाता हुआ जरूर दिखाई दिया। 
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समय : रात करीब 2 बजकर 26 मिनट : स्थान : आईटीआई तिराहा, थाना : हीरानगर
खातीपुरा और एमआर 10 को जोड़ने वाले आईटीआई तिराहे का हाल भी दूसरे चौराहों से अलग नहीं था। एक समय यहां पुलिसकर्मी नजर आते थे। वे आने-जाने वालों को रोकते भी थे और उनसे पूछताछ भी करते थे, लेकिन इन दिनों वहां कोई भी पुलिसकर्मी नजर नहीं आता। 
 
क्या ऐसा नहीं हो सकता कि इन लावारिस पड़ी पुलिस चौकियों को रात के समय पूरी तरह 'आबाद' रखा जाए, ताकि कोई जरूरतमंद या भूला-भटका व्यक्ति यहां मदद हासिल कर सके। अपराधियों में भी इससे पुलिस का डर बढ़ेगा। केवल इन चौकियों पर पुलिस 'सहायता' केन्द्र लिखने भर से कुछ नहीं होने वाला है। क्योंकि कई बार जब लोगों को मदद की जरूरत पड़ती है, वे 'असहाय' ही नजर आते हैं। 
 

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