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जिम्मी मगिलिगन सेंटर में 12 देशों के छात्रों ने पद्मश्री जनक पलटा मगिलिगन से सस्टेनेबल डेवलपमेंट को आत्मसात किया

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WD Feature Desk

, शुक्रवार, 25 जुलाई 2025 (14:56 IST)
एमराल्ड हाइट्स इंटरनेशनल राऊ के एएफएस, स्टेम कार्यक्रम के अंतर्गत अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, इंडोनेशिया, मिस्र, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, स्पेन, हंगरी, इंडोनेशिया, मैक्सिको और भारत के छात्रो ने सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट में आकर सेंटर की निदेशिका जनक पलटा मगिलिगन के साथ दिन भर रह कर देखा, सुना और अनुभव किया कि पहली बार सस्टेनेबल लिविंग देख कर विश्वास हुआ कि सस्टेनेबल डेवलपमेंट असम्भव नहीं है। 
 
जिम्मी मगिलिगन सेंटर आशा और विश्वास की प्रेरणा का प्रतीक है। एमराल्ड हाइट्स स्कूल की अंतर्राष्ट्रीयता प्रमुख सर्वेश्वरी सिंह के अनुसार "सस्टेनेबिलिटी संकट की तत्काल आवश्यकता के प्रति बढ़ती जागरूकता वाली दुनिया में, 23 जुलाई 2025 को, 12 विभिन्न देशों के AFS छात्र आदान-प्रदान कार्यक्रम में शामिल हुए। युवा वैश्विक नागरिकों ने डॉ. मगिलिगन से मिलना के लिए एक जीवन-परिवर्तनकारी अनुभव रहा। 
 
आधे एकड़ पर बना यह आवासीय सेंटर इस दृष्टिकोण का एक जीवंत प्रमाण है। इसके संस्थापकों, श्रीमती जनक और उनके दिवंगत पति, जेम्स आर. मगिलिगन, जो एक उत्तरी आयरिश निवासी थे, ने आत्मनिर्भर, पर्यावरण के प्रति जागरूक विरासत बनाने के मिशन पर निकलने से पहले भारत में 25 साल सेवा की और आधे एकड़ के भूखंड को आत्मनिर्भर जीवन के एक मॉडल में बदल दिया। 
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यह यात्रा दो आकर्षक भागों में सामने आई। सबसे पहले, छात्रों ने पूरी तरह से अक्षय ऊर्जा से संचालित सभी उपकरणों को देखा। जनक जी को दुनिया भर से मिले सोलर कुकर के मॉडल, पवन टर्बाइनों और वर्षा जल संचयन प्रणालियों को कार्यरत देख अविभूत थे। इंसुलिन पैदा करने वाली जड़ी-बूटियों जैसे औषधीय पौधों और अरीठा और वज्रदंती जैसे प्राकृतिक क्लीनर ने छात्रों को प्रकृति के साथ सामंजस्य, स्वच्छ, जागरूक और कार्बन-तटस्थ जीवन शैली से अवगत कराया।
 
दूसरा भाग पद्मश्री पुरस्कार विजेता और संयुक्त राष्ट्र में स्थिरता के लिए वैश्विक अधिवक्ता श्रीमती जनक मगिलिगन के साथ एक आत्मीय और प्रेरणादायक संवाद था। उनकी पावर पॉइंट प्रस्तुति में उत्सर्जन मुक्त केंद्र बनाने की दिशा में संस्थापकों की बहाई सेवा यात्रा और उनके लिए प्राप्त कई पुरस्कारों का विवरण शामिल था।  फिर भी, उन्हें उस ज़मीनी क्रांति पर गर्व है जो उन्होंने जगाई है। 
 
बरली डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट फॉर रूरल वीमेन के माध्यम से, उन्होंने अनगिनत आदिवासी महिलाओं को शिक्षा, सम्मान और एक भविष्य प्रदान करके सशक्त बनाया है। 1960 के दशक में भारत की पहली ओपन-हार्ट सर्जरी से बचने से लेकर, केंसर जैसी कई बड़ी चुनौतियों को पार करने और अपने पति की विरासत को आगे बढ़ाने के अपने अटूट विश्वास में शक्ति पाने तक, उनकी यात्रा असीम साहस और उद्देश्य से भरी है। 
 
यात्रा के समापन पर, छात्रों ने मैडम के साथ एक प्रश्नोत्तर सत्र में भाग लिया, जहां उन्होंने इन प्रथाओं को जीवन में अपनाने के तरीके खोजे। श्रीमती मगिलिगन के उत्तर का संदेश स्पष्ट था, जैसा कि उनके अंतिम शब्दों में परिलक्षित होता है, "हम यह तय नहीं कर सकते कि हम कैसे मरेंगे, इसलिए हमें जीने का सबसे अच्छा तरीका चुनना होगा।" अपनी इस यात्रा के माध्यम से, छात्रों को पुनर्विचार करने, नवाचार करने और यह विश्वास करने की प्रेरणा मिली कि कैसे एक व्यक्ति का अटूट समर्पण आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्ग प्रशस्त कर सकता है। 
 
उन्होंने जिम्मी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट में एएफएस एसटीईएम प्रोग्राम के छात्रों की मेज़बानी के लिए हार्दिक आभार व्यक्त किया। छात्रों को दैनिक जीवन में स्थायी प्रथाओं को सामंजस्यपूर्ण ढंग से अपनाने के लिए प्रेरित किया गया। हम आपके उदार आतिथ्य और सार्थक बातचीत के अवसर की सराहना करते हैं, जिससे उनकी स्थिरता की समझ का विस्तार हुआ है। 
 
रिपोर्ट- सर्वेश्वरी सिंह, प्रमुख, अंतर्राष्ट्रीयवाद, द एमराल्ड हाइट्स इंटरनेशनल स्कूल

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