Indore News : वर्तमान दौर में पत्रकारिता की परिभाषा बदल सी गई है। आज एकतरफा संवाद का दौर आ गया है, जिसमें सत्ता में बैठे लोग जो कुछ कहते हैं, पत्रकार उसे वैसा का वैसा छाप या दिखा देते हैं, जबकि पत्रकारिता का काम ही है सत्ता से सवाल पूछना, भले ही पार्टी कोई भी हो। यह बात देश के सबसे महत्वपूर्ण संपादकों में गिने जाने वाले द टेलीग्राफ के नेशनल अफेयर्स एडिटर संकर्षण ठाकुर ने स्टेट प्रेस क्लब, मध्यप्रदेश द्वारा आयोजित दो दिवसीय मास्टर क्लास खबरों के खबरची के विद्वान वक्ता के रूप में कहीं।
ठाकुर ने अफसोस व्यक्त किया एकतरफा संवाद का दौर बहुत हद तक पत्रकारों ने भी स्वीकार कर लिया है। बड़ी संख्या में पत्रकार आज पार्टियों या नेताओं के प्रवक्ता जैसे बन गए हैं। नेता या पार्टी द्वारा जो कहा गया है वैसा का वैसा छापना स्टेनोग्राफी है, पत्रकारिता नहीं।
उन्होंने कहा कि इसी तरह सिटीजन पत्रकारिता भी पूरी तरह उपयुक्त नहीं है, क्योंकि पत्रकार का काम फैक्ट चेकिंग, संदर्भ और पूर्व की घटनाओं का समावेश इत्यादि भी है। पत्रकारिता एक जीवन जीने की शैली है। सूचना देना एक जिम्मेदारी का काम है और उसने जरा भी गड़बड़ होने के दुष्परिणाम हो सकते हैं और पूर्व में सामने भी आए हैं।
ठाकुर ने कहा कि वर्तमान टीवी पत्रकारिता तो लगभग मच्छी बाजार जैसा दृश्य उपस्थित करती है, जिसमें दो पक्षों को एंकर बैठाकर लड़वाया करते हैं। एक्सेस जर्नलिज्म या किसी सत्ताधीश तक पहुंच रखने वाली पत्रकारिता ने पत्रकारिता के मायने ही बदल दिए हैं। उन्होंने सवाल किया की नेता के ना मिलने का डर किसी पत्रकार को क्यों होना चाहिए? मीडिया संस्थानों को किसी ने नहीं कहा सरकार का भोपू बनने के लिए, लेकिन वो खुद ही सरेंडर हो गए हैं।
उन्होंने इस बात के लिए भी दु:ख व्यक्त किया की चुनावों के अलावा गांव की और छोटे शहरों की रिपोर्टिंग आजकल बिल्कुल बंद ही हो गई है। प्रिंट मीडिया के रिपोर्टर टीवी से देख-देख कर खबरें बना रहे हैं और ऐसा करते हुए अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं, क्योंकि कैमरे के आंख के दाएं-बाएं और आसपास भी बहुत कुछ खबरें होती हैं। सारी की सारी पत्रकारिता अनेक वर्षों से चुनिंदा नेताओं और उनके घिसे पिटे बयानों के आसपास सिमटकर रह गई है।
स्थिति ऐसी है कि लगता है कि कुछ वर्ष पुराना बयान यदि फिर से छाप देंगे तो लोगों को लगेगा कि यह भी आज का ही है। बैलेंस या संतुलित पत्रकारिता के संदर्भ में उन्होंने कहा कि यदि एक पार्टी ने कहा कि बाहर बारिश हो रही है और दूसरी ने कहा कि बाहर धूप खिली है तो दोनों का संतुलित बयान छापना पत्रकारिता नहीं है। बल्कि पत्रकार का काम है कि वह बाहर जाकर देखें कि धूप है अथवा बारिश और फिर उस सच को उजागर करे।
ठाकुर ने कहा कि पत्रकार बहुत सतर्कता के साथ अपने तथ्यों को जांच कर लिखें और किसी भी बेवजह की परेशानी से बचें, क्योंकि आजकल बहुत जल्दी मुकदमे लाद दिए जाते हैं। हां यदि सच की राह पर चलते हुए कोई मुकदमा आता है तो उनसे परेशान होने की जरूरत नहीं है, लेकिन उसके लिए यह जरूरी है कि पत्रकार स्वयं अपना दामन पाक साफ रखें और सत्ता से निकटता का कोई लाभ ना उठाएं।
मास्टर क्लास का संचालन बहुविध संस्कृतिकर्मी एवं पत्रकार आलोक बाजपाई ने किया। प्रारंभ में स्टेट प्रेस क्लब, मध्यप्रदेश के अध्यक्ष प्रवीण कुमार खारीवाल, संरक्षक संजीव आचार्य, रचना जौहरी, डॉ. आरके जैन, नेहा जैन, सुदेश गुप्ता, आयूषी चावला ने संकर्षण ठाकुर का स्वागत किया। स्वागत उद्बोधन वरिष्ठ पत्रकार संजीव आचार्य ने दिया। कार्यक्रम से पूर्व मुद्रा डांस ग्रुप की सुश्री पल्लवी शर्मा के शिष्य मंडल ने आकर्षक गणेश वंदना प्रस्तुत की। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में इंदौर-उज्जैन संभाग के मीडियाकर्मी मौजूद थे। मास्टर क्लास में दूसरे दिन प्रात: 11.00 बजे अभिनव कला समाज सभागृह में पत्रकारिता के विभिन्न आयाम और समाज से अपेक्षा विषय पर बातचीत का सत्र रखा गया है।